शकट: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) भरतक्षेत्र का एक देश । सिंहपुर इस देश का एक नगर था । <span class="GRef"> (हरिवंशपुराण 27.20) </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) भरतक्षेत्र का एक देश । सिंहपुर इस देश का एक नगर था । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#20|हरिवंशपुराण - 27.20]]) </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक ग्राम । यह संजयत मुनि की पूर्वभव को जन्मभूमि था । <span class="GRef"> (पद्मपुराण 5.35-36) </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक ग्राम । यह संजयत मुनि की पूर्वभव को जन्मभूमि था । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#35|पद्मपुराण - 5.35-36]]) </span></p> | ||
<p id="3">(3) पुरिमताल नगर का निकटवर्ती एक उद्यान । वृषभदेव यहाँ वटवृक्ष के नीचे एक शिला पर पर्यकासन से ध्यानस्थ हुए थे । केवलज्ञान उन्हें यही हुआ था । यहाँ चक्रवर्ती भरतेश के छोटे भाई वृषभसेन रहते थे । <span class="GRef"> (महापुराण 20.218-220), </span><span class="GRef"> (हरिवंशपुराण 9.205-210) </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) पुरिमताल नगर का निकटवर्ती एक उद्यान । वृषभदेव यहाँ वटवृक्ष के नीचे एक शिला पर पर्यकासन से ध्यानस्थ हुए थे । केवलज्ञान उन्हें यही हुआ था । यहाँ चक्रवर्ती भरतेश के छोटे भाई वृषभसेन रहते थे । <span class="GRef"> (महापुराण 20.218-220), </span><span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_9#205|हरिवंशपुराण - 9.205-210]]) </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
(धवला 14/5,6,41/38/7) लोहेण बद्धणेमि-तुंब महाचक्का लोहबद्धछुहयपेरंता लोणादीणं गरुअभरुव्वहणक्खमा सयडा नाम। =जिनकी धुर गाड़ी की नाभि और महाचक्र लोहे से बँधे हुए हैं, जिनके छुहय पर्यंत लोह से बँधे हुए हैं, जो नमक आदि भार ढोने में समर्थ हैं वे शकट कहलाते हैं।
पुराणकोष से
(1) भरतक्षेत्र का एक देश । सिंहपुर इस देश का एक नगर था । (हरिवंशपुराण - 27.20)
(2) एक ग्राम । यह संजयत मुनि की पूर्वभव को जन्मभूमि था । (पद्मपुराण - 5.35-36)
(3) पुरिमताल नगर का निकटवर्ती एक उद्यान । वृषभदेव यहाँ वटवृक्ष के नीचे एक शिला पर पर्यकासन से ध्यानस्थ हुए थे । केवलज्ञान उन्हें यही हुआ था । यहाँ चक्रवर्ती भरतेश के छोटे भाई वृषभसेन रहते थे । (महापुराण 20.218-220), (हरिवंशपुराण - 9.205-210)