पौंड्र: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) भरतक्षेत्र की पूर्वदिशा में स्थित देश । यह भरतेश के एक भाई के अधीन था । उसने भरतेश की अधीनता स्वीकार नहीं की और वह दीक्षित हो गया । इसलिए यह देश भरतेश के साम्राज्य में मिल गया था । यहाँँ के राजा ने राम-लक्ष्मण और वज्रजंघ के बीच हुए युद्ध में वज्रजंघ का साथ दिया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 102. 154-157 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) भरतक्षेत्र की पूर्वदिशा में स्थित देश । यह भरतेश के एक भाई के अधीन था । उसने भरतेश की अधीनता स्वीकार नहीं की और वह दीक्षित हो गया । इसलिए यह देश भरतेश के साम्राज्य में मिल गया था । यहाँँ के राजा ने राम-लक्ष्मण और वज्रजंघ के बीच हुए युद्ध में वज्रजंघ का साथ दिया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_102#154|पद्मपुराण - 102.154-157]] </span></p> | ||
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<p id="4">(4) भद्रिलपुर नगर का राजा । इसकी पुत्री चारुहासिनी वसुदेव को विवाही गयी थी । इसने तीर्थंकर नेमि के समवसरण में जाकर उसकी वंदना की थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24.31-32, 31.28, 32.39, 59. 114 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) भद्रिलपुर नगर का राजा । इसकी पुत्री चारुहासिनी वसुदेव को विवाही गयी थी । इसने तीर्थंकर नेमि के समवसरण में जाकर उसकी वंदना की थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_24#31|हरिवंशपुराण - 24.31-32]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_31#28|हरिवंशपुराण - 31.28], 32.39, 59. 114 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
(1) भरतक्षेत्र की पूर्वदिशा में स्थित देश । यह भरतेश के एक भाई के अधीन था । उसने भरतेश की अधीनता स्वीकार नहीं की और वह दीक्षित हो गया । इसलिए यह देश भरतेश के साम्राज्य में मिल गया था । यहाँँ के राजा ने राम-लक्ष्मण और वज्रजंघ के बीच हुए युद्ध में वज्रजंघ का साथ दिया था । पद्मपुराण - 102.154-157
(2) वसुदेव की पौंड्रा रानी से उत्पन्न पुत्र । हरिवंशपुराण - 48.59
(3) वसुदेव की रानी चारुहासिनी से उत्पन्न पुत्र । हरिवंशपुराण - 24.31-33
(4) भद्रिलपुर नगर का राजा । इसकी पुत्री चारुहासिनी वसुदेव को विवाही गयी थी । इसने तीर्थंकर नेमि के समवसरण में जाकर उसकी वंदना की थी । हरिवंशपुराण - 24.31-32,[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_31#28|हरिवंशपुराण - 31.28], 32.39, 59. 114