प्रत्यय: Difference between revisions
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== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p class="HindiText">वैसे तो प्रत्यय शब्द का अर्थ कारण होता है, पर रूढिवश आगम में यह शब्द प्रधानतः कर्मों के आस्रव व बंध के निमित्तों | <p class="HindiText">वैसे तो प्रत्यय शब्द का अर्थ कारण होता है, पर रूढिवश आगम में यह शब्द प्रधानतः कर्मों के आस्रव व बंध के निमित्तों के लिए प्रयुक्त हुआ है । ऐसे वे मिथ्यात्व, अविरति आदि प्रत्यय हैं, जिनके अनेक उत्तर भेद हो जाते हैं ।</p> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong> भेद व लक्षण</strong><br /> | ||
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<li class="HindiText"> प्रत्यय सामान्य का लक्षण ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #1.1 | प्रत्यय सामान्य का लक्षण ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> प्रत्यय के भेद-प्रभेद | <li class="HindiText"> [[ #1.2 | प्रत्यय के भेद-प्रभेद]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> प्रमाद का कषाय में अंतर्भाव करके पाँच प्रत्यय ही चार बन जाते हैं ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #1.3 | प्रमाद का कषाय में अंतर्भाव करके पाँच प्रत्यय ही चार बन जाते हैं ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> प्राणातिपातादि अन्य प्रत्ययों का परस्पर में अंतर्भाव नहीं होता ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #1.4 | प्राणातिपातादि अन्य प्रत्ययों का परस्पर में अंतर्भाव नहीं होता ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> अविरति व प्रमाद में अंतर | <li class="HindiText">[[ #1.5 | अविरति व प्रमाद में अंतर ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> कषाय व अविरति में अंतर ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #1.6 | कषाय व अविरति में अंतर ।]]<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong> प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ</strong><br /> | ||
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<li class="HindiText"> सारिणी में प्रयुक्तसंकेतों का अर्थ ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #2.1 | सारिणी में प्रयुक्तसंकेतों का अर्थ ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति (सामान्य व विशेष) ओघ प्ररूपणा ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #2.2 | प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति (सामान्य व विशेष) ओघ प्ररूपणा ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति आदेशप्ररूपणा ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #2.3 | प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति आदेशप्ररूपणा ।]]<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText">[[ #2.4 | प्रत्यय स्थान व भंग प्ररूपणा ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> एक समय में उदय आने योग्य प्रत्ययों संबंधी सामान्य नियम ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #2.4.1 | एक समय में उदय आने योग्य प्रत्ययों संबंधी सामान्य नियम ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> उक्त नियम के अनुसार प्रत्ययों के सामान्य भंग ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #2.4.2 | उक्त नियम के अनुसार प्रत्ययों के सामान्य भंग ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> उक्त नियम के अनुसार भंग निकालने का उपाय ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #2.4.3 | उक्त नियम के अनुसार भंग निकालने का उपाय ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> गुणस्थानों की अपेक्षा स्थान व भंग ।<br /> | <li class="HindiText">[[ #2.4.4 | गुणस्थानों की अपेक्षा स्थान व भंग ।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> किस प्रकृति के अनुभाग बंध में कौन प्रत्यय निमित्त हैं ?<br /> | <li class="HindiText">[[ #2.5 | किस प्रकृति के अनुभाग बंध में कौन प्रत्यय निमित्त हैं ?]]<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1" id="1">प्रत्यय के भेद व लक्षण</strong> <br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.1" id="1.1">प्रत्यय सामान्य का लक्षण</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/1/21/2/79/8 </span><span class="SanskritText">अयं प्रत्ययशब्दोऽनेकार्थः । क्वचिज्ज्ञाने वर्तते, यथा ‘अर्थाभिधानप्रत्यय:’ इति . क्वचिच्छपथे वर्तते, यथा परद्रव्यहरणादिषु सत्युपालंभे ‘प्रत्ययोऽनेन कृतः’ इति । क्वचिद्धेतौ वर्तते, यथा ‘अविद्याप्रत्ययाः संस्काराः’ इति ।</span> = <span class="HindiText">प्रत्यय शब्द | <span class="GRef"> राजवार्तिक/1/21/2/79/8 </span><span class="SanskritText">अयं प्रत्ययशब्दोऽनेकार्थः । क्वचिज्ज्ञाने वर्तते, यथा ‘अर्थाभिधानप्रत्यय:’ इति . क्वचिच्छपथे वर्तते, यथा परद्रव्यहरणादिषु सत्युपालंभे ‘प्रत्ययोऽनेन कृतः’ इति । क्वचिद्धेतौ वर्तते, यथा ‘अविद्याप्रत्ययाः संस्काराः’ इति ।</span> = <span class="HindiText">प्रत्यय शब्द के अनेक अर्थ हैं। कहीं पर '''ज्ञान''' के अर्थ में वर्तता है जैसे - अर्थ, शब्द, प्रत्यय (ज्ञान) । कहीं पर '''कसम''' शब्द के अर्थ में वर्तता है जैसे - पर आदि के चुराये जाने के प्रसंग में दूसरे के द्वारा उलाहना मिलने पर ‘प्रत्ययोऽनेन कृतः’ अर्थात् उसके द्वारा कसम खायी गयी । कहीं पर '''हेतु''' के अर्थ में वर्तता है जैसे - </span><span class="SanskritText">अविद्याप्रत्ययाः संस्काराः ।</span><span class="HindiText"> अर्थात् अविद्या के हेतु संस्कार हैं ।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 1/1,1,11/166/7 </span><span class="SanskritText">दृष्टिः श्रद्धा रुचिः प्रत्यय इति यावत् । </span>= <span class="HindiText">दृष्टि, श्रद्धा, रुचि और प्रत्यय ये पर्यायवाची नाम हैं ।</span><br /> | <span class="GRef"> धवला 1/1,1,11/166/7 </span><span class="SanskritText">दृष्टिः श्रद्धा रुचिः प्रत्यय इति यावत् । </span>= <span class="HindiText">दृष्टि, श्रद्धा, रुचि और प्रत्यय ये पर्यायवाची नाम हैं ।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/82/212/3 </span><span class="SanskritText">प्रत्ययशब्दोऽनेकार्थः । क्वचिज्ज्ञाने वर्तते यथा घटस्य प्रत्ययो घटज्ञानं इति यावत् । तथा कारणवचनोऽपि ‘मिथ्यात्वप्रत्ययोऽनंतः संसार’ इति गदिते मिथ्यात्वहेतुक इति प्रतीयते । तथा श्रद्धावचनोऽपि ‘अयं अत्रास्य प्रत्ययः’ श्रद्धेति गम्यते ।</span> = <span class="HindiText">प्रत्यय शब्द के अनेक अर्थ हैं जैसे </span><span class="SanskritText">‘घटस्य प्रत्ययः’</span><span class="HindiText"> | <span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/82/212/3 </span><span class="SanskritText">प्रत्ययशब्दोऽनेकार्थः । क्वचिज्ज्ञाने वर्तते यथा घटस्य प्रत्ययो घटज्ञानं इति यावत् । तथा कारणवचनोऽपि ‘मिथ्यात्वप्रत्ययोऽनंतः संसार’ इति गदिते मिथ्यात्वहेतुक इति प्रतीयते । तथा श्रद्धावचनोऽपि ‘अयं अत्रास्य प्रत्ययः’ श्रद्धेति गम्यते ।</span> = <span class="HindiText">प्रत्यय शब्द के अनेक अर्थ हैं जैसे </span><span class="SanskritText">‘घटस्य प्रत्ययः’</span><span class="HindiText"> घट का ज्ञान - यहां प्रत्यय शब्द का '''ज्ञान''' ऐसा अर्थ है । प्रत्यय शब्द '''कारण''' वाचक भी है । जैसे - </span><span class="SanskritText">‘मिथ्यात्वप्रत्यय अनंतसंसारः’</span><span class="HindiText"> अर्थात् इस अनंत संसार का मिथ्यात्व कारण है । प्रत्यय शब्द का '''श्रद्धा''' ऐसा भी अर्थ होता है जैसे </span><span class="SanskritText">‘अयं अत्रास्य प्रत्ययः’</span><span class="HindiText"> इस मनुष्य की इसके ऊपर श्रद्धा है ।<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.2" id="1.2">प्रत्यय के भेद-प्रभेद</strong> <br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.2.1" id="1.2.1">बाह्य व अभ्यंतर रूप दो भेद</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> कषायपाहुड़ 1/1,13-14/284/1 </span><span class="PrakritText"> | <span class="GRef"> कषायपाहुड़ 1/1,13-14/284/1 </span><span class="PrakritText">तत्थ अव्भंतरों कोधादिदव्वकम्मक्खंधा... बाहिरो कोधादिभावकसायसमुप्पत्तिकारण जीवाजीवप्पयं बज्झदव्वं ।