हिरण्यवर्मा: Difference between revisions
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<p> रतिवर कबूतर का जीव- एक विद्याधर यह विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी की उशीरवती नगरी के राजा आदित्यगति और उसकी रानी शशिप्रभा का पुत्र था । विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के भोगपुर नगर के राजा वायुरथ को पुत्री-रतिवेगा कबूतरी का जीव प्रभावती इसकी रानी थी । गति युद्ध में प्रभावती ने इसका वरण किया था । धान्यकमाल वन में पहुँचने पर वहाँ सर्प सरोवर देखकर इसे पूर्वभव के सब | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> (1) रतिवर कबूतर का जीव- एक विद्याधर यह विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी की उशीरवती नगरी के राजा आदित्यगति और उसकी रानी शशिप्रभा का पुत्र था । विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के भोगपुर नगर के राजा वायुरथ को पुत्री-रतिवेगा कबूतरी का जीव प्रभावती इसकी रानी थी । गति युद्ध में प्रभावती ने इसका वरण किया था । धान्यकमाल वन में पहुँचने पर वहाँ सर्प सरोवर देखकर इसे पूर्वभव के सब संबंध प्रत्यक्ष दिखाई दिये थे । इसे इससे वैराग्य जागा । सांसारिक भोग क्षण-भंगुर प्रतीत हुए । फलस्वरूप इसने पुत्र सुवर्णवर्मा को राज्य देकर श्रीपुर नगर में श्रीपाल गुरु से जैनेश्वरी दीक्षा ले ली थी । इसकी रानी ने भी गुणवती आर्यिका के पास तप धारण कर लिया था । यह विहार करते हुए पुंडरीकिणी नगरी आया था । इसने घोर तप किया । एक समय जब यह सात दिन का नियम लेकर श्मसान में प्रतिमायोग से विराजमान था तब विद्युच्चोर ने इसे और इसकी पत्नी आर्यिका प्रभावती को एक ही चिता पर रखकर जला दिया था । इस उपसर्ग को विशुद्ध परिणामों से सहकर यह और आर्यिका प्रभावती दोनो स्वर्ग में देव और देवी हुए । इसके पुत्र सुवर्णवर्मा ने इस घटना से दु:खी विद्युच्चोर के निग्रह का निश्चय किया किंतु अवधिज्ञान में सुवर्णवर्मा के इस निश्चय को जानकर यह और प्रभावती का जीव वह देवी दोनों संयमी का रूप बनाकर पुत्र सुवर्णवर्मा के पास आये थे । दोनों ने धर्मकथाओं के द्वारा तत्त्वज्ञान कराकर उसका क्रोध दूर किया था । पश्चात् दोनों ने अपना दिव्य रूप प्रकट करके उसे अपना संपूर्ण वृत्त कहा था और बहुमूल्य आभूषण भेंट में दिये थे । <span class="GRef"> महापुराण 46.145-189, 221, 247-255 </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_12#18|हरिवंशपुराण - 12.18-21]] </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 3.201-236 </span></p> | ||
<p id="2">(2) भरतक्षेत्र के अरिष्टपुर नगर का राजा । | <p id="2" class="HindiText">(2) भरतक्षेत्र के अरिष्टपुर नगर का राजा । पद्मावती इसकी रानी और रोहिणी पुत्री तथा वसुदेव इसका जामाता था । <span class="GRef"> महापुराण 70.307-309 </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 11.31 </span></p> | ||
