भोक्ता: Difference between revisions
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<span class="GRef"> समयसार / आत्मख्याति/320/ </span>पं. जयचंद–जो स्वतंत्रपने करे–भोगे उसको परमार्थ में कर्ता भोक्ता कहते हैं। </span></li> | <span class="GRef"> समयसार / आत्मख्याति/320/ </span>पं. जयचंद–जो स्वतंत्रपने करे–भोगे उसको परमार्थ में कर्ता भोक्ता कहते हैं। </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2" id="2">भोक्तृत्व का लक्षण</strong> </span><br /> | ||
रा./वा./2/7/13/112/13 <span class="SanskritText">भोक्तृत्वमपि साधारणम्। कुत:। तल्लक्षणोपपत्तेः। वीर्यप्रकर्षात् परद्रव्यवीर्यादानसामर्थ्यभोक्तृत्वलक्षणम्। यथा आत्मा आहारादेः परद्रव्यस्यापि वीर्यात्मसात्करणाद्भोक्ता, .... कर्मोदयापेक्षाभावात्तदपि पारिणामिकम्।</span> = <span class="HindiText">भोक्तृत्व भी साधारण है क्योंकि उसके लक्षण से ज्ञात होता है । एक प्रकृष्ट शक्ति वाले द्रव्य के द्वारा दूसरे द्रव्य की सामर्थ्य को ग्रहण करना भोक्तृत्व कहलाता है। जैसे कि आत्मा आहारादि द्रव्य की शक्ति को खींचने के कारण भोक्ता कहा जाता है। ... कर्मों के उदय आदि की अपेक्षा नहीं होने के कारण यह भी पारिणामिक भाव है।</span><br /> | रा./वा./2/7/13/112/13 <span class="SanskritText">भोक्तृत्वमपि साधारणम्। कुत:। तल्लक्षणोपपत्तेः। वीर्यप्रकर्षात् परद्रव्यवीर्यादानसामर्थ्यभोक्तृत्वलक्षणम्। यथा आत्मा आहारादेः परद्रव्यस्यापि वीर्यात्मसात्करणाद्भोक्ता, .... कर्मोदयापेक्षाभावात्तदपि पारिणामिकम्।</span> = <span class="HindiText">भोक्तृत्व भी साधारण है क्योंकि उसके लक्षण से ज्ञात होता है । एक प्रकृष्ट शक्ति वाले द्रव्य के द्वारा दूसरे द्रव्य की सामर्थ्य को ग्रहण करना भोक्तृत्व कहलाता है। जैसे कि आत्मा आहारादि द्रव्य की शक्ति को खींचने के कारण भोक्ता कहा जाता है। ... कर्मों के उदय आदि की अपेक्षा नहीं होने के कारण यह भी पारिणामिक भाव है।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/28 </span><span class="SanskritText"> स्वरूपभूतस्वातंत्र्यलक्षणसुखोपलक्षणसुखोपलंभरूपंभोक्तृत्वं।</span>=<span class="HindiText">स्वरूपभूत स्वातंत्र्य जिसका लक्षण है ऐसे सुख की उपलब्धि रूप ‘भोक्तृत्व’ होता है।</span></li> | <span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/28 </span><span class="SanskritText"> स्वरूपभूतस्वातंत्र्यलक्षणसुखोपलक्षणसुखोपलंभरूपंभोक्तृत्वं।</span>=<span class="HindiText">स्वरूपभूत स्वातंत्र्य जिसका लक्षण है ऐसे सुख की उपलब्धि रूप ‘भोक्तृत्व’ होता है।</span></li> | ||
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<li | <li class="HindiText"> जीव को भोक्ता कहने की विवक्षा।–देखें [[ जीव#1.3.6 | जीव - 1.3.6]]।<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"> भोग संबंधी विषय।–देखें [[ नीचे ]]।</span></li> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.100 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.100 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:16, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- सामान्य निर्देश
पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/27 निश्चयेन शुभाशुभकर्मनिमित्तसुखदुःखपरिणामानां, व्यवहारेण शुभाशुभकर्मसंपादितेष्टानिष्टविषयाणां भोक्तृत्वाद्भोक्ता। = निश्चय से शुभाशुभ कर्म जिनका निमित्त है, ऐसे सुख दु:ख परिणामों का भोक्तृत्व होने से भोक्ता है। व्यवहार से (असद्भूत व्यवहारनय से) शुभाशुभ कर्मों से संपादित इष्टानिष्ट विषयों का भोक्तृत्व होने से भोक्ता है।
समयसार / आत्मख्याति/320/ पं. जयचंद–जो स्वतंत्रपने करे–भोगे उसको परमार्थ में कर्ता भोक्ता कहते हैं। - भोक्तृत्व का लक्षण
रा./वा./2/7/13/112/13 भोक्तृत्वमपि साधारणम्। कुत:। तल्लक्षणोपपत्तेः। वीर्यप्रकर्षात् परद्रव्यवीर्यादानसामर्थ्यभोक्तृत्वलक्षणम्। यथा आत्मा आहारादेः परद्रव्यस्यापि वीर्यात्मसात्करणाद्भोक्ता, .... कर्मोदयापेक्षाभावात्तदपि पारिणामिकम्। = भोक्तृत्व भी साधारण है क्योंकि उसके लक्षण से ज्ञात होता है । एक प्रकृष्ट शक्ति वाले द्रव्य के द्वारा दूसरे द्रव्य की सामर्थ्य को ग्रहण करना भोक्तृत्व कहलाता है। जैसे कि आत्मा आहारादि द्रव्य की शक्ति को खींचने के कारण भोक्ता कहा जाता है। ... कर्मों के उदय आदि की अपेक्षा नहीं होने के कारण यह भी पारिणामिक भाव है।
पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/28 स्वरूपभूतस्वातंत्र्यलक्षणसुखोपलक्षणसुखोपलंभरूपंभोक्तृत्वं।=स्वरूपभूत स्वातंत्र्य जिसका लक्षण है ऐसे सुख की उपलब्धि रूप ‘भोक्तृत्व’ होता है।
- अन्य संबंधित विषय
- सम्यग्दृष्टि भोगों का भोक्ता नहीं है।–देखें राग - 6.6,7।
- षट्द्रव्यों में भोक्ता-अभोक्ता विभाग।–देखें द्रव्य - 3।
- जीव को भोक्ता कहने की विवक्षा।–देखें जीव - 1.3.6।
- भोग संबंधी विषय।–देखें नीचे ।
पुराणकोष से
सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.100