</span> = <span class="HindiText">क्रोधादिरूप द्रव्यकर्मों के स्कंध को अभ्यंतर प्रत्यय कहते हैं । तथा क्रोधादिरूप भाव कषाय की उत्पत्ति का कारणभूत जो जीव और अजीवरूप बाह्य द्रव्य है वह बाह्य प्रत्यय है ।<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.2.2" id="1.2.2">मोह, राग, द्वेष तीन प्रत्यय</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> नयचक्र बृहद्/301 </span><span class="PrakritText"> | <span class="GRef"> नयचक्र बृहद्/301 </span><span class="PrakritText">पच्चयवतो रागा दोसामोहे य आसवा तेसि ।...।301।</span> = <span class="HindiText">राग, द्वेष और मोह ये तीन प्रत्यय हैं, इनसे कर्मों का आस्रव होता है ।301।<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.2.3" id="1.2.3">मिथ्यात्वादि चार प्रत्यय</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> समयसार 109-110 </span><span class="PrakritGatha">सामण्णपच्चया खलु चउरो भण्णंति बंधकत्तारो । मिच्छत्तं अविरमणं कसाय जोगाय बोद्धव्वा ।109। तेसिं पुणो वि य इमो भणिदो भेदो दु तेरस वियप्पो । मिच्छादिट्ठीआदी जाव सजोगिस्स चरमंतं ।110। </span>= <span class="HindiText">चार सामान्य प्रत्यय निश्चय से बंध | <span class="GRef"> समयसार 109-110 </span><span class="PrakritGatha">सामण्णपच्चया खलु चउरो भण्णंति बंधकत्तारो । मिच्छत्तं अविरमणं कसाय जोगाय बोद्धव्वा ।109। तेसिं पुणो वि य इमो भणिदो भेदो दु तेरस वियप्पो । मिच्छादिट्ठीआदी जाव सजोगिस्स चरमंतं ।110। </span>= <span class="HindiText">चार सामान्य प्रत्यय निश्चय से बंध के कर्ता कहे जाते हैं, वे मिथ्यात्व, अविरमण, कषाय और योग जानना ।109। <span class="GRef"> (पंचसंग्रह / प्राकृत/4/77), (धवला 7/2,1,7,गाथा/2/9), (धवला 8/3/6/19/12), (नयचक्र बृहद्/302), (योगसार/3/2), (पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/149)</span><br/> | ||
<span class="HindiText"> और फिर उनका यह तेरह प्रकार का भेद कहा गया है जो कि - मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगकेवली (गुणस्थान) पर्यंत है ।110।<br /> | |||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.2.4" id="1.2.4">मिथ्यात्वादि पाँच प्रत्यय</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> तत्त्वार्थसूत्र/8/1 </span><span class="SanskritText">मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बंधहेतवः ।1।</span> = <span class="HindiText">मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये बंध के हेतु हैं ।1। ( | <span class="GRef"> तत्त्वार्थसूत्र/8/1 </span><span class="SanskritText">मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बंधहेतवः ।1।</span> = <span class="HindiText">मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये बंध के हेतु हैं ।1। <span class="GRef"> (मूलाचार आराधना/1219)</span><br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.2.5" id="1.2.5">प्राणातिपात आदि 28 प्रत्यय</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> षट्खंडागम/12/4,2,8/ | <span class="GRef"> षट्खंडागम/12/4,2,8/सू.2-11/275 </span> <span class="PrakritText">णेगम-ववहार-संगहाणं णाणावरणीयवेयणा पाणादिवादपच्चए ।2। मुसावादपच्चए ।3। अदत्तादाणपच्चए ।4। मेहुणपच्चए ।5। परिग्गहपच्चए ।6। रादिभोयणपच्चए ।7। एवं कोह-माण-माया-लोह-राग-दोस-मोह-पेम्मपच्चए ।8। णिदाणपच्चए ।9। अब्भक्खाण-कलह-पेसुण्ण-रइ-अरइ-उवहि-णियदि-माण-माय-मोस-मिच्छाणाण-मिच्छदंसण-पओअपच्चए ।10। एवं सत्तण्णं कम्माणं ।11।</span> = <span class="HindiText">नैगम, व्यवहार और संग्रह नय की अपेक्षा ज्ञानावरणीय वेदना— प्राणातिपात प्रत्यय से; मृषावाद प्रत्यय से; अदत्तादान प्रत्यय से; मैथुन प्रत्यय से; परिग्रह प्रत्यय से; रात्रि भोजन प्रत्यय से, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, मोह और प्रेम प्रत्ययों से; निदान प्रत्यय से; अभ्याख्यान, कलह, पैशुन्य, रति, अरति, उपधि, निकृति, मान, माया, मोष, मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन, और प्रयोग इन प्रत्ययों से होती है ।2-10। इसी प्रकार शेष सात कर्मों के प्रत्ययों की प्ररूपणा करनी चाहिए ।11।<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.2.6" id="1.2.6">चार प्रत्ययों के कुल 57 भेद</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/4/77 </span><span class="PrakritGatha">मिच्छासंजम हुंति हु कसाय जोगा य बंधहेऊ ते । पंच दुवालस भेया कमेण पणुवीस पण्णस्सं ।77। </span>= <span class="HindiText">मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग ये चार कर्मबंध के मूल कारण हैं । इनके उत्तर भेद क्रम से पाँच, बारह, पच्चीस और पंद्रह हैं । इस प्रकार सब मिलकर कर्म बंध के सत्तावन उत्तर प्रत्यय होते हैं ।77। | <span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/4/77 </span><span class="PrakritGatha">मिच्छासंजम हुंति हु कसाय जोगा य बंधहेऊ ते । पंच दुवालस भेया कमेण पणुवीस पण्णस्सं ।77। </span>= <span class="HindiText">मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग ये चार कर्मबंध के मूल कारण हैं । इनके उत्तर भेद क्रम से पाँच, बारह, पच्चीस और पंद्रह हैं । इस प्रकार सब मिलकर कर्म बंध के सत्तावन उत्तर प्रत्यय होते हैं ।77। <span class="GRef">(धवला 8/3,6/21/1), (गोम्मटसार कर्मकांड/786/950)</span><br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.3" id="1.3">प्रमाद का कषाय में अंतर्भाव करके पाँच प्रत्यय ही चार बन जाते हैं</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला/7/2,7/11/11 </span><span class="PrakritGatha"> चदुण्हं बंधकारणाणं मज्झे कत्थ पमादस्संतब्भावो । कसायेसु, | <span class="GRef"> धवला/7/2,1,7/11/11 </span><span class="PrakritGatha"> चदुण्हं बंधकारणाणं मज्झे कत्थ पमादस्संतब्भावो । कसायेसु, कसायवदिरित्तपमादावणुवलभादो ।</span> = <span class="HindiText"><strong>प्रश्न-</strong> पूर्वोक्त (मिथ्यात्व, प्रमाद, कषाय, और योग) चार बंध के कारणों में प्रमाद का कहाँ अंतर्भाव होता है ? <br> | ||
<strong>उत्तर-</strong> कषायों में प्रमाद का अंतर्भाव होता है, क्योंकि कषायों से पृथक् प्रमाद पाया नहीं जाता ।<span class="GRef"> धवला 12/4,2,8,10/286/10 )</span>।<br /> | |||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.4" id="1.4">प्राणातिपात आदि अन्य प्रत्ययों का परस्पर में अंतर्भाव नहीं किया जा सकता</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 12/4,2,8-9/ </span> | <span class="GRef"> धवला 12/4,2,8-9/पृष्ठ/पं. </span><span class="PrakritText">ण च पाणदिवाद-मुसावाद-अदत्तादाणाणमंत-रंगाणं कोधादिपच्चएसु अंतब्भावो, कंधचि तत्तो तेसि भेदुवलंभादो (282/8) । ण च मेहुणं अंतरंगरागे णिपददि, तत्तो कधंचि एदस्स भेदुवलंभादो ।282/7) मोहपच्चयो कोहादिसु पविसदि त्ति किण्णावणिज्जदे । ण, अवयवावयवीणं वदिरेगण्णयसरूवाणमणेगेगसंखाणं कारणकज्जाणं एगाणेगसहावावाणमेगत्तविरोहादो (285/10) पेम्मपच्चयो लोह-राग-पच्चएसु पविसदि त्ति पुणरुत्तो किण्ण जायदे । ण, तेहितो एदस्स कधंचि भेदुवलंभादो । तं जहा बज्झत्थेसु ममेदं भावो लोभो । ण सो पेम्मं, ममेदं बुद्धीए अपडिग्गहिदे वि दक्खाहले परदारे वा पेम्मुवलंभादो । ण रागो पेम्मं, माया-लोभ-हस्स-रदि-पेम्म-समूहस्स रागस्स अवयविणो अवयवसरूवपेम्मत्त-विरोहादो (284/3)। ... ण च एसो पच्चओ मिच्छत्तपच्चए पविसदि, मिच्छत्तसहचारिस्स मिच्छत्तेण एयत्तविरोहादो । ण पेम्मपच्चए पविसदि, संपयासंपयविसयम्मि पेम्मम्मि संपयविसयम्मि णिदाणस्स पवेसविरोहादो । </span>= | ||
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<li class="HindiText"> प्राणातिपात, मृषावाद और अदत्तादान इन अंतरंग प्रत्ययों का क्रोधादिक प्रत्ययों में अंतर्भाव नहीं हो सकता, क्योंकि, उनसे इनका कथंचित् भेद पाया जाता है । </li> | <li class="HindiText"> प्राणातिपात, मृषावाद और अदत्तादान इन अंतरंग प्रत्ययों का क्रोधादिक प्रत्ययों में अंतर्भाव नहीं हो सकता, क्योंकि, उनसे इनका कथंचित् भेद पाया जाता है । </li> | ||
<li class="HindiText"> मैथुन अंतरंग राग में गर्भित नहीं होता, क्योंकि, उससे इसमें कथंचित् भेद पाया जाता है । (282/7) । </li> | <li class="HindiText"> मैथुन अंतरंग राग में गर्भित नहीं होता, क्योंकि, उससे इसमें कथंचित् भेद पाया जाता है । (282/7) । </li> | ||