<p id="3">(3) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी के राजा हरिबल और उसकी दूसरी रानी श्रीमती का पुत्र । पहली रानी से उत्पन्न भीमक इसका भाई था इसके पिता इसे विद्या और इसके भाई भीमक का राज्य देकर संसार से विरक्त हो गये थे । भीमक ने इसकी विद्याएँ हर ली थी और मारने को उद्यत हुआ था । परिणामस्वरूप इसने अपने चाचा महासेन की शरण ली थी । भीमक ने महासेन से युद्ध किया जिसमें यह पकड़ा गया था । इस समय भीमक ने इससे | <p id="3" class="HindiText">(3) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी के राजा हरिबल और उसकी दूसरी रानी श्रीमती का पुत्र । पहली रानी से उत्पन्न भीमक इसका भाई था इसके पिता इसे विद्या और इसके भाई भीमक का राज्य देकर संसार से विरक्त हो गये थे । भीमक ने इसकी विद्याएँ हर ली थी और मारने को उद्यत हुआ था । परिणामस्वरूप इसने अपने चाचा महासेन की शरण ली थी । भीमक ने महासेन से युद्ध किया जिसमें यह पकड़ा गया था । इस समय भीमक ने इससे संधि करके उसे राज्य दे दिया था किंतु अवसर पाकर उसने राक्षसी विद्या सिद्ध की तथा विद्या की सहायता से उसने इसे और महासेन को मार डाला था । <span class="GRef"> महापुराण 76.262-280 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:31, 27 November 2023
(1) रतिवर कबूतर का जीव- एक विद्याधर यह विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी की उशीरवती नगरी के राजा आदित्यगति और उसकी रानी शशिप्रभा का पुत्र था । विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के भोगपुर नगर के राजा वायुरथ को पुत्री-रतिवेगा कबूतरी का जीव प्रभावती इसकी रानी थी । गति युद्ध में प्रभावती ने इसका वरण किया था । धान्यकमाल वन में पहुँचने पर वहाँ सर्प सरोवर देखकर इसे पूर्वभव के सब संबंध प्रत्यक्ष दिखाई दिये थे । इसे इससे वैराग्य जागा । सांसारिक भोग क्षण-भंगुर प्रतीत हुए । फलस्वरूप इसने पुत्र सुवर्णवर्मा को राज्य देकर श्रीपुर नगर में श्रीपाल गुरु से जैनेश्वरी दीक्षा ले ली थी । इसकी रानी ने भी गुणवती आर्यिका के पास तप धारण कर लिया था । यह विहार करते हुए पुंडरीकिणी नगरी आया था । इसने घोर तप किया । एक समय जब यह सात दिन का नियम लेकर श्मसान में प्रतिमायोग से विराजमान था तब विद्युच्चोर ने इसे और इसकी पत्नी आर्यिका प्रभावती को एक ही चिता पर रखकर जला दिया था । इस उपसर्ग को विशुद्ध परिणामों से सहकर यह और आर्यिका प्रभावती दोनो स्वर्ग में देव और देवी हुए । इसके पुत्र सुवर्णवर्मा ने इस घटना से दु:खी विद्युच्चोर के निग्रह का निश्चय किया किंतु अवधिज्ञान में सुवर्णवर्मा के इस निश्चय को जानकर यह और प्रभावती का जीव वह देवी दोनों संयमी का रूप बनाकर पुत्र सुवर्णवर्मा के पास आये थे । दोनों ने धर्मकथाओं के द्वारा तत्त्वज्ञान कराकर उसका क्रोध दूर किया था । पश्चात् दोनों ने अपना दिव्य रूप प्रकट करके उसे अपना संपूर्ण वृत्त कहा था और बहुमूल्य आभूषण भेंट में दिये थे । महापुराण 46.145-189, 221, 247-255 हरिवंशपुराण - 12.18-21 पांडवपुराण 3.201-236
(2) भरतक्षेत्र के अरिष्टपुर नगर का राजा । पद्मावती इसकी रानी और रोहिणी पुत्री तथा वसुदेव इसका जामाता था । महापुराण 70.307-309 पांडवपुराण 11.31
(3) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी के राजा हरिबल और उसकी दूसरी रानी श्रीमती का पुत्र । पहली रानी से उत्पन्न भीमक इसका भाई था इसके पिता इसे विद्या और इसके भाई भीमक का राज्य देकर संसार से विरक्त हो गये थे । भीमक ने इसकी विद्याएँ हर ली थी और मारने को उद्यत हुआ था । परिणामस्वरूप इसने अपने चाचा महासेन की शरण ली थी । भीमक ने महासेन से युद्ध किया जिसमें यह पकड़ा गया था । इस समय भीमक ने इससे संधि करके उसे राज्य दे दिया था किंतु अवसर पाकर उसने राक्षसी विद्या सिद्ध की तथा विद्या की सहायता से उसने इसे और महासेन को मार डाला था । महापुराण 76.262-280