मान: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(8 intermediate revisions by 5 users not shown) | |||
Line 2: | Line 2: | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="1" id="1">अभिमान के अर्थ में</strong></span> <br /> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/8/9/5/574/30 </span><span class="SanskritText">जात्याद्युत्सेकावष्टंभात् पराप्रणतिर्मानः शैलस्तंभास्थिदारुलतासमानश्चतुर्विधः।</span> = <span class="HindiText">जाति आदि आठ मदों से (देखें [[ मद#1 | मद - 1]]) दूसरे के प्रति नमने की वृत्ति न होना मान है। वह पाषाण, हड्डी, लकड़ी और लता के भेद से चार प्रकार का है। –देखें [[ कषाय#3 | कषाय - 3]]।</span><br /> | <span class="GRef"> राजवार्तिक/8/9/5/574/30 </span><span class="SanskritText">जात्याद्युत्सेकावष्टंभात् पराप्रणतिर्मानः शैलस्तंभास्थिदारुलतासमानश्चतुर्विधः।</span> = <span class="HindiText">जाति आदि आठ मदों से (देखें [[ मद#1 | मद - 1]]) दूसरे के प्रति नमने की वृत्ति न होना मान है। वह पाषाण, हड्डी, लकड़ी और लता के भेद से चार प्रकार का है। <br> | ||
<span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/111/349/7 </span><span class="SanskritText">रोषेण विद्यातपोजात्यादिमदेन वान्यस्यानवनति:।</span> =<span class="HindiText"> रोष से अथवा विद्या तप और जाति आदि के मद से (देखें [[ मद#2 | मद - 2]]) दूसरे के तिरस्काररूप भाव को मान कहते हैं।</span><br /> | –देखें [[ कषाय#3 | कषाय - 3]]।</span><br /><br> | ||
<span class="GRef"> धवला 6/1,9-1,23/41/4 </span><span class="SanskritText"> मानो गर्वः स्तब्धमित्येकोऽर्थः।</span> = <span class="HindiText">मान, गर्व, और स्तब्धत्व ये एकार्थवाची हैं।</span><br /> | |||
<span class="GRef"> धवला 13/4,2,8,8/283/6 </span><span class="SanskritText">विज्ञानैश्वर्यजातिकुलतपोविद्याजनितो जीवपरिणाम: औद्धत्यात्मको मान:</span>= <span class="HindiText">विज्ञान, ऐश्वर्य, जाति, कुल, तप और विद्या इनके निमित्त से उत्पन्न उद्धततारूप जीव का परिणाम मान कहलाता है।</span><br /> | <span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/111/349/7 </span><span class="SanskritText">रोषेण विद्यातपोजात्यादिमदेन वान्यस्यानवनति:।</span> =<span class="HindiText"> रोष से अथवा विद्या तप और जाति आदि के मद से (देखें [[ मद#2 | मद - 2]]) दूसरे के तिरस्काररूप भाव को मान कहते हैं।</span><br /><br> | ||
<span class="GRef"> नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/112 </span><span class="SanskritText">कवित्वेन ... सकलजनपूज्यतया–कुलजातिविशुद्धया वा ... निरुपमबलेन च .... संपद्वृद्धिविलासेन, अथवा .... ऋद्धिभिः सप्तभिर्वा ... वपुर्लावण्यरसविसरेन वा आत्माहंकारो मान:।</span> = <span class="HindiText">कवित्व कौशल के कारण, समस्तजनों द्वारा पूजनीयपने से, कुलजाति की विशुद्धि से, निरुपम बल से, संपत्ति की वृद्धि के विलास से, सात ऋद्धियों से, अथवा शरीर लावण्यरस के विस्तार से होने वाला जो आत्म-अहंकार वह मान है।</span></li> | |||
<li | <span class="GRef"> धवला 6/1,9-1,23/41/4 </span><span class="SanskritText"> मानो गर्वः स्तब्धमित्येकोऽर्थः।</span> = <span class="HindiText">मान, गर्व, और स्तब्धत्व ये एकार्थवाची हैं।</span><br /><br> | ||