<li class="HindiText"><strong> प्रश्न-</strong> मोह प्रत्यय चूँकि क्रोधादिक में प्रविष्ट है अतएव उसे कम क्यों नहीं किया जाता है ? <strong>उत्तर-</strong> नहीं, क्योंकि क्रमशः व्यतिरेक व अन्वय स्वरूप, अनेक व एक संख्या वाले, कारण व कार्य रूप तथा एक व अनेक स्वभाव से संयुक्त अवयव अवयवी के एक होने का विरोध है (283/10) । </li> | <li class="HindiText"><strong> प्रश्न-</strong> मोह प्रत्यय चूँकि क्रोधादिक में प्रविष्ट है अतएव उसे कम क्यों नहीं किया जाता है ? <br> | ||
<li class="HindiText"><strong> प्रश्न-</strong> चूँकि प्रेम प्रत्यय लोभ व राग प्रत्ययों में प्रविष्ट है अतः वह पुनरुक्त | <strong>उत्तर-</strong> नहीं, क्योंकि क्रमशः व्यतिरेक व अन्वय स्वरूप, अनेक व एक संख्या वाले, कारण व कार्य रूप तथा एक व अनेक स्वभाव से संयुक्त अवयव अवयवी के एक होने का विरोध है (283/10) । </li> | ||
<li class="HindiText"> यह (निदान) प्रत्यय मिथ्यात्व प्रत्यय में प्रविष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि वह मिथ्यात्व का सहचारी है, अतः मिथ्यात्व के साथ उसकी एकता का विरोध है । वह प्रेम प्रत्यय में भी प्रविष्ट नहीं होता, क्योंकि, प्रेम संपत्ति एवं असंपत्ति दोनों को विषय करने वाला है, परंतु निदान केवल | <li class="HindiText"><strong> प्रश्न-</strong> चूँकि प्रेम प्रत्यय लोभ व राग प्रत्ययों में प्रविष्ट है अतः वह पुनरुक्त क्यों न होगा ? <br> | ||
<strong>उत्तर-</strong> नहीं, क्योंकि उनसे इसका कथंचित् भेद पाया जाता है । वह इस प्रकार से - बाह्य पदार्थों में ‘यह मेरा है’ इस प्रकार के भाव को लोभ कहा जाता है । वह प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि, ‘यह मेरा है’ ऐसी बुद्धि के अविषयभूत भी द्राक्षाफल अथवा परस्त्री के विषय में प्रेम पाया जाता है । राग भी प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि, माया, लोभ, हास्य, रति और प्रेम के समूह रूप अवयवी कहलाने वाले राग के अवयव स्वरूप प्रेम रूप होने का विरोध है । (284/3) । </li> | |||
<li class="HindiText"> यह (निदान) प्रत्यय मिथ्यात्व प्रत्यय में प्रविष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि वह मिथ्यात्व का सहचारी है, अतः मिथ्यात्व के साथ उसकी एकता का विरोध है । वह प्रेम प्रत्यय में भी प्रविष्ट नहीं होता, क्योंकि, प्रेम संपत्ति एवं असंपत्ति दोनों को विषय करने वाला है, परंतु निदान केवल संपत्ति को ही विषय करता है, अतएव उसका प्रेम में प्रविष्ट होना विरुद्ध है ।<br /> | |||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.5" id="1.5">अविरति व प्रमाद में अंतर</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/8/1/32/565/4 </span><span class="SanskritText">अविरते प्रमादस्य चाविशेष इति चेत्; न; विरतस्यापि प्रमाददर्शनात् ।32। ... विरतस्यापि पंचदश प्रमादाः संभवंति- विकथाकषायेंद्रियनिद्राप्रणयलक्षणा- ।</span> = <span class="HindiText"><strong>प्रश्न -</strong> अविरति और प्रमाद में कोई भेद नहीं है ? <strong>उत्तर - </strong>नहीं, क्योंकि | <span class="GRef"> राजवार्तिक/8/1/32/565/4 </span><span class="SanskritText">अविरते प्रमादस्य चाविशेष इति चेत्; न; विरतस्यापि प्रमाददर्शनात् ।32। ... विरतस्यापि पंचदश प्रमादाः संभवंति- विकथाकषायेंद्रियनिद्राप्रणयलक्षणा- ।</span> = <span class="HindiText"><strong>प्रश्न -</strong> अविरति और प्रमाद में कोई भेद नहीं है ? <br> | ||
<strong>उत्तर - </strong>नहीं, क्योंकि विरत के भी विकथा, कषाय, इंद्रिय, निद्रा और प्रणय ये पंद्रह प्रमाद स्थान देखे जाते हैं, अतः प्रमाद और अविरति पृथक्-पृथक् हैं ।<br /> | |||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="1.6" id="1.6">कषाय व अविरति में अंतर</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/8/1/33/565/7 </span><span class="SanskritText">स्यादेतत्-कषायाविरत्योर्नास्ति भेदः उभयोरपि हिंसादिपरिणामरूपत्वादिति; तन्नः किं कारणम् । कार्यकारण भेदोपपत्तेः । कारणभूता हि कषायाः कार्यात्मिकाया हिंसाद्यविरतेरर्थांतरभूता इति ।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न -</strong>हिंसा परिणाम रूप होने के कारण कषाय और अविरति में कोई भेद नहीं है ? <strong>उत्तर-</strong> ऐसा नहीं है, क्योंकि इनमें कार्य कारण की | <span class="GRef"> राजवार्तिक/8/1/33/565/7 </span><span class="SanskritText">स्यादेतत्-कषायाविरत्योर्नास्ति भेदः उभयोरपि हिंसादिपरिणामरूपत्वादिति; तन्नः किं कारणम् । कार्यकारण भेदोपपत्तेः । कारणभूता हि कषायाः कार्यात्मिकाया हिंसाद्यविरतेरर्थांतरभूता इति ।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न -</strong>हिंसा परिणाम रूप होने के कारण कषाय और अविरति में कोई भेद नहीं है ? <br> | ||
<span class="GRef"> धवला 7/2,1,7/13/7 </span><span class="PrakritGatha">असंजमो जदि कसाएसु चेव पददि तो पुध तदुवदेसो किमट्ठं कीरदे । ण एस दोसो, ववहारणयं पडुच्च तदुवदेसादो । </span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न-</strong>यदि असंयम कषायों में ही अंतर्भूत होता है तो फिर उसका पृथक् उपदेश किस लिए किया जाता है । <strong>उत्तर</strong> | <strong>उत्तर-</strong> ऐसा नहीं है, क्योंकि इनमें कार्य कारण की दृष्टि से भेद है । कषाय कारण हैं और हिंसादि अविरति कार्य ।</span><br /> | ||
देखें [[ प्रत्यय#4 | प्रत्यय - 4 ]](प्राणातिपातादि अंतरंग प्रत्ययों का क्रोधादि प्रत्ययों से कथंचित् भेद है)। <br /> | <span class="GRef"> धवला 7/2,1,7/13/7 </span><span class="PrakritGatha">असंजमो जदि कसाएसु चेव पददि तो पुध तदुवदेसो किमट्ठं कीरदे । ण एस दोसो, ववहारणयं पडुच्च तदुवदेसादो । </span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न-</strong> यदि असंयम कषायों में ही अंतर्भूत होता है तो फिर उसका पृथक् उपदेश किस लिए किया जाता है । <br> | ||
<strong>उत्तर-</strong> यह कोई दोष नहीं, क्योंकि व्यवहार नय की अपेक्षा से उसका पृथक् उपदेश किया गया है ।<br /> | |||
देखें [[ प्रत्यय#1.4 | प्रत्यय - 4 ]](प्राणातिपातादि अंतरंग प्रत्ययों का क्रोधादि प्रत्ययों से कथंचित् भेद है)। <br /> | |||
</span></li> | </span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2" id="2">प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ</strong> | ||
</span> | </span> | ||
<ol> | <ol> | ||
Line 118: | Line 124: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top" class="HindiText"><br /> | <td width="338" valign="top" class="HindiText"><br /> | ||
अनं. चतु.</td> | |||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">अनु. मन. वच.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">अनुभय मन व अनुभय वचन</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">वच.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">उभय वचन</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">अवि.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">अविरति</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">आ. द्वि.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">आहारक व आहारक मिश्र</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">आ. मि.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">आहारक मिश्र</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">औ. द्वि.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">औदारिक व औदारिक मिश्र</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">उ. मन. वच.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">उभय मन व वचन</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">नपुं.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">नपुंसक वेद</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">पु.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">पुरुष वेद</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">प्रत्या. चतु.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">मन. 4</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">सत्य,असत्य, उभय व अनुभव मनोयोग</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">मि. पंचक</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">पाँचों प्रकार का मिथ्यात्व</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">वचन. 4</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">चार प्रकार का वचन योग</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">वै. द्वि.</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">वैक्रियक व वैक्रियक मिश्र</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">सं. क्रोध</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">संज्वलन क्रोध</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">हास्यादि 6</p></td> | ||
