मुदित: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(6 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> पद्मिनी नगर के राजा विजयपर्वत के दूत अमृतस्वर और उसकी स्त्री उपयोगा का कनिष्ठ पुत्र, उदित का छोटा भाई । वसुभूति इन दोनों के पिता का मित्र था । वह इसकी माता को चाहता था और इसकी माता उसे चाहती थी । वसुभूति ने इसके पिता को मार डाला था । इस घटना से कुपित होकर इसके भाई उदित ने | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> पद्मिनी नगर के राजा विजयपर्वत के दूत अमृतस्वर और उसकी स्त्री उपयोगा का कनिष्ठ पुत्र, उदित का छोटा भाई । वसुभूति इन दोनों के पिता का मित्र था । वह इसकी माता को चाहता था और इसकी माता उसे चाहती थी । वसुभूति ने इसके पिता को मार डाला था । इस घटना से कुपित होकर इसके भाई उदित ने वसुभूति को मार डाला । वह मरकर म्लेच्छ हुआ । इसके पश्चात् दोनों भाई मतिवर्धन आचार्य द्वारा राजा को दिये गये उपदेश को सुनकर उनसे दीक्षित हो गए । विहार करते हुए दोनों भाई सम्मेदाचल जा रहे थे । राह भूल जाने से वे उस अटवी में पहुंचे जहाँ वसुभूति का जीव म्लेच्छ हुआ था । इस अटवी में म्लेच्छ इन्हें मारने के लिए तत्पर दिखाई दिया । ये दोनों प्रतिमायोग में स्थिर हो गये । म्लेच्छ इन्हें मारने आया किंतु उसके सेनापति ने उसे इन्हें नहीं मारने दिया । इस उपसर्ग से बचकर दोनों सम्मेदाचल गये । वहाँ दोनों ने जिनवंदना की । अंत में दोनों चिरकाल तक रत्नत्रय की आराधना करते हुए मरे और स्वर्ग गये । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_39#84|पद्मपुराण - 39.84-145]] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ मुचिलिंद | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ मुद्ग | अगला पृष्ठ ]] | [[ मुद्ग | अगला पृष्ठ ]] | ||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
पद्मिनी नगर के राजा विजयपर्वत के दूत अमृतस्वर और उसकी स्त्री उपयोगा का कनिष्ठ पुत्र, उदित का छोटा भाई । वसुभूति इन दोनों के पिता का मित्र था । वह इसकी माता को चाहता था और इसकी माता उसे चाहती थी । वसुभूति ने इसके पिता को मार डाला था । इस घटना से कुपित होकर इसके भाई उदित ने वसुभूति को मार डाला । वह मरकर म्लेच्छ हुआ । इसके पश्चात् दोनों भाई मतिवर्धन आचार्य द्वारा राजा को दिये गये उपदेश को सुनकर उनसे दीक्षित हो गए । विहार करते हुए दोनों भाई सम्मेदाचल जा रहे थे । राह भूल जाने से वे उस अटवी में पहुंचे जहाँ वसुभूति का जीव म्लेच्छ हुआ था । इस अटवी में म्लेच्छ इन्हें मारने के लिए तत्पर दिखाई दिया । ये दोनों प्रतिमायोग में स्थिर हो गये । म्लेच्छ इन्हें मारने आया किंतु उसके सेनापति ने उसे इन्हें नहीं मारने दिया । इस उपसर्ग से बचकर दोनों सम्मेदाचल गये । वहाँ दोनों ने जिनवंदना की । अंत में दोनों चिरकाल तक रत्नत्रय की आराधना करते हुए मरे और स्वर्ग गये । पद्मपुराण - 39.84-145