व्यंतरों की देवियों का निर्देश: Difference between revisions
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<span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/4/ गाथा का भावार्थ</span> - हिमवान् आदि 6 कुलधर पर्वतों के पद्म आदि 6 ह्रदों में श्री आदि 6 व्यंतर देवियाँ सपरिवार रहती हैं। तहाँ श्री देवी के सामानिकदेव 4000 (गाथा 1674); त्रायस्त्रिंश 108 (गाथा 1686); अभ्यंतर पारिषद 32000 (गाथा 1678); मध्यम पारिषद 40,000 (गाथा 1676) बाह्य पारिषद 48000 (गाथा 1680); आत्मरक्ष 16000 (गाथा 1676); सप्त अनीक में प्रत्येक की सात-सात कक्षा हैं। प्रथम कक्षा में 4000 तथा द्वितीय आदि उत्तरोंत्तर दूने-दूने हैं। (गाथा 1683)। ह्वी देवी का परिवार श्री के परिवार से दूना है (गाथा 1729)। (धृतिका ह्वी से भी दूना है।) कीर्तिका धृति के समान है। (गाथा 2333 बुद्धि का कीर्ति से आधा अर्थात् ह्वी के समान। (गाथा 2345) और लक्ष्मी का श्री के समान है (गाथा 2361)। - (विशेष देखें [[ लोक#3.9 | लोक - 3.9]])।</span></li> | |||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
- व्यंतरों की देवियों का निर्देश
- 16 इंद्रों की देवियों के नाम व संख्या
( तिलोयपण्णत्ति/6/35-54 ); ( त्रिलोकसार/258-278 )।
- 16 इंद्रों की देवियों के नाम व संख्या
नं. |
इंद्र का नाम |
गणिका |
वल्लभिका |
||
नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.2 |
||
1 |
किंपुरुष |
मधुरा |
मधुरालापा |
अवतंसा |
केतुमती |
2 |
किन्नर |
सुस्वरा |
मृदभाषिणी |
रतिसेना |
रतिप्रिया |
3 |
तत्सपुरुष |
पुरुषाकांता |
सौम्या |
राहिणी |
नवमी |
4 |
महापुरुष |
पुरुषदर्शिनी |
भोगा |
ह्वी |
पुष्पवती |
5 |
महाकाय |
भोगवती |
भुजगा |
भोगा |
भोगवती |
6 |
अतिकाय |
भुजगप्रिया |
विमला |
आनंदिता |
पुष्पगंधी |
7 |
गीतरति |
सुघोषा |
अनिंदिता |
सरस्वती |
स्वरसेना |
8 |
गीतरस |
सुस्वरा |
सुभद्रा |
नंदिनी |
प्रियदर्शना |
9 |
मणिभद्र |
भद्रा |
मालिनी |
कुंदा |
बहुपुत्रा |
10 |
पूर्णभद्र |
पद्मालिनी |
सर्वश्री |
तारा |
उत्तमा |
11 |
भीम |
सर्वसेना |
रूद्रा |
पद्मा |
वसुमित्रा |
12 |
महाभीम |
रुद्रवती |
भूता |
रत्नाढया |
कंचनप्रभा |
13 |
स्वरूप |
भूतकांता |
महावाह |
रूपवती |
बहरूपा |
14 |
प्रतिरूप |
भूतरक्ता |
अंबा |
सुमुखी |
सुसीमा |
15 |
काल |
कला |
रसा |
कमला |
कमलप्रभा |
16 |
महाकाल |
सुरसा |
सदर्शनिका |
उत्पला |
सदर्शना |
- श्री ह्वी आदि देवियों का परिवार
तिलोयपण्णत्ति/4/ गाथा का भावार्थ - हिमवान् आदि 6 कुलधर पर्वतों के पद्म आदि 6 ह्रदों में श्री आदि 6 व्यंतर देवियाँ सपरिवार रहती हैं। तहाँ श्री देवी के सामानिकदेव 4000 (गाथा 1674); त्रायस्त्रिंश 108 (गाथा 1686); अभ्यंतर पारिषद 32000 (गाथा 1678); मध्यम पारिषद 40,000 (गाथा 1676) बाह्य पारिषद 48000 (गाथा 1680); आत्मरक्ष 16000 (गाथा 1676); सप्त अनीक में प्रत्येक की सात-सात कक्षा हैं। प्रथम कक्षा में 4000 तथा द्वितीय आदि उत्तरोंत्तर दूने-दूने हैं। (गाथा 1683)। ह्वी देवी का परिवार श्री के परिवार से दूना है (गाथा 1729)। (धृतिका ह्वी से भी दूना है।) कीर्तिका धृति के समान है। (गाथा 2333 बुद्धि का कीर्ति से आधा अर्थात् ह्वी के समान। (गाथा 2345) और लक्ष्मी का श्री के समान है (गाथा 2361)। - (विशेष देखें लोक - 3.9)।