<td width="338" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="338" valign="top"><p class="HindiText">हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
<ol start="2"> | <ol start="2"> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2.2" id="2.2"> प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति ओघ प्ररूपणा</strong> <br /> | ||
</span> | </span> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li class="HindiText"><strong name="2.2.1" id="2.2.1"> सामान्य 4 वा 5 प्रत्ययों की अपेक्षा</strong> <br /> | <li class="HindiText"><strong name="2.2.1" id="2.2.1"> सामान्य 4 वा 5 प्रत्ययों की अपेक्षा</strong> <br /> | ||
कुल बंध योग्य प्रत्ययः- 1 <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/8/1/376/5 </span>मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग = 5 ; 2. <span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/4/78-79 </span>मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग = 4, | कुल बंध योग्य प्रत्ययः- 1 <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/8/1/376/5 </span>मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग = 5 ; 2. <span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/4/78-79 </span>मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग = 4, <span class="GRef"> (धवला 8/3, 6/गाथा. 20-21/24);(पं. सं./सं./4/18-21) (गोम्मटसार कर्मकांड /787-788) </span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
Line 199: | Line 205: | ||
<td width="75" valign="top" class="HindiText"><br /> | <td width="75" valign="top" class="HindiText"><br /> | ||
गुणस्थान </td> | गुणस्थान </td> | ||
<td width="232" colspan="4" valign=" | <td width="232" colspan="4" valign="center"><p class="HindiText">पाँच प्रत्ययों की अपेक्षा <br /> | ||
<span class="GRef"> (सर्वार्थसिद्धि) </span></p></td> | |||
<td width="234" colspan="4" valign=" | <td width="234" colspan="4" valign="center"><p class="HindiText">चार प्रत्ययों की अपेक्षा <br /> | ||
(पं.सं.)</p></td> | <span class="GRef"> (पं.सं.)</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="75" valign="top"><p> </p></td> | <td width="75" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText">व्युच्छित्ति | <td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText">व्युच्छित्ति प्र.</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">कुल | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">कुल बंध</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText">व्यु.</p></td> | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">व्यु.</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">शेष</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">शेष</p></td> | ||
Line 218: | Line 223: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="75" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="75" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText" | <td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText">मिथ्यात्व</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्यात्व</p></td> | ||
<td width="54" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="54" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="75" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="75" valign="top"><p class="HindiText">2-4</p></td> | ||
<td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText" | <td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText">त्रसअविरति</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">त्रस अविरति</p></td> | ||
<td width="54" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="54" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="75" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="75" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | ||
<td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText" | <td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText">अविरति</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">अविरति</p></td> | ||
<td width="54" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="54" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="75" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="75" valign="top"><p class="HindiText">6</p></td> | ||
<td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText" | <td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText">प्रमाद</strong></p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="54" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="54" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText"> </p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="75" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="75" valign="top"><p class="HindiText">7-10</p></td> | ||
<td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText" | <td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText">कषाय</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">कषाय</p></td> | ||
<td width="54" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="54" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="75" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="75" valign="top"><p class="HindiText">11-13</p></td> | ||
<td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText" | <td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText">योग</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">योग</p></td> | ||
<td width="54" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="54" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="75" valign="top"><p class="HindiText"><strong>14</strong></p></td> | <td width="75" valign="top"><p class="HindiText"><strong>14</strong></p></td> | ||
<td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText" | <td width="94" valign="top"><p align="center" class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="54" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="54" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
<td width="42" valign="top"><p class="HindiText" | <td width="42" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
Line 298: | Line 303: | ||
<ol start="2"> | <ol start="2"> | ||
<li class="HindiText"><strong name="2.2.2" id="2.2.2"> विशेष 57 प्रत्ययों की अपेक्षा</strong> <br /> | <li class="HindiText"><strong name="2.2.2" id="2.2.2"> विशेष 57 प्रत्ययों की अपेक्षा</strong> <br /> | ||
<strong>प्रमाण | <strong>प्रमाण </strong>- <span class="GRef"> (पंचसंग्रह / प्राकृत/80-83); (धवला 8/3, 6/22-24/1); (गोम्मटसार कर्मकांड/789-790/952) </span><br /> | ||
<strong>कुल | <strong>कुल बंध योग्य प्रत्यय </strong>- मिथ्यात्व 5; अविरति 12; कषाय 25; योग 15=57 ।</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 309: | Line 314: | ||
<td width="76" valign="top"><p class="HindiText">अनुदय </p></td> | <td width="76" valign="top"><p class="HindiText">अनुदय </p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p class="HindiText">पुनः उदय </p></td> | <td width="66" valign="top"><p class="HindiText">पुनः उदय </p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">कुल उदय | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">कुल उदय योग्य </p></td> | ||
