रस: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 6/1, 9-1, 28/55/7 </span><span class="PrakritText">जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जादि पडिणियदो तित्तादिरसो होज्ज तस्स कम्मक्खंधस्स रस-सण्णा । एदस्स कम्मस्साभावे जीवसरीरे जाइपडिणियदरसो ण होज्ज । ण च एवं णिबंवजंबीरादिसु णियदरसस्सुवलंभादो ।</span> = <span class="HindiText">जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत तिक्त आदि रस उत्पन्न हो, उस कर्म स्कंध की ‘रस’ यह संज्ञा है । <span class="GRef">( धवला 13/5, 5, 101/ 364/8 )</span>। इस कर्म के अभाव में जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत रस नहीं होगा । किंतु ऐसा है नहीं, क्योंकि नीम, आम और नींबू आदि में प्रतिनियत रस पाया जाता है । <br /> | |||
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<span class="GRef"> षट्खंडागम/6/1, 9-1/ </span>सू. 39/75 <span class="PrakritText">जं तं रसणामकम्मं तं पंचविहं, तित्तणामं कडुवणामं कसायणामं अंबणामं महुणामं चेदि ।75। </span>= <span class="HindiText">जो रस नामकर्म है वह पाँच प्रकार का है - तिक्त नामकर्म, कटुकनामकर्म, कषायनामकर्म, आम्लनामकर्म और मधुर नामकर्म । <span class="GRef">( षट्खंडागम/13/5, 5/ </span>सू. 112/370); <span class="GRef">( सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/10 )</span>; <span class="GRef">( सर्वार्थसिद्धि/5/23/293/12 )</span>; (प. स./प्रा./2/4/48/1); <span class="GRef">( राजवार्तिक/8/11/10/577/15 )</span>; <span class="GRef">( परमात्मप्रकाश टीका/1/19/26/2 )</span>; <span class="GRef">( द्रव्यसंग्रह टीका/7/19/12 )</span>; <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/479/ 885/1 )</span> । </span><br /> | |||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/23/294/2 </span><span class="SanskritText"> त एते मूलभेदाः प्रत्येकं संख्येयासंख्येयानंतभेदाश्च भवंति । </span>= <span class="HindiText">ये रस के मूल भेद हैं, वैसे प्रत्येक (रसादि के) के संख्यात असंख्यात और अनंत भेद होते हैं । <br /> | |||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="4" id="4"> गोरस आदि के लक्षण</strong></span><br /> | ||
<span class="GRef"> सागार धर्मामृत/5/35 </span>पर उद्धृत - <span class="SanskritText">गोरसः क्षीरघृतादि, इक्षुरसः खंडगुड आदि, फलरसो द्राक्षाम्रादिनिष्यंदः, धान्यरसस्तैलमंडादि । </span>= <span class="HindiText">घी, दूध आदि गोरस हैं । शक्कर, गुड़ आदि इक्षुरस हैं । द्राक्षा, आम आदि के रस को फल रस कहते हैं और तेल, माँड़ आदि को धान्यरस कहते हैं । <br /> | |||
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<p id="1"> (1) रसना-इंद्रिय का विषय । यह छ: प्रकार का होता है—कडुवा, खट्टा, चरपरा, मीठा, कषायला और खारा । <span class="GRef"> महापुराण 9.46, 75.620-621 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) रसना-इंद्रिय का विषय । यह छ: प्रकार का होता है—कडुवा, खट्टा, चरपरा, मीठा, कषायला और खारा । <span class="GRef"> महापुराण 9.46, 75.620-621 </span></p> | ||
<p id="2">(2) काव्य का एक अंग । ये नौ होते हैं― शृंगार, हास्य, करुण, वीर, अद्भुत, भयानक, रौद्र, बीभत्स और शांत । <span class="GRef"> पद्मपुराण 24.22-23 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) काव्य का एक अंग । ये नौ होते हैं― शृंगार, हास्य, करुण, वीर, अद्भुत, भयानक, रौद्र, बीभत्स और शांत । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_24#22|पद्मपुराण - 24.22-23]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) रत्नप्रभा पृथिवी के खरभाग का नौवाँ पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.53 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) रत्नप्रभा पृथिवी के खरभाग का नौवाँ पटल । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#53|हरिवंशपुराण - 4.53]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- रस सामान्य का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/2/20/178-179/9 रस्यत इति रसः ।....रसनं रसः । = जो स्वाद को प्राप्त होता है वह रस है ।...अथवा रसन अर्थात् स्वादमात्र रस है । ( सर्वार्थसिद्धि/5/23/293/12 ), ( राजवार्तिक/2/20/132/31 )।
