सादृश्य प्रत्यभिज्ञान: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 4: | Line 4: | ||
<ol> | <ol> | ||
<li class="HindiText"> सम्यक् प्रत्यभिज्ञान प्रमाण पूर्वक होता है जैसे - जल में उठने वाले चक्रादि को न देखकर केवल जल मात्र में, पूर्व गृहीत जल के साथ '''सादृश्यता''' देखने से ‘यह जल ही है’ ऐसा निर्णय होता है । </li> | <li class="HindiText"> सम्यक् प्रत्यभिज्ञान प्रमाण पूर्वक होता है जैसे - जल में उठने वाले चक्रादि को न देखकर केवल जल मात्र में, पूर्व गृहीत जल के साथ '''सादृश्यता''' देखने से ‘यह जल ही है’ ऐसा निर्णय होता है । </li> | ||
<li | <li class="HindiText"> मिथ्या प्रत्यभिज्ञान प्रमाण पूर्वक नहीं होता, बल्कि दृष्टि की मंदता आदि दोषों के कारण से कदाचित् मरीचिका में भी जल की अभिलाषा कर बैठता है ।</span><br /> | ||
<br> | <br> | ||
Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
-
न्यायविनिश्चय/ मूल व टीका /2/50-51/76 प्रत्यभिज्ञा द्विधा (काचित्सादृश्यविनिबंधना) ।50। काचित् जलविषया न तच्चक्रादिगोचरा सादृशस्य विशेषेण तन्मात्रातिशायिना रूपेण निबंधनं व्यवस्थापन यस्याः सा तथेपि । सैव कस्मात्तथा इत्याह- प्रमाणपूर्विका नान्या (दृष्टिमांद्यादिदोषत:) इति ।51। प्रमाण प्रत्यक्षादिपूर्वं कारणं यस्या सा काचिदेव नान्या तत्त्चक्रविषया यतः, .... दृष्टेर्मरीचिकादर्शनस्य मांद्यं यथावस्थिततत्परिच्छित्ति प्रत्यपाटवम् आदिर्यस्य जलाभिलाषादेः स एव दोषस्तत इति । =
- सम्यक् प्रत्यभिज्ञान प्रमाण पूर्वक होता है जैसे - जल में उठने वाले चक्रादि को न देखकर केवल जल मात्र में, पूर्व गृहीत जल के साथ सादृश्यता देखने से ‘यह जल ही है’ ऐसा निर्णय होता है ।
- मिथ्या प्रत्यभिज्ञान प्रमाण पूर्वक नहीं होता, बल्कि दृष्टि की मंदता आदि दोषों के कारण से कदाचित् मरीचिका में भी जल की अभिलाषा कर बैठता है ।
विस्तार के लिये देंखे प्रत्यभिज्ञान ।
पूर्व पृष्ठ
अगला पृष्ठ