स्वयंप्रभा: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) स्वयंभूरमण द्वीप के स्वयंप्रभ व्यंतर देव की देवी । यह कृष्ण की पटरानी पदमावती के तीसरे पूर्वभव का जीव थी । <span class="GRef"> महापुराण 71. 451-452, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60 | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) स्वयंभूरमण द्वीप के स्वयंप्रभ व्यंतर देव की देवी । यह कृष्ण की पटरानी पदमावती के तीसरे पूर्वभव का जीव थी । <span class="GRef"> महापुराण 71. 451-452, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#116|हरिवंशपुराण - 60.116]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) मंदोदरी की छोटी बहिन । रावण ने इसे सहस्ररश्मि को देना चाहा था किंतु उसने इसे स्वीकार न करके दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 10. 161 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) मंदोदरी की छोटी बहिन । रावण ने इसे सहस्ररश्मि को देना चाहा था किंतु उसने इसे स्वीकार न करके दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_10#161|पद्मपुराण - 10.161]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) कृष्ण की रानी जांबवती के पूर्व का जीव । यह कुबेर की स्त्री थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.50 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) कृष्ण की रानी जांबवती के पूर्व का जीव । यह कुबेर की स्त्री थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#50|हरिवंशपुराण - 60.50]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) विजया पर्वत की दक्षिण श्रेणी के रथनूपुर चक्रवाल नगर के राजा सुकेतु की रानी । इसकी पुत्री सत्यभामा का विवाह कृष्ण से हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 71. 313, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 36.56, 61, 60. 22, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 11. 60 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) विजया पर्वत की दक्षिण श्रेणी के रथनूपुर चक्रवाल नगर के राजा सुकेतु की रानी । इसकी पुत्री सत्यभामा का विवाह कृष्ण से हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 71. 313, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_36#56|हरिवंशपुराण - 36.56]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_36#61|हरिवंशपुराण - 36.61]], 60. 22, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 11. 60 </span></p> | ||
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<p id="6">(6) समुद्रविजय के छोटे भाई स्तिमित सागर को रानी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.3 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) समुद्रविजय के छोटे भाई स्तिमित सागर को रानी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_19#3|हरिवंशपुराण - 19.3]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के राजा विद्याधर ज्वलनजटी और रानी वायुवेगा की पुत्री । यह अर्ककीर्ति की बहिन थी । पिता ने इसका विवाह पोदनपुर के राजकुमार प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ से किया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.44, 74.131-155, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.11-13, 53-54 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3.71-75, 94.95 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के राजा विद्याधर ज्वलनजटी और रानी वायुवेगा की पुत्री । यह अर्ककीर्ति की बहिन थी । पिता ने इसका विवाह पोदनपुर के राजकुमार प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ से किया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.44, 74.131-155, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.11-13, 53-54 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3.71-75, 94.95 </span></p> | ||
