मृदंग: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> एक मांगलिक वाद्य । यह स्वयंवर और सैन्य प्रस्थान काल आदि मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है । बजाने के लिए इसके ऊपरी भाग को पीटा जाता है । इसका खोल मिट्टी से निर्मित होने के कारण इसे मृदंग कहते हैं । इसके दोनों ओर के मुख चमड़े से मढ़े जाते हैं । यह बीच में चौड़ा और दोनों भागों में संकीर्ण होता है । ऊर्ध्व लोक का आकार इसके ही समान है । <span class="GRef"> महापुराण 3.174, 4.41, 12.204-206, 13. 177, 17.143, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#379|पद्मपुराण -6. 379]], 36.92, 58.27 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक मांगलिक वाद्य । यह स्वयंवर और सैन्य प्रस्थान काल आदि मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है । बजाने के लिए इसके ऊपरी भाग को पीटा जाता है । इसका खोल मिट्टी से निर्मित होने के कारण इसे मृदंग कहते हैं । इसके दोनों ओर के मुख चमड़े से मढ़े जाते हैं । यह बीच में चौड़ा और दोनों भागों में संकीर्ण होता है । ऊर्ध्व लोक का आकार इसके ही समान है । <span class="GRef"> महापुराण 3.174, 4.41, 12.204-206, 13. 177, 17.143, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#379|पद्मपुराण -6. 379]], 36.92, 58.27 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
एक मांगलिक वाद्य । यह स्वयंवर और सैन्य प्रस्थान काल आदि मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है । बजाने के लिए इसके ऊपरी भाग को पीटा जाता है । इसका खोल मिट्टी से निर्मित होने के कारण इसे मृदंग कहते हैं । इसके दोनों ओर के मुख चमड़े से मढ़े जाते हैं । यह बीच में चौड़ा और दोनों भागों में संकीर्ण होता है । ऊर्ध्व लोक का आकार इसके ही समान है । महापुराण 3.174, 4.41, 12.204-206, 13. 177, 17.143, पद्मपुराण -6. 379, 36.92, 58.27