समाधिगुप्त: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(5 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
यह भाविकालीन अठारहवें तीर्थंकर हैं। - देखें [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर - 5]]। | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p class="HindiText">यह भाविकालीन अठारहवें तीर्थंकर हैं। - देखें [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर - 5]]।</p> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 9: | Line 10: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] | |||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) आगामी अठारहवें तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 76.480, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 561 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) आगामी अठारहवें तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 76.480, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#561|हरिवंशपुराण - 60.561]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक मुनि । लक्ष्मीमती इन्हीं मुनि की निंदा के फलस्वरूप मरकर रासभी हुई थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 26-31 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक मुनि । लक्ष्मीमती इन्हीं मुनि की निंदा के फलस्वरूप मरकर रासभी हुई थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#26|हरिवंशपुराण - 60.26-31]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) एक मुनि । प्रेमपुरी नगरी के राजपुत्र श्रीचंद्र ने इन्हीं से मुनिदीक्षा ली थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 106.75, 81, 110 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) एक मुनि । प्रेमपुरी नगरी के राजपुत्र श्रीचंद्र ने इन्हीं से मुनिदीक्षा ली थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_106#75|पद्मपुराण - 106.75]], 81, 110 </span></p> | ||
<p id="4">(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में काशी देश की वाराणसी नगरी के पद्मनाथ के पुत्र पद्म के दीक्षागुरु । खदिरसार भील ने कौए के मांस-त्यागे का नियम इन्हीं से लिया था । <span class="GRef"> महापुराण 66.76-77, 13-95 74.389-418, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.96-108 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में काशी देश की वाराणसी नगरी के पद्मनाथ के पुत्र पद्म के दीक्षागुरु । खदिरसार भील ने कौए के मांस-त्यागे का नियम इन्हीं से लिया था । <span class="GRef"> महापुराण 66.76-77, 13-95 74.389-418, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.96-108 </span></p> | ||
<p id="5">(5) विदेहक्षेत्र के एक मुनि । रश्मिवेग ने कहीं मुनिराज के पास दीक्षा धारण की थी । <span class="GRef"> महापुराण 73. 25-28 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) विदेहक्षेत्र के एक मुनि । रश्मिवेग ने कहीं मुनिराज के पास दीक्षा धारण की थी । <span class="GRef"> महापुराण 73. 25-28 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 27: | Line 28: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
यह भाविकालीन अठारहवें तीर्थंकर हैं। - देखें तीर्थंकर - 5।
पुराणकोष से
(1) आगामी अठारहवें तीर्थंकर । महापुराण 76.480, हरिवंशपुराण - 60.561
(2) एक मुनि । लक्ष्मीमती इन्हीं मुनि की निंदा के फलस्वरूप मरकर रासभी हुई थी । हरिवंशपुराण - 60.26-31
(3) एक मुनि । प्रेमपुरी नगरी के राजपुत्र श्रीचंद्र ने इन्हीं से मुनिदीक्षा ली थी । पद्मपुराण - 106.75, 81, 110
(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में काशी देश की वाराणसी नगरी के पद्मनाथ के पुत्र पद्म के दीक्षागुरु । खदिरसार भील ने कौए के मांस-त्यागे का नियम इन्हीं से लिया था । महापुराण 66.76-77, 13-95 74.389-418, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.96-108
(5) विदेहक्षेत्र के एक मुनि । रश्मिवेग ने कहीं मुनिराज के पास दीक्षा धारण की थी । महापुराण 73. 25-28