परिकर्म: Difference between revisions
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दृष्टिप्रवाद अंग का प्रथम भेद-देखें [[ श्रुतज्ञान#III.2 | श्रुतज्ञान - III.2]]. आचार्य कुंदकुंद (ई.127-179) द्वारा षट्खंडागम के प्रथम तीन खंडों पर प्राकृत भाषा में लिखी गयी टीका। (देखें [[ कुंदकुंद ]]); (विशेष देखें [[ परिशिष्ट ]])। | == सिद्धांतकोष से == | ||
<div class="HindiText"> दृष्टिप्रवाद अंग का प्रथम भेद-देखें [[ श्रुतज्ञान#III.2 | श्रुतज्ञान - III.2]]. आचार्य कुंदकुंद (ई.127-179) द्वारा षट्खंडागम के प्रथम तीन खंडों पर प्राकृत भाषा में लिखी गयी टीका। (देखें [[ कुंदकुंद ]]); (विशेष देखें [[ परिशिष्ट ]])।</div> | |||
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<p id="1">(1) स्निग्ध पदार्थों का शोधन । <span class="GRef"> पद्मपुराण 24-51 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) स्निग्ध पदार्थों का शोधन । <span class="GRef"> पद्मपुराण 24-51 </span></p> | ||
<p id="2">(2) बारहवें दृष्टिवाद अंग का एक भेद । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.95-96 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) बारहवें दृष्टिवाद अंग का एक भेद । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#95|हरिवंशपुराण - 2.95-96]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
दृष्टिप्रवाद अंग का प्रथम भेद-देखें श्रुतज्ञान - III.2. आचार्य कुंदकुंद (ई.127-179) द्वारा षट्खंडागम के प्रथम तीन खंडों पर प्राकृत भाषा में लिखी गयी टीका। (देखें कुंदकुंद ); (विशेष देखें परिशिष्ट )।
पुराणकोष से
(1) स्निग्ध पदार्थों का शोधन । पद्मपुराण 24-51
(2) बारहवें दृष्टिवाद अंग का एक भेद । हरिवंशपुराण - 2.95-96