मुक्तावलीव्रत: Difference between revisions
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<p> एक व्रत । इसमें 1, 2, 3, 4, 5, 4, 3, 2, 1 के क्रम से पच्चीस उपवास और उपवासों के पश्चात् एक पारणा की जाती है । इस प्रकार यह व्रत चौंतीस दिनों में पूर्ण होता है । ऐसा व्रती मनुष्यों में श्रेष्ठ होकर अंत में मोक्ष जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 7.30-31, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.69-70, 60.83-84 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक व्रत । इसमें 1, 2, 3, 4, 5, 4, 3, 2, 1 के क्रम से पच्चीस उपवास और उपवासों के पश्चात् एक पारणा की जाती है । इस प्रकार यह व्रत चौंतीस दिनों में पूर्ण होता है । ऐसा व्रती मनुष्यों में श्रेष्ठ होकर अंत में मोक्ष जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 7.30-31, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#69|हरिवंशपुराण - 34.69-70]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#83|हरिवंशपुराण - 60.83-84]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
एक व्रत । इसमें 1, 2, 3, 4, 5, 4, 3, 2, 1 के क्रम से पच्चीस उपवास और उपवासों के पश्चात् एक पारणा की जाती है । इस प्रकार यह व्रत चौंतीस दिनों में पूर्ण होता है । ऐसा व्रती मनुष्यों में श्रेष्ठ होकर अंत में मोक्ष जाता है । महापुराण 7.30-31, हरिवंशपुराण - 34.69-70, हरिवंशपुराण - 60.83-84