मृदंगमध्यमव्रत: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> एक व्रत । इसमें क्रमश: दो, तीन, चार, पाँच, चार, तीन और दो उपवास किये जाते हैं । प्रत्येक क्रम के बाद एक पारणा की जाती है । इस प्रकार इसमें तेईस उपवास और सात पारणाएँ की जाती है । इसके करने से क्षीरस्रावि आदि ऋद्धियां, अवधिज्ञान और क्रमश: मोक्ष प्राप्त होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.64-65 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक व्रत । इसमें क्रमश: दो, तीन, चार, पाँच, चार, तीन और दो उपवास किये जाते हैं । प्रत्येक क्रम के बाद एक पारणा की जाती है । इस प्रकार इसमें तेईस उपवास और सात पारणाएँ की जाती है । इसके करने से क्षीरस्रावि आदि ऋद्धियां, अवधिज्ञान और क्रमश: मोक्ष प्राप्त होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#64|हरिवंशपुराण - 34.64-65]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
एक व्रत । इसमें क्रमश: दो, तीन, चार, पाँच, चार, तीन और दो उपवास किये जाते हैं । प्रत्येक क्रम के बाद एक पारणा की जाती है । इस प्रकार इसमें तेईस उपवास और सात पारणाएँ की जाती है । इसके करने से क्षीरस्रावि आदि ऋद्धियां, अवधिज्ञान और क्रमश: मोक्ष प्राप्त होता है । हरिवंशपुराण - 34.64-65