हरिवर्ष: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> (2) मध्यम भोगभूमि । <span class="GRef"> महापुराण 71.392-393 </span></span> <br /> | <span class="HindiText"> (2) मध्यम भोगभूमि । <span class="GRef"> महापुराण 71.392-393 </span></span> <br /> | ||
<span class="HindiText"> (3) भरतक्षेत्र का एक देश । सुमुख का जीव इसी देश के भोगपुर नगर ने राजपुत्र सिंहकेतु हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 70.74-75 </span></span> <br /> | <span class="HindiText"> (3) भरतक्षेत्र का एक देश । सुमुख का जीव इसी देश के भोगपुर नगर ने राजपुत्र सिंहकेतु हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 70.74-75 </span></span> <br /> | ||
<span class="HindiText"> (4) निषध-पर्वत के नौ कूटों में तीसरा कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.88 </span></span> <br /> | <span class="HindiText"> (4) निषध-पर्वत के नौ कूटों में तीसरा कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#88|हरिवंशपुराण - 5.88]] </span></span> <br /> | ||
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Latest revision as of 15:31, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- हिमवान पर्वतस्थ एक कूट-देखें लोक - 5.4।
- हिरात वस्ती से तात्पर्य है जिसका पर्वत महामेरु श्रृंखला के अंतर्गत निषध (हिंदुकुश) है जो मेरु तक पहुँच जाता है। अवेस्ता में इसका नाम 'हरिवरजी' प्रसिद्ध है। ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/प्र.139 )।
पुराणकोष से
(1) महाहिमवान् कुलाचल का सातवां कूट । हरिवंशपुराण - 5.72
(2) मध्यम भोगभूमि । महापुराण 71.392-393
(3) भरतक्षेत्र का एक देश । सुमुख का जीव इसी देश के भोगपुर नगर ने राजपुत्र सिंहकेतु हुआ था । महापुराण 70.74-75
(4) निषध-पर्वत के नौ कूटों में तीसरा कूट । हरिवंशपुराण - 5.88