<td width="58" valign="top"><p class="HindiText">अनुदय </p></td> | <td width="58" valign="top"><p class="HindiText">अनुदय </p></td> | ||
<td width="44" valign="top"><p class="HindiText">पुनः उदय </p></td> | <td width="44" valign="top"><p class="HindiText">पुनः उदय </p></td> | ||
<td width="44" valign="top"><p class="HindiText">उदय </p></td> | <td width="44" valign="top"><p class="HindiText">उदय </p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p class="HindiText">व्युच्छित्ति </p></td> | <td width="81" valign="top"><p class="HindiText">व्युच्छित्ति </p></td> | ||
<td width="30" valign="top"><p class="HindiText">शेष उदय | <td width="30" valign="top"><p class="HindiText">शेष उदय योग्य </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 343: | Line 348: | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
<td width="104" valign="top"><p> </p></td> | <td width="104" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="76" valign="top"><p class="HindiText">औ.वै.मि. व | <td width="76" valign="top"><p class="HindiText">औ.वै.मि. व कार्मण</p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">46</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">46</p></td> | ||
Line 354: | Line 359: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="104" valign="top"><p class="HindiText">अप्रत्या. | <td width="104" valign="top"><p class="HindiText">अप्रत्या. चतु. त्रसहिंसा, वै. द्वि. = 7</p></td> | ||
<td width="76" valign="top"><p> </p></td> | <td width="76" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p class="HindiText">औ.वै. मिश्र | <td width="66" valign="top"><p class="HindiText">औ.वै. मिश्र व कार्मण </p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">43</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">43</p></td> | ||
<td width="58" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | <td width="58" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
Line 367: | Line 371: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText"><strong>5</strong></p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText"><strong>5</strong></p></td> | ||
<td width="104" valign="top"><p class="HindiText">प्रत्या. | <td width="104" valign="top"><p class="HindiText">प्रत्या. चतु.शेष 11 अविरति = 15</p></td> | ||
<td width="76" valign="top"><p class="HindiText">औ.मि. कार्मण </p></td> | <td width="76" valign="top"><p class="HindiText">औ.मि. कार्मण </p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
Line 523: | Line 527: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">12</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">12</p></td> | ||
<td width="104" valign="top"><p class="HindiText">असत्य व उ. | <td width="104" valign="top"><p class="HindiText">असत्य व उ. मन व वचन</p></td> | ||
<td width="76" valign="top"><p> </p></td> | <td width="76" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
Line 535: | Line 539: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">13</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">13</p></td> | ||
<td width="104" valign="top"><p class="HindiText">सत्य. अनु. | <td width="104" valign="top"><p class="HindiText">सत्य. अनु. मन-वचन, औ.द्वि. व कार्मण</p></td> | ||
<td width="76" valign="top"><p> </p></td> | <td width="76" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p class="HindiText">औ.मि व | <td width="66" valign="top"><p class="HindiText">औ.मि. व कार्मण </p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | ||
<td width="58" valign="top"><p> </p></td> | <td width="58" valign="top"><p> </p></td> | ||
Line 559: | Line 563: | ||
</table> | </table> | ||
<ol start="3"> | <ol start="3"> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2.3" id="2.3">प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति आदेश प्ररूपणा<br> | ||
<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/4/84 </span></strong>-100 कुल उदय योग्य प्रत्यय = 57<br /> | <span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/4/84 </span></strong>-100 कुल उदय योग्य प्रत्यय = 57<br /> | ||
नोट - यहाँ प्रत्येक मार्गणा में केवल उदय योग्य प्रत्ययों के निर्देशरूप सामान्य प्ररूपणा की | नोट - यहाँ प्रत्येक मार्गणा में केवल उदय योग्य प्रत्ययों के निर्देशरूप सामान्य प्ररूपणा की गयी है । गुणस्थानों की अपेक्षा उनकी प्ररूपणा तथा यथायोग्य ओघ प्ररूपणा के आधार पर जानी जा सकती है । | ||
</span> | </span> | ||
<table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0"> | <table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0"> | ||
Line 569: | Line 573: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">मार्गणा </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">मार्गणा </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">गुणस्थान </p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">गुणस्थान </p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">उदय के | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">उदय के अयोग्य प्रत्ययों के नाम </p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">उदय योग्य </p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">उदय योग्य </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 583: | Line 587: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 नरक</p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 नरक</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">औ.द्वि, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">औ.द्वि, आ.द्विक, स्त्री, पुरुष वेद = 6</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">51</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">51</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 589: | Line 593: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 तिर्यंच</p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 तिर्यंच</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">वै.द्वि, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">वै.द्वि,आ.द्वि. = 4</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">53</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">53</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 595: | Line 599: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 मनुष्य</p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 मनुष्य</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">14</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">14</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">वै. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">वै.द्विक = 2</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 601: | Line 605: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">4 देव</p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">4 देव</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">औ.द्विक, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">औ.द्विक, आ.द्वि.नपुं. = 5</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">52</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">52</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 615: | Line 619: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 एकेंद्रिय </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 एकेंद्रिय </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">वै.द्वि, आ.द्विक., | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">वै.द्वि, आ.