शीतपरीषह: Difference between revisions
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<p class="HindiText">जिसने आवरण का त्याग कर दिया है, पक्षी के समान जिसका आवास निश्चित नहीं है, वृक्षमूल, चौपथ और शिलातल आदि पर निवास करते हुए बर्फ के गिरने पर और शीतल हवा का झोंका आने पर उसका प्रतिकार करने की इच्छा से जो निवृत्त हैं, पहले अनुभव किये गये प्रतिकार के हेतुभूत वस्तुओं का जो स्मरण नहीं करता और जो ज्ञान भावनारूपी गर्भागार में निवास करता है उसके शीत वेदनाजय प्रशंसा योग्य है। | <p class="HindiText">जिसने आवरण का त्याग कर दिया है, पक्षी के समान जिसका आवास निश्चित नहीं है, वृक्षमूल, चौपथ और शिलातल आदि पर निवास करते हुए बर्फ के गिरने पर और शीतल हवा का झोंका आने पर उसका प्रतिकार करने की इच्छा से जो निवृत्त हैं, पहले अनुभव किये गये प्रतिकार के हेतुभूत वस्तुओं का जो स्मरण नहीं करता और जो ज्ञान भावनारूपी गर्भागार में निवास करता है उसके शीत वेदनाजय प्रशंसा योग्य है। <span class="GRef"> (राजवार्तिक/9/9/6/609/4), </span> <span class="GRef"> (चारित्रसार/111/4) </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/9/9/421/3 परित्यक्तप्रच्छादनस्य पक्षिवदनवधारितालयस्य वृक्षमूलपथिशिलातलादिषु हिमानीपतनशीतलानिलसंपाते तत्प्रतिकारप्राप्तिं प्रति निवृत्तेच्छस्य पूर्वानुभूतशीतप्रतिकारहेतुवस्तुनामस्मरती ज्ञानभावनागर्भागारे वसत: शीतवेदनासहनं परिकीर्त्यते।
जिसने आवरण का त्याग कर दिया है, पक्षी के समान जिसका आवास निश्चित नहीं है, वृक्षमूल, चौपथ और शिलातल आदि पर निवास करते हुए बर्फ के गिरने पर और शीतल हवा का झोंका आने पर उसका प्रतिकार करने की इच्छा से जो निवृत्त हैं, पहले अनुभव किये गये प्रतिकार के हेतुभूत वस्तुओं का जो स्मरण नहीं करता और जो ज्ञान भावनारूपी गर्भागार में निवास करता है उसके शीत वेदनाजय प्रशंसा योग्य है। (राजवार्तिक/9/9/6/609/4), (चारित्रसार/111/4)
पुराणकोष से
मुनियों के बाईस परीषहों में एक परीषह । शीत-वेदना का जीतना शीतपरीषह है । (हरिवंशपुराण - 63.91,हरिवंशपुराण - 63.94)