विनयतप: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(4 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> आभ्यंतर तप के छ: भेदों में एक भेद । मन, वचन और काय की शुद्धिपूर्वक दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य तथा इनके धारी योगियों के प्रति विनय करना, विनय तप कहलाता है । हरिवंशपुराण में इसके चार भेद कहे हैं― 1. ज्ञानविनय 2. दर्शनविनय 3. चारित्रविनय 4. उपचारविनय । <span class="GRef"> महापुराण 1869, 20 193, 54 135 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span>1642256, 38-41, बीबच0 643</p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: व]] | [[Category: व]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
आभ्यंतर तप के छ: भेदों में एक भेद । मन, वचन और काय की शुद्धिपूर्वक दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य तथा इनके धारी योगियों के प्रति विनय करना, विनय तप कहलाता है । हरिवंशपुराण में इसके चार भेद कहे हैं― 1. ज्ञानविनय 2. दर्शनविनय 3. चारित्रविनय 4. उपचारविनय । महापुराण 1869, 20 193, 54 135 हरिवंशपुराण 1642256, 38-41, बीबच0 643