द्विक., वच. 4, मन.4,स्पर्श से अतिरिक्त 5 अविरति, स्त्री, पुरुषवेद = 19</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">38</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">38</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 621: | Line 625: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 द्ववींद्रिय </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 द्ववींद्रिय </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त 19-रसनेंद्रिय+अनुभय वचन = 17</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">40</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">40</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 627: | Line 631: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 त्रींद्रिय </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 त्रींद्रिय </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त 17- | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त 17-घ्राणेंद्रिय = 16</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">41</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">41</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 647: | Line 651: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 स्थावर </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 स्थावर </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">वै.द्वि., | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">वै.द्वि., आ.द्वि, मन 4, वच.4, स्पर्श रहित 5, अविरति, स्त्री, पुरुष = 19</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">38</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">38</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 665: | Line 669: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="43" valign="top"><p> </p></td> | <td width="43" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 आहारक | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 आहारक द्विक के बिना शेष 13 योग—</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1-13</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1-13</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">स्व-स्व | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">स्व-स्व के उदय योग्य के बिना शेष 14=14 (विशेष देखें [[ उदय ]]) </p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">43</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">43</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 681: | Line 685: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1. पुरुष </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1. पुरुष </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">9</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">9</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">स्त्री, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">स्त्री, व नपुं. वेद = 2</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2. स्त्री </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2. स्त्री </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">9</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आहारक | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आहारक द्विक, स्त्री व नपुं. वेद = 4</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">53</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">53</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3. नपुंसक </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3. नपुंसक </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">9</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आहारक द्विक, स्त्री व नपुं. वेद = 4</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">53</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">53</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 707: | Line 711: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">कुल कषाय 16</p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">कुल कषाय 16</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">9</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">9</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">अनंतानु. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">अनंतानु. क्रोधादि कषायों में अपने-अपने चार के बिना शेष 12 = 12</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">45</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">45</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 719: | Line 723: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="43" rowspan="5" valign="top"><p> </p></td> | <td width="43" rowspan="5" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1. कुमति व | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1. कुमति व कुश्रुत </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. = 2</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 727: | Line 731: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2. विभंग </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2. विभंग </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p> </p></td> | <td width="74" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">औ. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">औ. मि., वै.मि., कार्मण, आ.द्वि. = 5</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">52</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">52</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3. मति, | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3. मति, श्रुत व अवधि </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4-12</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4-12</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्यात्व पंचक, अनंतानु. चतु. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्यात्व पंचक, अनंतानु. चतु. = 9</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">48</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">48</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 739: | Line 743: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">4. मन: पर्यय </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">4. मन: पर्यय </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">6-12</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">6-12</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि. पंचक, अविरति 12, संज्व.चतु के बिना 12 कषाय, स्त्री व नपुं. वेद, औ. मिश्र, आ.द्वि., वै.द्वि. कार्मण (5+12+12+2+6) = 37</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">20</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">20</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">5. | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">5. केवलज्ञानी </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">13,14</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">13,14</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि.पंचक, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि.पंचक, 12 अविरति, 25 कषाय, वै.द्विक, आ.द्विक, असत्य व अनु. मन व वचन (45+12+25+4+4) = 50</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">7</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">7</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 757: | Line 761: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="43" rowspan="6" valign="top"><p> </p></td> | <td width="43" rowspan="6" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 सामायिक व | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 सामायिक व छेदोपस्थापना </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">6-9</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">6-9</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि. पंचक, 12 अविरति, सं.चतु. के बिना 12 कषाय, औ. मि., वै.