धवला 1/1, 1, 33/242/2 यदा वस्तु प्राधान्येन विवक्षितं तदा वस्तु व्यतिरिक्तपर्यायाभावाद्वस्त्वेव रसः । एतस्यां विवक्षायां कर्मसाधनत्वं रसस्य, यथा रस्यत इति रसः । यदा तु पर्यायः प्राधान्येन विवक्षितस्तदा भेदोपपत्तेः औदासीन्यावस्थितभावकथनाद्भावसाधनत्व रसस्य, रसनं रस इति । = जिस समय प्रधान रूप से वस्तु विवक्षित होती है, उस समय वस्तु को छोड़कर पर्याय नहीं पायी जाती है, इसलिए वस्तु ही रस है । इस विवक्षा में रस के कर्म साधनपना है । जैसे जो चखा जाये वह रस है । तथा जिस समय प्रधान रूप से पर्याय विवक्षित होती है, उस समय द्रव्य से पर्याय का भेद बन जाता है, इसलिए जो उदासीन रूप से भाव अवस्थित है उसका कथन किया जाता है । इस प्रकार रस के भाव-साधन भी बन जाता है, जैसे−आस्वादन रूप क्रियाधर्म को रस कहते हैं ।
- रस नामकर्म का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/9 यन्निमित्तो रसविकल्पस्तद्रस नाम । = जिसके उदय से रस में भेद होता है वह रस नामकर्म है । ( राजवार्तिक/8/11/10/577/15 ), ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/14 )।
धवला 6/1, 9-1, 28/55/7 जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जादि पडिणियदो तित्तादिरसो होज्ज तस्स कम्मक्खंधस्स रस-सण्णा । एदस्स कम्मस्साभावे जीवसरीरे जाइपडिणियदरसो ण होज्ज । ण च एवं णिबंवजंबीरादिसु णियदरसस्सुवलंभादो । = जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत तिक्त आदि रस उत्पन्न हो, उस कर्म स्कंध की ‘रस’ यह संज्ञा है । ( धवला 13/5, 5, 101/ 364/8 )। इस कर्म के अभाव में जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत रस नहीं होगा । किंतु ऐसा है नहीं, क्योंकि नीम, आम और नींबू आदि में प्रतिनियत रस पाया जाता है ।
- रस के भेद
षट्खंडागम/6/1, 9-1/ सू. 39/75 जं तं रसणामकम्मं तं पंचविहं, तित्तणामं कडुवणामं कसायणामं अंबणामं महुणामं चेदि ।75। = जो रस नामकर्म है वह पाँच प्रकार का है - तिक्त नामकर्म, कटुकनामकर्म, कषायनामकर्म, आम्लनामकर्म और मधुर नामकर्म । ( षट्खंडागम/13/5, 5/ सू. 112/370); ( सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/10 ); ( सर्वार्थसिद्धि/5/23/293/12 ); (प. स./प्रा./2/4/48/1); ( राजवार्तिक/8/11/10/577/15 ); ( परमात्मप्रकाश टीका/1/19/26/2 ); ( द्रव्यसंग्रह टीका/7/19/12 ); ( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/479/ 885/1 ) ।
सर्वार्थसिद्धि/5/23/294/2 त एते मूलभेदाः प्रत्येकं संख्येयासंख्येयानंतभेदाश्च भवंति । = ये रस के मूल भेद हैं, वैसे प्रत्येक (रसादि के) के संख्यात असंख्यात और अनंत भेद होते हैं ।
- गोरस आदि के लक्षण
सागार धर्मामृत/5/35 पर उद्धृत - गोरसः क्षीरघृतादि, इक्षुरसः खंडगुड आदि, फलरसो द्राक्षाम्रादिनिष्यंदः, धान्यरसस्तैलमंडादि । = घी, दूध आदि गोरस हैं । शक्कर, गुड़ आदि इक्षुरस हैं । द्राक्षा, आम आदि के रस को फल रस कहते हैं और तेल, माँड़ आदि को धान्यरस कहते हैं ।
- अन्य संबंधित विषय
- रस परित्याग की अपेक्षा रस के भेद के लिए − देखें रसपरित्याग ।
- रस नामकर्म में रस सकारण है या निष्कारण के लिए − देखें वर्ण - 4 ।
- गोरस शुद्धि ।−देखें भक्ष्याभक्ष्य - 3 ।
- रस नाम प्रकृति की बंध उदय सत्त्व प्ररूपणा के लिए − देखे वह वह नाम ।
- अग्नि आदि में भी रस की सिद्धि के लिए−देखें पुद्गल - 10 ।
पुराणकोष से
(1) रसना-इंद्रिय का विषय । यह छ: प्रकार का होता है—कडुवा, खट्टा, चरपरा, मीठा, कषायला और खारा । महापुराण 9.46, 75.620-621
(2) काव्य का एक अंग । ये नौ होते हैं― शृंगार, हास्य, करुण, वीर, अद्भुत, भयानक, रौद्र, बीभत्स और शांत । पद्मपुराण - 24.22-23
(3) रत्नप्रभा पृथिवी के खरभाग का नौवाँ पटल । हरिवंशपुराण - 4.53