विद्युच्चोर: Difference between revisions
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(महापुराण/76/श्लोक) - <p class="HindiText">पोदनपुर के राजा विद्युद्राज का पुत्र था। विद्युच्चर नाम का कुशल चोर बना। जंबूकुमार के घर चोरी करने गया।46-57। वहाँ दीक्षा को कटिबद्ध जंबूकुमार को अनेकों कथाएँ बताकर रोकने का प्रयत्न किया।58-107। पर स्वयं उनके उपदेशों से प्रभावित होकर उनके साथ ही दीक्षा धारण कर ली | | (महापुराण/76/श्लोक) - <p class="HindiText">पोदनपुर के राजा विद्युद्राज का पुत्र था। विद्युच्चर नाम का कुशल चोर बना। जंबूकुमार के घर चोरी करने गया।46-57। वहाँ दीक्षा को कटिबद्ध जंबूकुमार को अनेकों कथाएँ बताकर रोकने का प्रयत्न किया।58-107। पर स्वयं उनके उपदेशों से प्रभावित होकर उनके साथ ही दीक्षा धारण कर ली |<br> | ||
देखें [[ विद्युत्प्रभ#6 | विद्युत्प्रभ - 6]]।</p> | देखें [[ विद्युत्प्रभ#6 | विद्युत्प्रभ - 6]]।</p> | ||
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<div class="HindiText"> <p> सुरम्य देश के प्रसिद्ध पोदनपुर के राजा विद्युद्राज और रानी विमलमती का पुत्र । इसका मूल नाम यद्यपि विद्युत्प्रभ था परंतु यह इस नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह तंत्र-मंत्र आदि के द्वारा किवाड़ खोलना, अदृश्य होकर रहना आदि जानता था । जंबूस्वामी के पिता सेठ अर्हद्दास के घर यह धन चुराने आया था । वहाँ इसे जंबूस्वामी की मां उदास दिखाई दी थी । उदासी का कारण पूछने पर जिनदासी ने इसे प्रात: जंबूस्वामी का दीक्षा लेना बताया था उन्हें दीक्षा से रोकने वाले को मनचाहा धन दिये जाने की उसने घोषणा की थी । यह सुनकर इसे बोध जागा । इसने अपने को बहुत धिक्कारा । इसने सोचा था कि ये जंबूस्वामी है जो भोग सामग्री रहते हुए भी विरक्त होना चाहते हैं और मैं यहाँ धन चुराने के लिए आया हूँ । इन विचारों के साथ यह जंबूस्वामी के पास गया । यहाँ इसने अनेक कहानियां सुनाकर जंबूस्वामी को संसार की विरक्ति से रोकने का यत्न किया किंतु जंबूस्वामी कहानियों के माध्यम से ही इसे निरुत्तर करते रहे । यह जंबूस्वामी को विरक्ति से न रोक सका, अपितु यह स्वयं ही विरक्त हो गया । <span class="GRef"> महापुराण 46.289, 294-342, 76.53-108 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सुरम्य देश के प्रसिद्ध पोदनपुर के राजा विद्युद्राज और रानी विमलमती का पुत्र । इसका मूल नाम यद्यपि विद्युत्प्रभ था परंतु यह इस नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह तंत्र-मंत्र आदि के द्वारा किवाड़ खोलना, अदृश्य होकर रहना आदि जानता था । जंबूस्वामी के पिता सेठ अर्हद्दास के घर यह धन चुराने आया था । वहाँ इसे जंबूस्वामी की मां उदास दिखाई दी थी । उदासी का कारण पूछने पर जिनदासी ने इसे प्रात: जंबूस्वामी का दीक्षा लेना बताया था उन्हें दीक्षा से रोकने वाले को मनचाहा धन दिये जाने की उसने घोषणा की थी । यह सुनकर इसे बोध जागा । इसने अपने को बहुत धिक्कारा । इसने सोचा था कि ये जंबूस्वामी है जो भोग सामग्री रहते हुए भी विरक्त होना चाहते हैं और मैं यहाँ धन चुराने के लिए आया हूँ । इन विचारों के साथ यह जंबूस्वामी के पास गया । यहाँ इसने अनेक कहानियां सुनाकर जंबूस्वामी को संसार की विरक्ति से रोकने का यत्न किया किंतु जंबूस्वामी कहानियों के माध्यम से ही इसे निरुत्तर करते रहे । यह जंबूस्वामी को विरक्ति से न रोक सका, अपितु यह स्वयं ही विरक्त हो गया । <span class="GRef"> महापुराण 46.289, 294-342, 76.53-108 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
(महापुराण/76/श्लोक) -
पोदनपुर के राजा विद्युद्राज का पुत्र था। विद्युच्चर नाम का कुशल चोर बना। जंबूकुमार के घर चोरी करने गया।46-57। वहाँ दीक्षा को कटिबद्ध जंबूकुमार को अनेकों कथाएँ बताकर रोकने का प्रयत्न किया।58-107। पर स्वयं उनके उपदेशों से प्रभावित होकर उनके साथ ही दीक्षा धारण कर ली |
देखें विद्युत्प्रभ - 6।
पुराणकोष से
सुरम्य देश के प्रसिद्ध पोदनपुर के राजा विद्युद्राज और रानी विमलमती का पुत्र । इसका मूल नाम यद्यपि विद्युत्प्रभ था परंतु यह इस नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह तंत्र-मंत्र आदि के द्वारा किवाड़ खोलना, अदृश्य होकर रहना आदि जानता था । जंबूस्वामी के पिता सेठ अर्हद्दास के घर यह धन चुराने आया था । वहाँ इसे जंबूस्वामी की मां उदास दिखाई दी थी । उदासी का कारण पूछने पर जिनदासी ने इसे प्रात: जंबूस्वामी का दीक्षा लेना बताया था उन्हें दीक्षा से रोकने वाले को मनचाहा धन दिये जाने की उसने घोषणा की थी । यह सुनकर इसे बोध जागा । इसने अपने को बहुत धिक्कारा । इसने सोचा था कि ये जंबूस्वामी है जो भोग सामग्री रहते हुए भी विरक्त होना चाहते हैं और मैं यहाँ धन चुराने के लिए आया हूँ । इन विचारों के साथ यह जंबूस्वामी के पास गया । यहाँ इसने अनेक कहानियां सुनाकर जंबूस्वामी को संसार की विरक्ति से रोकने का यत्न किया किंतु जंबूस्वामी कहानियों के माध्यम से ही इसे निरुत्तर करते रहे । यह जंबूस्वामी को विरक्ति से न रोक सका, अपितु यह स्वयं ही विरक्त हो गया । महापुराण 46.289, 294-342, 76.53-108