द्वि., कार्मण (5+12+12+1+2+1) = 33</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">24</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">24</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 परिहार | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 परिहार विशुद्धि</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">6-7</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">6-7</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त 33, स्त्री व नपुं., आ.द्विक. = 37</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">20</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">20</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 771: | Line 775: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 सूक्ष्म सांपराय</p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 सूक्ष्म सांपराय</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">10 वाँ</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">10 वाँ</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि.पंचक, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि.पंचक, 12 अविरति, कषाय 25 सूक्ष्म लोभ 24, औ. मि., वै.द्वि., आ.द्विक., कार्मण (5+12524+1+2+2+1) = 47</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">10</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">10</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 777: | Line 781: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">4 यथाख्यात </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">4 यथाख्यात </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">11-14</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">11-14</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि.पंचक, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि.पंचक, अविरति, 25कषाय, वै.द्वि., आ.द्वि. = 46</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">11</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">11</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 784: | Line 787: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">5 असंयमी </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">5 असंयमी </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1-4</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1-4</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. = 2</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 790: | Line 793: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">6 देशसंयमी </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">6 देशसंयमी </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">अनंता.व | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">अनंता.व अप्रत्या.चतु., मि.पंचक, वै.द्वि., औ.मि., आ.द्वि., कार्मण (8+5+2+1+2+1) = 20</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">37</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">37</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 802: | Line 805: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="43" valign="top"><p> </p></td> | <td width="43" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 चक्षु व | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 चक्षु व अचक्षु </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">12</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">12</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">×</p></td> | ||
Line 809: | Line 812: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="43" rowspan="2" valign="top"><p> </p></td> | <td width="43" rowspan="2" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 अवधि द. | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 अवधि द.</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4-12</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4-12</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्यात्व | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्यात्व पंचक, अनंतानु.चतु. = 9</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">48</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">48</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 817: | Line 820: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 केवलदर्शन </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 केवलदर्शन </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">13-14</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">13-14</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि.पंचक, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मि.पंचक, 12 अविरति, 25 कषाय, वै.द्वि., आ.द्वि. असत्य व अनु. मन वच. 4 = 50</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p> </p></td> | <td width="100" valign="top"><p> </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 829: | Line 832: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="43" rowspan="2" valign="top"><p> </p></td> | <td width="43" rowspan="2" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 कृष्णादि | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 कृष्णादि 3</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1-4</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1-4</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. = 2</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 857: | Line 860: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 अभव्य </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 अभव्य </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. = 2</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="43" valign="top"><p class="HindiText">12</p></td> | <td width="43" valign="top"><p class="HindiText">12</p></td> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">सम्यक्त्व—</p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p> </p></td> | <td width="74" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p> </p></td> | <td width="318" valign="top"><p> </p></td> | ||
Line 871: | Line 874: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 उपशम </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 उपशम </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4-7</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">4-7</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">अनंतानु.चतु., | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">अनंतानु.चतु., मिथ्यात्व पंचक, आ.द्वि. = 11</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">46</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">46</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 वेदक, | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 वेदक, क्षायिक </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p> </p></td> | <td width="74" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्या.पंचक, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्या.पंचक, अनंतानु.चतु. = 9</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">48</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">48</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">3 सासादन </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2 रा </p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2 रा </p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्या.पंचक, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्या.पंचक, आ.द्वि. = 7</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">50</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">50</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 889: | Line 892: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">4 मिथ्यादर्शन </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">4 मिथ्यादर्शन </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">आ.