विपाकसूत्र: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(5 intermediate revisions by 4 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText">द्वादशांग श्रुत का | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<div class="HindiText"> <p class="HindiText">द्वादशांग श्रुत का 11वां अंग–देखें [[ श्रुतज्ञान#III | श्रुतज्ञान - III]]।</p> | |||
</div> | |||
[[Category:व]] | <noinclude> | ||
[[ विपाकविचय | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ विपाटिनी | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: व]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> द्वादशांगश्रुत का ग्यारहवां अंग । इसमें ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों के विपाक का एक करोड़ चौरासी लाख पदों में वर्णन किया गया है । <span class="GRef"> महापुराण 34.945, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#94|हरिवंशपुराण - 2.94]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#10|हरिवंशपुराण - 2.10]].44 </span></p> | |||
</div> | |||
<noinclude> | |||
[[ विपाकविचय | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ विपाटिनी | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: व]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
द्वादशांग श्रुत का 11वां अंग–देखें श्रुतज्ञान - III।
पुराणकोष से
द्वादशांगश्रुत का ग्यारहवां अंग । इसमें ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों के विपाक का एक करोड़ चौरासी लाख पदों में वर्णन किया गया है । महापुराण 34.945, हरिवंशपुराण - 2.94,हरिवंशपुराण - 2.10.44