सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति: Difference between revisions
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<p> शुक्लध्यान के चार भेदों में इस नाम का तीसरा भेद । सब प्रकार के वचनयोग, मनोयोग और बादर काययोग को त्यागकर सूक्ष्मकाय योग का आलंबन लेकर केवली इस ध्यान को स्वीकार करते हैं, परंतु जब उनकी आयु एक अंतर्मुहूर्त मात्र शेष रहती है तब समुद्घात के द्वारा अघातिया कर्मों की स्थिति को समान करके अपने पूर्व शरीर प्रमाण होकर सूक्ष्म काययोग से यह ध्यान करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 21. 188-115, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56.71-75 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> शुक्लध्यान के चार भेदों में इस नाम का तीसरा भेद । सब प्रकार के वचनयोग, मनोयोग और बादर काययोग को त्यागकर सूक्ष्मकाय योग का आलंबन लेकर केवली इस ध्यान को स्वीकार करते हैं, परंतु जब उनकी आयु एक अंतर्मुहूर्त मात्र शेष रहती है तब समुद्घात के द्वारा अघातिया कर्मों की स्थिति को समान करके अपने पूर्व शरीर प्रमाण होकर सूक्ष्म काययोग से यह ध्यान करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 21. 188-115, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_56#71|हरिवंशपुराण - 56.71-75]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
शुक्लध्यान के चार भेदों में इस नाम का तीसरा भेद । सब प्रकार के वचनयोग, मनोयोग और बादर काययोग को त्यागकर सूक्ष्मकाय योग का आलंबन लेकर केवली इस ध्यान को स्वीकार करते हैं, परंतु जब उनकी आयु एक अंतर्मुहूर्त मात्र शेष रहती है तब समुद्घात के द्वारा अघातिया कर्मों की स्थिति को समान करके अपने पूर्व शरीर प्रमाण होकर सूक्ष्म काययोग से यह ध्यान करते हैं । महापुराण 21. 188-115, हरिवंशपुराण - 56.71-75