विपाकविचय: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> धर्मध्यान के चार भेदों में चौथा भेद । इसमें कर्मों के विपाक से उत्पन्न सांसारिक विचित्रता का चिंतन किया जाता है । शुभ और अशुभ कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो स्थिति पूर्ण होने पर स्वयं फल देते हैं और कुछ कर्म ऐसे भी होते हैं जो तपश्चरण आदि का निमित्त पाकर स्थिति पूर्ण होने के पूर्व फल देने लगते हैं । कर्मों के इस विपाक को जानने वाले मुनि के द्वारा कर्मों को नष्ट करने के लिए किया गया चिंतन विपाकविचय धर्मध्यान कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 21.134, 143-147 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> धर्मध्यान के चार भेदों में चौथा भेद । इसमें कर्मों के विपाक से उत्पन्न सांसारिक विचित्रता का चिंतन किया जाता है । शुभ और अशुभ कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो स्थिति पूर्ण होने पर स्वयं फल देते हैं और कुछ कर्म ऐसे भी होते हैं जो तपश्चरण आदि का निमित्त पाकर स्थिति पूर्ण होने के पूर्व फल देने लगते हैं । कर्मों के इस विपाक को जानने वाले मुनि के द्वारा कर्मों को नष्ट करने के लिए किया गया चिंतन विपाकविचय धर्मध्यान कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 21.134, 143-147 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
धर्मध्यान के चार भेदों में चौथा भेद । इसमें कर्मों के विपाक से उत्पन्न सांसारिक विचित्रता का चिंतन किया जाता है । शुभ और अशुभ कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो स्थिति पूर्ण होने पर स्वयं फल देते हैं और कुछ कर्म ऐसे भी होते हैं जो तपश्चरण आदि का निमित्त पाकर स्थिति पूर्ण होने के पूर्व फल देने लगते हैं । कर्मों के इस विपाक को जानने वाले मुनि के द्वारा कर्मों को नष्ट करने के लिए किया गया चिंतन विपाकविचय धर्मध्यान कहलाता है । महापुराण 21.134, 143-147