<span class="GRef"> धवला 12/4,2,8,10/285/9 </span><span class="SanskritText">मानं प्रस्थादिः हीनाधिकभावमापन्नः। </span>= <span class="HindiText">हीनता अधिकता को प्राप्त प्रस्थादि मान कहलाते हैं।</span><br /> | |||
<span class="GRef"> न्यायविनिश्चय/ | <span class="GRef"> धवला 13/4,2,8,8/283/6 </span><span class="SanskritText">विज्ञानैश्वर्यजातिकुलतपोविद्याजनितो जीवपरिणाम: औद्धत्यात्मको मान:</span>= <span class="HindiText">विज्ञान, ऐश्वर्य, जाति, कुल, तप और विद्या इनके निमित्त से उत्पन्न उद्धततारूप जीव का परिणाम मान कहलाता है।</span><br /><br> | ||
<span class="GRef"> नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/112 </span><span class="SanskritText">कवित्वेन ... सकलजनपूज्यतया–कुलजातिविशुद्धया वा ... निरुपमबलेन च .... संपद्वृद्धिविलासेन, अथवा .... ऋद्धिभिः सप्तभिर्वा ... वपुर्लावण्यरसविसरेन वा आत्माहंकारो मान:।</span> = <span class="HindiText">कवित्व कौशल के कारण, समस्तजनों द्वारा पूजनीयपने से, कुलजाति की विशुद्धि से, निरुपम बल से, संपत्ति की वृद्धि के विलास से, सात ऋद्धियों से, अथवा शरीर लावण्यरस के विस्तार से होने वाला जो आत्म-अहंकार है, वह मान है।</span></li><br> | |||
<li class="HindiText"><strong name="2" id="2"> प्रमाण या माप के अर्थ में</strong> </span><br /><br> | |||
<span class="GRef"> धवला 12/4,2,8,10/285/9 </span><span class="SanskritText">मानं प्रस्थादिः हीनाधिकभावमापन्नः। </span>= <span class="HindiText">हीनता अधिकता को प्राप्त प्रस्थादि मान कहलाते हैं।</span><br /><br> | |||
<span class="GRef"> न्यायविनिश्चय/वृ./1/112/425/1 </span> <span class="SanskritText">मानं तोलनम्।</span> = <span class="HindiText">मान अर्थात् तोल या माप। <br /> | |||
</span></li> | </span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong> अन्य संबंधित विषय</strong><br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol> | <ol> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li class="HindiText"> मान संबंधी विषय विस्तार–देखें [[ कषाय ]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> जीव को मानी कहने की विवक्षा–देखें [[ जीव#1.3 | जीव - 1.3]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> आहार का एक दोष–देखें [[ आहार#II.4.4 | आहार - II.4.4]]।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> वसतिका का एक दोष–देखें [[ वसतिका#8|वसतिका-8 ]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> आठ मद।–देखें [[ मद ]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> मान प्रमाण व उसके भेदाभेद–देखें [[ प्रमाण#5 | प्रमाण - 5]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> मान की अनिष्टता–देखें [[ वर्ण व्यवस्था#1.6 | वर्ण व्यवस्था - 1.6]]। </span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 42: | Line 50: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] | |||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायों में दूसरी कषाय― अभियान । इसे (अहंकार का त्याग कर) मृदुता से जीता जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 36. 129, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 14.110-111 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायों में दूसरी कषाय― अभियान । इसे (अहंकार का त्याग कर) मृदुता से जीता जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 36. 129, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_14#110|पद्मपुराण - 14.110-111]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) प्रमाण या माप । इसके चार भेद हैं― मेय, देश, तुला और काल । इनमें प्रस्थ आदि मेयमान, वितस्ति (हाथ) देशमान, ग्राम, किलो आदि तुलामान और समय, घड़ी, घंटा कालमान है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 24.60-61 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) प्रमाण या माप । इसके चार भेद हैं― मेय, देश, तुला और काल । इनमें प्रस्थ आदि मेयमान, वितस्ति (हाथ) देशमान, ग्राम, किलो आदि तुलामान और समय, घड़ी, घंटा कालमान है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_24#60|पद्मपुराण - 24.60-61]] </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Line 57: | Line 65: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] | [[Category: चरणानुयोग]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] | [[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- अभिमान के अर्थ में
राजवार्तिक/8/9/5/574/30 जात्याद्युत्सेकावष्टंभात् पराप्रणतिर्मानः शैलस्तंभास्थिदारुलतासमानश्चतुर्विधः। = जाति आदि आठ मदों से (देखें मद - 1) दूसरे के प्रति नमने की वृत्ति न होना मान है। वह पाषाण, हड्डी, लकड़ी और लता के भेद से चार प्रकार का है।
–देखें कषाय - 3।
धवला 1/1,1,1/111/349/7 रोषेण विद्यातपोजात्यादिमदेन वान्यस्यानवनति:। = रोष से अथवा विद्या तप और जाति आदि के मद से (देखें मद - 2) दूसरे के तिरस्काररूप भाव को मान कहते हैं।
धवला 6/1,9-1,23/41/4 मानो गर्वः स्तब्धमित्येकोऽर्थः। = मान, गर्व, और स्तब्धत्व ये एकार्थवाची हैं।
धवला 13/4,2,8,8/283/6 विज्ञानैश्वर्यजातिकुलतपोविद्याजनितो जीवपरिणाम: औद्धत्यात्मको मान:= विज्ञान, ऐश्वर्य, जाति, कुल, तप और विद्या इनके निमित्त से उत्पन्न उद्धततारूप जीव का परिणाम मान कहलाता है।
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/112 कवित्वेन ... सकलजनपूज्यतया–कुलजातिविशुद्धया वा ... निरुपमबलेन च .... संपद्वृद्धिविलासेन, अथवा .... ऋद्धिभिः सप्तभिर्वा ... वपुर्लावण्यरसविसरेन वा आत्माहंकारो मान:। = कवित्व कौशल के कारण, समस्तजनों द्वारा पूजनीयपने से, कुलजाति की विशुद्धि से, निरुपम बल से, संपत्ति की वृद्धि के विलास से, सात ऋद्धियों से, अथवा शरीर लावण्यरस के विस्तार से होने वाला जो आत्म-अहंकार है, वह मान है। - प्रमाण या माप के अर्थ में
धवला 12/4,2,8,10/285/9 मानं प्रस्थादिः हीनाधिकभावमापन्नः। = हीनता अधिकता को प्राप्त प्रस्थादि मान कहलाते हैं।
न्यायविनिश्चय/वृ./1/112/425/1 मानं तोलनम्। = मान अर्थात् तोल या माप।
- अन्य संबंधित विषय
- मान संबंधी विषय विस्तार–देखें कषाय ।
- जीव को मानी कहने की विवक्षा–देखें जीव - 1.3।
- आहार का एक दोष–देखें आहार - II.4.4।
- वसतिका का एक दोष–देखें वसतिका-8 ।
- आठ मद।–देखें मद ।
- मान प्रमाण व उसके भेदाभेद–देखें प्रमाण - 5।
- मान की अनिष्टता–देखें वर्ण व्यवस्था - 1.6।
पुराणकोष से
(1) क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायों में दूसरी कषाय― अभियान । इसे (अहंकार का त्याग कर) मृदुता से जीता जाता है । महापुराण 36. 129, पद्मपुराण - 14.110-111
(2) प्रमाण या माप । इसके चार भेद हैं― मेय, देश, तुला और काल । इनमें प्रस्थ आदि मेयमान, वितस्ति (हाथ) देशमान, ग्राम, किलो आदि तुलामान और समय, घड़ी, घंटा कालमान है । पद्मपुराण - 24.60-61