राज्याभिषेक: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> राजा को राज्य का स्वामित्व प्राप्त होने के समय होने वाली राजकीय एक विधिस्नपनक्रिया । इस समय नगर ध्वजा और पताकाओं से सजाया जाता है । बंदी जन मंगलपाठ करते हैं । जय-जय की ध्वनि होती है । सभामंडप के मध्य मिट्टी की वेदी का सृजन होता है । आनंदमंडप में सुगंधित पुष्प फैलाये जाते हैं । मोतियों के बंदनवारे लटकाये जाते हैं । मंडप के मध्य में अष्ट मंगलद्रव्य रखे जाते हैं । जिसका राज्याभिषेक होना होता है उसे पूर्व की ओर मुख करके सिंहासन पर बैठाया जाता है । सामंत एवं अधीनस्थ राजन्यवर्ग स्वर्ण कलशों मे रखे गये औषधिमिश्रित जल से उसका अभिषेक करते हैं । इसके लिए जल गंगा, सिंधु आदि नदियों तथा गंगाकुंड और सिंधकुंड से लाया जाता । उत्तराधिकार प्रदान है करनेवाला राजा उत्तराधिकारी का अभिषेक होने के पश्चात् पट्ट बाँधकर उसे वस्त्राभूषण देते हुए राज्य का स्वामित्व प्रदान करता है । <span class="GRef"> महापुराण 16.196-215, 225-233 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> राजा को राज्य का स्वामित्व प्राप्त होने के समय होने वाली राजकीय एक विधिस्नपनक्रिया । इस समय नगर ध्वजा और पताकाओं से सजाया जाता है । बंदी जन मंगलपाठ करते हैं । जय-जय की ध्वनि होती है । सभामंडप के मध्य मिट्टी की वेदी का सृजन होता है । आनंदमंडप में सुगंधित पुष्प फैलाये जाते हैं । मोतियों के बंदनवारे लटकाये जाते हैं । मंडप के मध्य में अष्ट मंगलद्रव्य रखे जाते हैं । जिसका राज्याभिषेक होना होता है उसे पूर्व की ओर मुख करके सिंहासन पर बैठाया जाता है । सामंत एवं अधीनस्थ राजन्यवर्ग स्वर्ण कलशों मे रखे गये औषधिमिश्रित जल से उसका अभिषेक करते हैं । इसके लिए जल गंगा, सिंधु आदि नदियों तथा गंगाकुंड और सिंधकुंड से लाया जाता । उत्तराधिकार प्रदान है करनेवाला राजा उत्तराधिकारी का अभिषेक होने के पश्चात् पट्ट बाँधकर उसे वस्त्राभूषण देते हुए राज्य का स्वामित्व प्रदान करता है । <span class="GRef"> महापुराण 16.196-215, 225-233 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
राजा को राज्य का स्वामित्व प्राप्त होने के समय होने वाली राजकीय एक विधिस्नपनक्रिया । इस समय नगर ध्वजा और पताकाओं से सजाया जाता है । बंदी जन मंगलपाठ करते हैं । जय-जय की ध्वनि होती है । सभामंडप के मध्य मिट्टी की वेदी का सृजन होता है । आनंदमंडप में सुगंधित पुष्प फैलाये जाते हैं । मोतियों के बंदनवारे लटकाये जाते हैं । मंडप के मध्य में अष्ट मंगलद्रव्य रखे जाते हैं । जिसका राज्याभिषेक होना होता है उसे पूर्व की ओर मुख करके सिंहासन पर बैठाया जाता है । सामंत एवं अधीनस्थ राजन्यवर्ग स्वर्ण कलशों मे रखे गये औषधिमिश्रित जल से उसका अभिषेक करते हैं । इसके लिए जल गंगा, सिंधु आदि नदियों तथा गंगाकुंड और सिंधकुंड से लाया जाता । उत्तराधिकार प्रदान है करनेवाला राजा उत्तराधिकारी का अभिषेक होने के पश्चात् पट्ट बाँधकर उसे वस्त्राभूषण देते हुए राज्य का स्वामित्व प्रदान करता है । महापुराण 16.196-215, 225-233