रतिवर्द्धन: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) विद्याघरों का स्वामी । यह राम का पक्षधर योद्धा था । भरत के साथ इसने दीक्षा ले ली थी । महापुराण 58. 3-7, 88.1-9</p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) विद्याघरों का स्वामी । यह राम का पक्षधर योद्धा था । भरत के साथ इसने दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> (महापुराण 58. 3-7, 88.1-9) </span></p> | ||
<p id="2">(2) भरतक्षेत्र की | <p id="2" class="HindiText">(2) भरतक्षेत्र की काकंदी नगरी का राजा । इसकी रानी सुदर्शना थी । इसके दो पुत्र थे― प्रियंकर और हितंकर । सर्वगुप्त इसका मंत्री था । वह ईर्षा वश इसका वध करना चाहता था । मंत्री की पत्नी विजयावली इसे चाहती थी अत: उसने अपने पति का रहस्य इससे प्रकट कर दिया जिससे यह सावधान रहने लगा था । एक दिन मंत्री सर्वगुप्त ने इसके महल में आग लगवा दी । यह अपनी स्त्री और बच्चों के साथ पूर्व निर्मित सुरंग से बाहर निकल गया और काशी के राजा कशिपु के पास गया । कशिपु और इसके मंत्री सर्वगुप्त के बीच युद्ध हुआ । सर्वगुप्त जीवित पकड़ा गया और इसे अपने राज्य की प्राप्ति हो गयी । अंत में यह भोगों से विरक्त हुआ और इसने जिनदीक्षा धारण कर ली । मंत्री की पत्नी विजयावली मरकर राक्षसी हुई । इस राक्षसी ने मुनि-अवस्था में इसके ऊपर घोर उपसर्ग किये किंतु ध्यान में लीन रहकर इसने उन्हें सहन किया । पश्चात् शुक्लध्यान द्वारा कर्म नाश करके यह मुक्त हुआ । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_108#7|पद्मपुराण - 108.7-38]], [ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_108#45|45]]) </span></p> | ||
<p id="3">(3) कीचक मुनिराज के दीक्षागुरु एक मुनि । हरिवंशपुराण 46.37</p> | <p id="3" class="HindiText">(3) कीचक मुनिराज के दीक्षागुरु एक मुनि । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_46#37|हरिवंशपुराण - 46.37]]) </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
(1) विद्याघरों का स्वामी । यह राम का पक्षधर योद्धा था । भरत के साथ इसने दीक्षा ले ली थी । (महापुराण 58. 3-7, 88.1-9)
(2) भरतक्षेत्र की काकंदी नगरी का राजा । इसकी रानी सुदर्शना थी । इसके दो पुत्र थे― प्रियंकर और हितंकर । सर्वगुप्त इसका मंत्री था । वह ईर्षा वश इसका वध करना चाहता था । मंत्री की पत्नी विजयावली इसे चाहती थी अत: उसने अपने पति का रहस्य इससे प्रकट कर दिया जिससे यह सावधान रहने लगा था । एक दिन मंत्री सर्वगुप्त ने इसके महल में आग लगवा दी । यह अपनी स्त्री और बच्चों के साथ पूर्व निर्मित सुरंग से बाहर निकल गया और काशी के राजा कशिपु के पास गया । कशिपु और इसके मंत्री सर्वगुप्त के बीच युद्ध हुआ । सर्वगुप्त जीवित पकड़ा गया और इसे अपने राज्य की प्राप्ति हो गयी । अंत में यह भोगों से विरक्त हुआ और इसने जिनदीक्षा धारण कर ली । मंत्री की पत्नी विजयावली मरकर राक्षसी हुई । इस राक्षसी ने मुनि-अवस्था में इसके ऊपर घोर उपसर्ग किये किंतु ध्यान में लीन रहकर इसने उन्हें सहन किया । पश्चात् शुक्लध्यान द्वारा कर्म नाश करके यह मुक्त हुआ । (पद्मपुराण - 108.7-38, [ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_108#45|45]])
(3) कीचक मुनिराज के दीक्षागुरु एक मुनि । (हरिवंशपुराण - 46.37)