भूतवाद: Difference between revisions
From जैनकोष
Anita jain (talk | contribs) mNo edit summary |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p> पृथिवी, जल, वायु और अग्नि के सयोग से चैतन्य की उत्पत्ति तथा वियोग से उसके विनाश की मान्यता । इस वाद को मानने वाले आत्मा, पुण्य-पाप और परलोक नहीं मानते । इसकी मान्यता है कि जो प्रत्यक्ष सुख को त्याग कर पारलौकिक सुख की कामना करता है वह दोनों लोकों के सुखों से वंचित हो जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 5.29-35 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> पृथिवी, जल, वायु और अग्नि के सयोग से चैतन्य की उत्पत्ति तथा वियोग से उसके विनाश की मान्यता । इस वाद को मानने वाले आत्मा, पुण्य-पाप और परलोक नहीं मानते । इसकी मान्यता है कि जो प्रत्यक्ष सुख को त्याग कर पारलौकिक सुख की कामना करता है, वह दोनों लोकों के सुखों से वंचित हो जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 5.29-35 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
पृथिवी, जल, वायु और अग्नि के सयोग से चैतन्य की उत्पत्ति तथा वियोग से उसके विनाश की मान्यता । इस वाद को मानने वाले आत्मा, पुण्य-पाप और परलोक नहीं मानते । इसकी मान्यता है कि जो प्रत्यक्ष सुख को त्याग कर पारलौकिक सुख की कामना करता है, वह दोनों लोकों के सुखों से वंचित हो जाता है । महापुराण 5.29-35