सिद्धसेन: Difference between revisions
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<li>सिद्धसेन दिवाकर दिगंबर तथा श्वेतांबर दोनों आम्नायों में प्रसिद्ध हैं। कृतियें-सन्मति सूत्र, कल्याण मंदिर स्तोत्र और कुछ द्वात्रिंशिकायें। समय-लगभग वि.625। (देखें [[ परिशिष्ट ]])।</li> | <li>सिद्धसेन दिवाकर दिगंबर तथा श्वेतांबर दोनों आम्नायों में प्रसिद्ध हैं। कृतियें-सन्मति सूत्र, कल्याण मंदिर स्तोत्र और कुछ द्वात्रिंशिकायें। समय-लगभग वि.625। (देखें [[ परिशिष्ट ]])।</li> | ||
<li>सिद्धसेन गणी यद्यपि श्वेतांबर हैं परंतु किसी कारणवश इन्हें क्योंकि दिगंबर संघ का संसर्ग प्राप्त हो गया था इसलिए कुछ दिगंबर संस्कार भी इनमें पाए जाते हैं। कृतियें-तत्वार्थाधिगम भाष्य वृत्ति, आचारांग सूत्र वृत्ति, न्यायावतार, द्वात्रिंशिकायें। समय-वि.श.8-9। (देखें [[ परिशिष्ट ]])।</li> | <li>सिद्धसेन गणी यद्यपि श्वेतांबर हैं परंतु किसी कारणवश इन्हें क्योंकि दिगंबर संघ का संसर्ग प्राप्त हो गया था इसलिए कुछ दिगंबर संस्कार भी इनमें पाए जाते हैं। कृतियें-तत्वार्थाधिगम भाष्य वृत्ति, आचारांग सूत्र वृत्ति, न्यायावतार, द्वात्रिंशिकायें। समय-वि.श.8-9। (देखें [[ परिशिष्ट ]])।</li> | ||
<li>पुन्नाट संघ की गुर्वावली के अनुसार अभयसेन | <li>पुन्नाट संघ की गुर्वावली के अनुसार अभयसेन प्रथम के शिष्य और अभयसेन द्वितीय के गुरु। (देखें [[ इतिहास#7.8 | इतिहास - 7.8]])।</li> | ||
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<div class="HindiText"> <p> सूक्तियों के रचयिता एक आचार्य । | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सूक्तियों के रचयिता एक आचार्य । हरिवंशपुराण में इनका नामोल्लेख स्वामी समंतभद्र के पश्चात् हुआ है और महापुराण में पहले । इन्होंने वादियों को पराजित किया था । <span class="GRef"> महापुराण 1.39-43</span> <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#28|हरिवंशपुराण - 1.28-29]]</span></p> | ||
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Latest revision as of 23:01, 28 November 2023
सिद्धांतकोष से
इस नाम के तीन आचार्य प्राप्त होते हैं-सिद्धसेन दिवाकर, सिद्धसेन गणी और सिद्धसेन।
- सिद्धसेन दिवाकर दिगंबर तथा श्वेतांबर दोनों आम्नायों में प्रसिद्ध हैं। कृतियें-सन्मति सूत्र, कल्याण मंदिर स्तोत्र और कुछ द्वात्रिंशिकायें। समय-लगभग वि.625। (देखें परिशिष्ट )।
- सिद्धसेन गणी यद्यपि श्वेतांबर हैं परंतु किसी कारणवश इन्हें क्योंकि दिगंबर संघ का संसर्ग प्राप्त हो गया था इसलिए कुछ दिगंबर संस्कार भी इनमें पाए जाते हैं। कृतियें-तत्वार्थाधिगम भाष्य वृत्ति, आचारांग सूत्र वृत्ति, न्यायावतार, द्वात्रिंशिकायें। समय-वि.श.8-9। (देखें परिशिष्ट )।
- पुन्नाट संघ की गुर्वावली के अनुसार अभयसेन प्रथम के शिष्य और अभयसेन द्वितीय के गुरु। (देखें इतिहास - 7.8)।
पुराणकोष से
सूक्तियों के रचयिता एक आचार्य । हरिवंशपुराण में इनका नामोल्लेख स्वामी समंतभद्र के पश्चात् हुआ है और महापुराण में पहले । इन्होंने वादियों को पराजित किया था । महापुराण 1.39-43 हरिवंशपुराण - 1.28-29