सारस्वत: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(3 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
<p class="HindiText">1. लौकांतिक देवों का एक भेद-देखें [[ | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p class="HindiText">1. लौकांतिक देवों का एक भेद-देखें [[ लौकांतिक_देव]];</p> | |||
<p class="HindiText">2. भरतक्षेत्र पश्चिम आर्यखंड का एक देश-देखें [[ मनुष्य#4 | मनुष्य - 4]]।</p> | <p class="HindiText">2. भरतक्षेत्र पश्चिम आर्यखंड का एक देश-देखें [[ मनुष्य#4 | मनुष्य - 4]]।</p> | ||
Line 13: | Line 14: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) भरतक्षेत्र के पश्चिम आर्यखंड का एक देश । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.72 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) भरतक्षेत्र के पश्चिम आर्यखंड का एक देश । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_11#72|हरिवंशपुराण - 11.72]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) ब्रह्मलोक में रहने वाले लोकांतिक देवों का प्रथम भेद । ये इन तीर्थंकरों के वैराग्य को प्रवृद्ध कराने तथा उनके तप-कल्याणकी की पूजा करने के लिए स्वर्ग से नीचे आते हैं । ये देव जन्मजात ब्रह्मचारी, एक भवावतारी, पूर्वभव में संपूर्णश्रुत और वैराग्यभावना के अभ्यासी होते हैं । इंद्र और देव इनकी वंदना करते हैं । ये देवर्षि कहलाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 17.47-48, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.63-64, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 12.2-5 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) ब्रह्मलोक में रहने वाले लोकांतिक देवों का प्रथम भेद । ये इन तीर्थंकरों के वैराग्य को प्रवृद्ध कराने तथा उनके तप-कल्याणकी की पूजा करने के लिए स्वर्ग से नीचे आते हैं । ये देव जन्मजात ब्रह्मचारी, एक भवावतारी, पूर्वभव में संपूर्णश्रुत और वैराग्यभावना के अभ्यासी होते हैं । इंद्र और देव इनकी वंदना करते हैं । ये देवर्षि कहलाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 17.47-48, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_9#63|हरिवंशपुराण - 9.63-64]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 12.2-5 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 25: | Line 26: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
1. लौकांतिक देवों का एक भेद-देखें लौकांतिक_देव;
2. भरतक्षेत्र पश्चिम आर्यखंड का एक देश-देखें मनुष्य - 4।
पुराणकोष से
(1) भरतक्षेत्र के पश्चिम आर्यखंड का एक देश । हरिवंशपुराण - 11.72
(2) ब्रह्मलोक में रहने वाले लोकांतिक देवों का प्रथम भेद । ये इन तीर्थंकरों के वैराग्य को प्रवृद्ध कराने तथा उनके तप-कल्याणकी की पूजा करने के लिए स्वर्ग से नीचे आते हैं । ये देव जन्मजात ब्रह्मचारी, एक भवावतारी, पूर्वभव में संपूर्णश्रुत और वैराग्यभावना के अभ्यासी होते हैं । इंद्र और देव इनकी वंदना करते हैं । ये देवर्षि कहलाते हैं । महापुराण 17.47-48, हरिवंशपुराण - 9.63-64, वीरवर्द्धमान चरित्र 12.2-5