व्युष्टिक्रिया: Difference between revisions
From जैनकोष
ParidhiSethi (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
देखें [[ संस्कार#2 | संस्कार - 2]]। | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> गर्भान्वय की 53 क्रियाओं में ग्यारहवीं क्रिया। जन्म के एक वर्ष पश्चात् जिनेंद्र पूजन विधि, दान व बंधुवर्ग निमंत्रणादि कार्य करना चाहिए। इसे वर्षवर्धन या वर्षगाँठ भी कहते हैं। | ||
देखें [[ संस्कार#2 | संस्कार - 2]]।</p> | |||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 13: | Line 15: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> गर्भान्वय क्रियाओं में ग्यारहवीं क्रिया । यह जन्म से एक वर्ष बाद की जाती है । इसका दूसरा नाम वर्षवर्धन है । इसमें अर्हंत की पूजा, अग्नियों में मंत्रपूर्वक आहुति का क्षेपण, दान, इष्ट बंधुओं को आमंत्रित करके भोजन आदि कराया जाता है । इस क्रिया में आहुति-क्षेपण करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण किया जाता है-उपनयनजन्मवर्षवर्धन भागी भव, वैवाहनिष्ठ वर्षवर्द्धनभागीभव, मुनींद्रजंम वर्षवर्द्धनभागीभव, सुरेंद्रजंमवर्षवर्द्धनभागीभव, कंदराभिषेकवर्षवर्द्धनभागीभव यौवनराज्यवर्षवर्द्धनभागीभव और आर्हंत्यराज्यवर्षवर्द्धनभागीभव । <span class="GRef"> महापुराण 38.56, 96-97, 40. 143-146 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> गर्भान्वय क्रियाओं में ग्यारहवीं क्रिया । यह जन्म से एक वर्ष बाद की जाती है । इसका दूसरा नाम वर्षवर्धन है । इसमें अर्हंत की पूजा, अग्नियों में मंत्रपूर्वक आहुति का क्षेपण, दान, इष्ट बंधुओं को आमंत्रित करके भोजन आदि कराया जाता है । इस क्रिया में आहुति-क्षेपण करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण किया जाता है-उपनयनजन्मवर्षवर्धन भागी भव, वैवाहनिष्ठ वर्षवर्द्धनभागीभव, मुनींद्रजंम वर्षवर्द्धनभागीभव, सुरेंद्रजंमवर्षवर्द्धनभागीभव, कंदराभिषेकवर्षवर्द्धनभागीभव यौवनराज्यवर्षवर्द्धनभागीभव और आर्हंत्यराज्यवर्षवर्द्धनभागीभव । <span class="GRef"> महापुराण 38.56, 96-97, 40. 143-146 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
गर्भान्वय की 53 क्रियाओं में ग्यारहवीं क्रिया। जन्म के एक वर्ष पश्चात् जिनेंद्र पूजन विधि, दान व बंधुवर्ग निमंत्रणादि कार्य करना चाहिए। इसे वर्षवर्धन या वर्षगाँठ भी कहते हैं। देखें संस्कार - 2।
पुराणकोष से
गर्भान्वय क्रियाओं में ग्यारहवीं क्रिया । यह जन्म से एक वर्ष बाद की जाती है । इसका दूसरा नाम वर्षवर्धन है । इसमें अर्हंत की पूजा, अग्नियों में मंत्रपूर्वक आहुति का क्षेपण, दान, इष्ट बंधुओं को आमंत्रित करके भोजन आदि कराया जाता है । इस क्रिया में आहुति-क्षेपण करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण किया जाता है-उपनयनजन्मवर्षवर्धन भागी भव, वैवाहनिष्ठ वर्षवर्द्धनभागीभव, मुनींद्रजंम वर्षवर्द्धनभागीभव, सुरेंद्रजंमवर्षवर्द्धनभागीभव, कंदराभिषेकवर्षवर्द्धनभागीभव यौवनराज्यवर्षवर्द्धनभागीभव और आर्हंत्यराज्यवर्षवर्द्धनभागीभव । महापुराण 38.56, 96-97, 40. 143-146