<p id="8">(8) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में भोगपुर नगर के राजा वायुरथ विद्याधर की रानी । प्रभावती की यह जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 46.147-148 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में भोगपुर नगर के राजा वायुरथ विद्याधर की रानी । प्रभावती की यह जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 46.147-148 </span></p> | ||
<p id="9">(9) वृषभदेव के नौवें पूर्वभव का जीव-ऐशान स्वर्ग के ललितांग देव की महादेवी । यह पति की पृथक्त्व पल्य के बराबर आयु शेष रह जाने पर उत्पन्न हुई थी । पति का वियोग होने पर इसे दु:खी देखकर अंत:परिषद के सदस्य दृढ़धर्म देव ने इसका शोक दूर कर इसे सन्मार्ग पर लगाया था । यह छ: माह तक जिनपूजा में उद्यत रही । पश्चात् सौमनस वन के पूर्वदिशा के जिन मंदिर में चैत्यवृक्ष के नीचे समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर पुंडरीकिणी नगरी के राजा वज्रदंत की श्रीमती नाम की पुत्री हुई । <span class="GRef"> महापुराण 5.253-254, 283-286, 6. 50-60 </span>देखें [[ श्रीमती#13 | श्रीमती - 13]]</p> | <p id="9" class="HindiText">(9) वृषभदेव के नौवें पूर्वभव का जीव-ऐशान स्वर्ग के ललितांग देव की महादेवी । यह पति की पृथक्त्व पल्य के बराबर आयु शेष रह जाने पर उत्पन्न हुई थी । पति का वियोग होने पर इसे दु:खी देखकर अंत:परिषद के सदस्य दृढ़धर्म देव ने इसका शोक दूर कर इसे सन्मार्ग पर लगाया था । यह छ: माह तक जिनपूजा में उद्यत रही । पश्चात् सौमनस वन के पूर्वदिशा के जिन मंदिर में चैत्यवृक्ष के नीचे समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर पुंडरीकिणी नगरी के राजा वज्रदंत की श्रीमती नाम की पुत्री हुई । <span class="GRef"> महापुराण 5.253-254, 283-286, 6. 50-60 </span>देखें [[ श्रीमती#13 | श्रीमती - 13]]</p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 28 November 2023
सिद्धांतकोष से
महापुराण/सर्ग/श्लोक
स्वर्ग में ललितांगदेव (ऋषभदेव के नवमें भव) की अति प्रिय देवी थी (5/286)। यह ललितांगदेव के स्वर्ग से च्युत होने पर अति दुखी हुई (6/50)। अंत में पंचपरमेष्ठी के स्मरण पूर्वक स्वर्ग से च्युत हुई (6/56-57)। यह श्रेयांस राजा का पूर्व का पाँचवाँ भव है-देखें श्रेयांस ।
पुराणकोष से
(1) स्वयंभूरमण द्वीप के स्वयंप्रभ व्यंतर देव की देवी । यह कृष्ण की पटरानी पदमावती के तीसरे पूर्वभव का जीव थी । महापुराण 71. 451-452, हरिवंशपुराण - 60.116
(2) मंदोदरी की छोटी बहिन । रावण ने इसे सहस्ररश्मि को देना चाहा था किंतु उसने इसे स्वीकार न करके दीक्षा ले ली थी । पद्मपुराण - 10.161
(3) कृष्ण की रानी जांबवती के पूर्व का जीव । यह कुबेर की स्त्री थी । हरिवंशपुराण - 60.50
(4) विजया पर्वत की दक्षिण श्रेणी के रथनूपुर चक्रवाल नगर के राजा सुकेतु की रानी । इसकी पुत्री सत्यभामा का विवाह कृष्ण से हुआ था । महापुराण 71. 313, हरिवंशपुराण - 36.56,हरिवंशपुराण - 36.61, 60. 22, पांडवपुराण 11. 60
(5) समवशरण के आम्रवन की एक वापी । हरिवंशपुराण - 57.35
(6) समुद्रविजय के छोटे भाई स्तिमित सागर को रानी । हरिवंशपुराण - 19.3
(7) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के राजा विद्याधर ज्वलनजटी और रानी वायुवेगा की पुत्री । यह अर्ककीर्ति की बहिन थी । पिता ने इसका विवाह पोदनपुर के राजकुमार प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ से किया था । महापुराण 62.44, 74.131-155, पांडवपुराण 4.11-13, 53-54 वीरवर्द्धमान चरित्र 3.71-75, 94.95
(8) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में भोगपुर नगर के राजा वायुरथ विद्याधर की रानी । प्रभावती की यह जननी थी । महापुराण 46.147-148
(9) वृषभदेव के नौवें पूर्वभव का जीव-ऐशान स्वर्ग के ललितांग देव की महादेवी । यह पति की पृथक्त्व पल्य के बराबर आयु शेष रह जाने पर उत्पन्न हुई थी । पति का वियोग होने पर इसे दु:खी देखकर अंत:परिषद के सदस्य दृढ़धर्म देव ने इसका शोक दूर कर इसे सन्मार्ग पर लगाया था । यह छ: माह तक जिनपूजा में उद्यत रही । पश्चात् सौमनस वन के पूर्वदिशा के जिन मंदिर में चैत्यवृक्ष के नीचे समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर पुंडरीकिणी नगरी के राजा वज्रदंत की श्रीमती नाम की पुत्री हुई । महापुराण 5.253-254, 283-286, 6. 50-60 देखें श्रीमती - 13