विपुलमति: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(6 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
< | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<div class="HindiText">ज्ञान के पाँच भेदों में चौथा ज्ञान मन:पर्ययज्ञान है । यह देश (विकल) प्रत्यक्ष होता है । इसके दो भेदों में दूसरा भेद विपुलमति । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#56|हरिवंशपुराण - 2.56]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#10|हरिवंशपुराण - 2.10]] </span></p>देखें [[ मनःपर्यय ]]। | |||
<noinclude> | |||
[[ | [[ विपुलगिरि | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[Category:व]] | [[ विपुलवाहन | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: व]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) मन:पर्ययज्ञान के दो भेदों में दूसरा भेद । <span class="GRef"> महापुराण 2.68, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#153|हरिवंशपुराण - 10.153]] </span></p> | |||
<p id="2" class="HindiText">(2) ऋद्धिधारी मुनि विमलमति के सहयात्री मुनि । इन्हीं मुनियों में राजा अमिततेज और राजा श्रीविजय ने अपनी आयु एक मास की शेष रह जाना ज्ञात कर मुनि नंदन से प्रायोपगमन संन्यास धारण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.407-410, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.242-244 </span></p> | |||
<p id="3" class="HindiText">(3) चारणऋद्धिधारी एक मुनि । प्रियदत्ता ने इन्हें आहार दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 46.76 </span></p> | |||
<p id="4" class="HindiText">(4) चारणऋद्धिधारी मुनि ऋजुमति के सहयात्री मुनि । राजा प्रीतिकर ने इन्हीं से धर्म का स्वरूप और अपना पूर्वभव जाना था । <span class="GRef"> महापुराण 76. 351 </span></p> | |||
</div> | |||
<noinclude> | |||
[[ विपुलगिरि | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ विपुलवाहन | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: व]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] | |||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
ज्ञान के पाँच भेदों में चौथा ज्ञान मन:पर्ययज्ञान है । यह देश (विकल) प्रत्यक्ष होता है । इसके दो भेदों में दूसरा भेद विपुलमति । हरिवंशपुराण - 2.56,हरिवंशपुराण - 2.10 देखें मनःपर्यय ।
पुराणकोष से
(1) मन:पर्ययज्ञान के दो भेदों में दूसरा भेद । महापुराण 2.68, हरिवंशपुराण - 10.153
(2) ऋद्धिधारी मुनि विमलमति के सहयात्री मुनि । इन्हीं मुनियों में राजा अमिततेज और राजा श्रीविजय ने अपनी आयु एक मास की शेष रह जाना ज्ञात कर मुनि नंदन से प्रायोपगमन संन्यास धारण किया था । महापुराण 62.407-410, पांडवपुराण 4.242-244
(3) चारणऋद्धिधारी एक मुनि । प्रियदत्ता ने इन्हें आहार दिया था । महापुराण 46.76
(4) चारणऋद्धिधारी मुनि ऋजुमति के सहयात्री मुनि । राजा प्रीतिकर ने इन्हीं से धर्म का स्वरूप और अपना पूर्वभव जाना था । महापुराण 76. 351