नैगमनय: Difference between revisions
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<span class="GRef">कार्तिकेयानुप्रेक्षा/271</span> <span class="PrakritGatha">जो साहेदि अदीदं वियप्परूवं भविस्समट्ठं च। संपडि कालाविट्ठं सो हु णओ णेगमो णेओ।271।</span>=<span class="HindiText">जो नय अतीत, अनागत और वर्तमान को विकल्परूप से साधता है वह नैगमनय है।<br /></span> | <span class="GRef">कार्तिकेयानुप्रेक्षा/271</span> <span class="PrakritGatha">जो साहेदि अदीदं वियप्परूवं भविस्समट्ठं च। संपडि कालाविट्ठं सो हु णओ णेगमो णेओ।271।</span>=<span class="HindiText">जो नय अतीत, अनागत और वर्तमान को विकल्परूप से साधता है वह नैगमनय है।<br /></span> | ||
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<span class="GRef">श्लोकवार्तिक/4/1/33/ श्लोक 21/232 </span><span class="SanskritText">यद्वा नैकं गमो योऽत्र सतां नैगमो मत:। धर्मयोर्धर्मिणोर्वापि विवक्षा धर्मधर्मिणो:।</span>=<span class="HindiText">जो एक को विषय नहीं करता उसे नैगमनय कहते हैं। अर्थात् जो मुख्य गौणरूप से दो धर्मों को, दो धर्मियों को अथवा धर्म व धर्मी दोनों को विषय करता है वह नैगम नय है। | <span class="GRef">श्लोकवार्तिक/4/1/33/ श्लोक 21/232 </span><span class="SanskritText">यद्वा नैकं गमो योऽत्र सतां नैगमो मत:। धर्मयोर्धर्मिणोर्वापि विवक्षा धर्मधर्मिणो:।</span>=<span class="HindiText">जो एक को विषय नहीं करता उसे नैगमनय कहते हैं। अर्थात् जो मुख्य गौणरूप से दो धर्मों को, दो धर्मियों को अथवा धर्म व धर्मी दोनों को विषय करता है वह नैगम नय है। <span class="GRef">(धवला 9/4,1,45/181/2)</span>; <span class="GRef">(धवला 13/5,5,7/199/1)</span>; <span class="GRef">( स्याद्वादमंजरी/28/-311/3,317/2)</span>।</span> | ||
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<div class="HindiText"> <p>सात नयों में यह प्रथम नय है । यह अनिष्पन्न पदार्थ के संकल्प मात्र को विषय करता है । यह तीन प्रकार का होता है, भूत नैगम भावी नैगम और वर्तमान नैगम । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.41-43 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText">सात नयों में यह प्रथम नय है । यह अनिष्पन्न पदार्थ के संकल्प मात्र को विषय करता है । यह तीन प्रकार का होता है, भूत नैगम भावी नैगम और वर्तमान नैगम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#41|हरिवंशपुराण - 58.41-43]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/1/33/141/2 अनभिनिवृत्तार्थसंकल्पमात्रग्राही नैगम:।=अनिष्पन्न अर्थ में संकल्प मात्र को ग्रहण करने वाला नय नैगम है। (राजवार्तिक/1/33/2/95/13); (श्लोकवार्तिक/4/1/33/ श्लोक 17/230); (हरिवंशपुराण/58/43); (तत्त्वसार/1/44)।
कार्तिकेयानुप्रेक्षा/271 जो साहेदि अदीदं वियप्परूवं भविस्समट्ठं च। संपडि कालाविट्ठं सो हु णओ णेगमो णेओ।271।=जो नय अतीत, अनागत और वर्तमान को विकल्परूप से साधता है वह नैगमनय है।
श्लोकवार्तिक/4/1/33/ श्लोक 21/232 यद्वा नैकं गमो योऽत्र सतां नैगमो मत:। धर्मयोर्धर्मिणोर्वापि विवक्षा धर्मधर्मिणो:।=जो एक को विषय नहीं करता उसे नैगमनय कहते हैं। अर्थात् जो मुख्य गौणरूप से दो धर्मों को, दो धर्मियों को अथवा धर्म व धर्मी दोनों को विषय करता है वह नैगम नय है। (धवला 9/4,1,45/181/2); (धवला 13/5,5,7/199/1); ( स्याद्वादमंजरी/28/-311/3,317/2)।
अन्य लक्षण एवं नैगम नय से संबंधित विषय जानने के लिए देखें नय - III.2, III.3।
पुराणकोष से
सात नयों में यह प्रथम नय है । यह अनिष्पन्न पदार्थ के संकल्प मात्र को विषय करता है । यह तीन प्रकार का होता है, भूत नैगम भावी नैगम और वर्तमान नैगम । हरिवंशपुराण - 58.41-43