विद्युद्दंग: Difference between revisions
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<p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText">कुंदनगर के प्रधान वैश्य समुद्रसंगम का पुत्र । यमुना इसकी जननी थी । इसका जन्म बिजली की चमक से प्रकाशित हुए समय में होने से इसके भाई बंधुओं ने इसे यह नाम दिया था । धन कमाने के लिए यह उज्जयिनी गया था । वहां कामलता वेश्या पर यह आसक्त हो गया था । इसने इस व्यसन में पड़कर अपने पिता का संचित धन छ: मास में ही समाप्त कर दिया । एक दिन कामलता से रानी के कुंडलों की प्रशंसा सुनकर यह रानी के कुंडल चुराने राजा सिंहोदर के राजमहल में गया । वहाँ इसने राजा को अपनी रानी से यह कहते हुए सुना कि दशांगपुर का राजा वज्रकर्ण उसका वैरी है । वह उसे नमस्कार नहीं करता । अत: जब तक वह उसे मार नहीं डालता उसे चैन नहीं । राजा से ऐसा सुनकर अपना परिचय देते हुए इसने कुंडल नहीं चुराये । चुपचाप बाहर निकल कर इसने राजा वज्रकर्ण को संपूर्ण घटना निवेदित की । वज्रकर्ण नहीं माना । उसने सिंहोदर को नमस्कार नहीं किया । फलस्वरूप सिंहोदर ने आग लगाकर इस नगर को उजाड़ दिया । राम ने इससे दशांगनगर के निर्जन हो जाने की कथा ज्ञात करने के पश्चात् इसे दु:खी देखकर अपने रत्नजटित स्वर्णसूत्र दिये थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_33#73|पद्मपुराण - 33.73-183]] </span>देखें [[ वज्रकर्ण ]]</p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
कुंदनगर के प्रधान वैश्य समुद्रसंगम का पुत्र । यमुना इसकी जननी थी । इसका जन्म बिजली की चमक से प्रकाशित हुए समय में होने से इसके भाई बंधुओं ने इसे यह नाम दिया था । धन कमाने के लिए यह उज्जयिनी गया था । वहां कामलता वेश्या पर यह आसक्त हो गया था । इसने इस व्यसन में पड़कर अपने पिता का संचित धन छ: मास में ही समाप्त कर दिया । एक दिन कामलता से रानी के कुंडलों की प्रशंसा सुनकर यह रानी के कुंडल चुराने राजा सिंहोदर के राजमहल में गया । वहाँ इसने राजा को अपनी रानी से यह कहते हुए सुना कि दशांगपुर का राजा वज्रकर्ण उसका वैरी है । वह उसे नमस्कार नहीं करता । अत: जब तक वह उसे मार नहीं डालता उसे चैन नहीं । राजा से ऐसा सुनकर अपना परिचय देते हुए इसने कुंडल नहीं चुराये । चुपचाप बाहर निकल कर इसने राजा वज्रकर्ण को संपूर्ण घटना निवेदित की । वज्रकर्ण नहीं माना । उसने सिंहोदर को नमस्कार नहीं किया । फलस्वरूप सिंहोदर ने आग लगाकर इस नगर को उजाड़ दिया । राम ने इससे दशांगनगर के निर्जन हो जाने की कथा ज्ञात करने के पश्चात् इसे दु:खी देखकर अपने रत्नजटित स्वर्णसूत्र दिये थे । पद्मपुराण - 33.73-183 देखें वज्रकर्ण