प्रदेशत्व: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(4 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> | <p><span class="GRef"> राजवार्तिक/2/7/13/113/1 </span><span class="SanskritText">प्रदेशवत्त्वमपि साधारणं संख्येयासंख्येयानंतप्रदेशोपेतत्वात् सर्वद्रव्याणाम् । तदपि कर्मोदयाद्यपेक्षाभावात् पारिणामिकम् । </span>= <span class="HindiText">प्रदेशवत्त्व भी सर्व द्रव्यसाधारण है, क्योंकि सर्व द्रव्य अपने-अपने संख्यात, असंख्यात वा अनंत प्रदेशों को रखते हैं . यह कर्मों के उदय आदि की अपेक्षा का अभाव होने से पारिणामिक है ।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> आलापपद्धति/6 </span><span class="SanskritText">प्रदेशस्य भावः प्रदेशत्वं क्षेत्रत्वं अविभागिपुद्गलपरमाणु-नावष्टब्धम् ।</span> = <span class="HindiText">प्रदेश के भाव को प्रदेशत्व अर्थात् क्षेत्रत्व कहते हैं । वह अविभागी पुद्गल परमाणु के द्वारा घेरा हुआ स्थान मात्र होता है । <br /> | |||
</span></p> | </span></p> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong>षट् द्रव्यों में सप्रदेशी व अप्रदेशी विभाग -</strong> देखें [[ द्रव्य#3 | द्रव्य - 3]]।6 </span></li> | ||
</ul> | </ul> | ||
Line 13: | Line 13: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: प]] | [[Category: प]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
राजवार्तिक/2/7/13/113/1 प्रदेशवत्त्वमपि साधारणं संख्येयासंख्येयानंतप्रदेशोपेतत्वात् सर्वद्रव्याणाम् । तदपि कर्मोदयाद्यपेक्षाभावात् पारिणामिकम् । = प्रदेशवत्त्व भी सर्व द्रव्यसाधारण है, क्योंकि सर्व द्रव्य अपने-अपने संख्यात, असंख्यात वा अनंत प्रदेशों को रखते हैं . यह कर्मों के उदय आदि की अपेक्षा का अभाव होने से पारिणामिक है ।
आलापपद्धति/6 प्रदेशस्य भावः प्रदेशत्वं क्षेत्रत्वं अविभागिपुद्गलपरमाणु-नावष्टब्धम् । = प्रदेश के भाव को प्रदेशत्व अर्थात् क्षेत्रत्व कहते हैं । वह अविभागी पुद्गल परमाणु के द्वारा घेरा हुआ स्थान मात्र होता है ।
- षट् द्रव्यों में सप्रदेशी व अप्रदेशी विभाग - देखें द्रव्य - 3।6