द्वि. = 2</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">55</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 895: | Line 898: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">5 मिश्र </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">5 मिश्र </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">3 रा </p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">3 रा </p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्या.पंचक, | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्या.पंचक, अनंतानु., चतु., आ.द्वि., औ.मि., वै.मि., कार्मण = 14</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">43</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">43</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 909: | Line 912: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 असंज्ञी </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 असंज्ञी </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मन | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">मन संबंधी अविरति, 4 मन., अनुभय के बिना 3 वचन., वै.द्वि., आ.द्वि. (1+4+3+2+2) = 12</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">57</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">57</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 930: | Line 932: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 आहारक </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">1 आहारक </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p class="HindiText">13</p></td> | <td width="74" valign="top"><p class="HindiText">13</p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">कार्मण = 1</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">56</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">56</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 936: | Line 938: | ||
<td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 अनाहारक </p></td> | <td width="142" valign="top"><p class="HindiText">2 अनाहारक </p></td> | ||
<td width="74" valign="top"><p> </p></td> | <td width="74" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="318" valign="top"><p class="HindiText">कुल | <td width="318" valign="top"><p class="HindiText">कुल योग (15) – कार्मण = 14</p></td> | ||
<td width="100" valign="top"><p class="HindiText">43</p></td> | <td width="100" valign="top"><p class="HindiText">43</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2.4" id="2.4">प्रत्यय स्थान व भंग प्ररूपणा</strong> <br /> | ||
</span> | </span> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2.4.1" id="2.4.1">एक समय में उदय आने योग्य प्रत्ययों संबंधी सामान्य नियम </strong><br /> | ||
</span> | </span> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li class="HindiText"> पाँच | <li class="HindiText"> पाँच मिथ्यात्वों में से एक काल अन्यतम एक ही मिथ्यात्व का उदय संभव है । </li> | ||
<li class="HindiText"> छः इंद्रियों की अविरति में से एक काल कोई एक ही इंद्रिय का उदय संभव है । छः | <li class="HindiText"> छः इंद्रियों की अविरति में से एक काल कोई एक ही इंद्रिय का उदय संभव है । छः काय की अविरति में से एक काल में एक का, दो का, तीन का, चार का, पाँच का या छहों का युगपत् उदय संभव है । </li> | ||
<li class="HindiText"> कषायों में क्रोध, मान माया, व लोभ में से | <li class="HindiText"> कषायों में क्रोध, मान माया, व लोभ में से एक काल किसी एक कषाय का ही उदय संभव है । अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन - इन चारों में गुणस्थानों के अनुसार एक काल में अनन्तानुबन्धी आदि चारों का, अथवा अप्रत्याख्यानावरण आदि तीन का, अथवा प्रत्याख्यानावरण व संज्जवलन दो का अथवा केवल संज्वलन एक का उदय संभव है । हास्य-रति अथवा शोक-अरति इन दोनों युगलों में से एक काल एक युगल का ही उदय संभव है । भय व जुगुप्सा में एक काल दोनों का अथवा किसी एक का अथवा दोनों का ही नहीं, ऐसे तीन प्रकार उदय संभव है । </li> | ||
<li class="HindiText"> पंद्रह योगों में गुणस्थानानुसार किसी एक का ही उदय संभव है ।<br /> | <li class="HindiText"> पंद्रह योगों में गुणस्थानानुसार किसी एक का ही उदय संभव है ।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
Line 955: | Line 957: | ||
</li> | </li> | ||
<li class="HindiText"><strong name="2.4.2" id="2.4.2">उक्त नियम के अनुसार प्रत्ययों के सामान्य भंग</strong> <br /> | <li class="HindiText"><strong name="2.4.2" id="2.4.2">उक्त नियम के अनुसार प्रत्ययों के सामान्य भंग</strong> <br /> | ||
नोट -बटा में दर्शाया गया ऊपर का अंक एक काल उदय आने योग्य प्रत्ययों की गणना और नीचे वाला अंक | नोट -बटा में दर्शाया गया ऊपर का अंक एक काल उदय आने योग्य प्रत्ययों की गणना और नीचे वाला अंक उस विकल्प संबंधी भंगों की गणना सूचित करता है । </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0" width="685"> | <table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0" width="685"> | ||
Line 963: | Line 965: | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">संकेत </p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">संकेत </p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p align="center" class="HindiText">विवरण </p></td> | <td width="360" valign="top"><p align="center" class="HindiText">विवरण </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">एककालिक | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">एककालिक प्रत्यय </p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">भंग </p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">भंग </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 969: | Line 971: | ||
<td width="85" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्या.</p></td> | <td width="85" valign="top"><p class="HindiText">मिथ्या.</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">मि.1/5</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">मि.1/5</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पाँचों मिथ्यात्वों में | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पाँचों मिथ्यात्वों में से अन्यतम एक का उदय</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">5 </p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">5 </p></td> | ||
Line 976: | Line 978: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">इं. 1/6</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">इं. 1/6</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">छहों | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">छहों इंद्रियों की अविरति में से अन्यतम एक का उदय</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">6</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">6</p></td> | ||
Line 983: | Line 985: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 1/1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 1/1</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पृथ्वीकाय | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पृथ्वीकाय संबंधी अविरति</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
Line 990: | Line 992: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 2/1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 2/1</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पृथ्वी व अप्काय | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पृथ्वी व अप्काय संबंधी अविरति</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
Line 1,004: | Line 1,006: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 4/1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 4/1</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पृथ्वी,अप्, तेज व वायु काय | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पृथ्वी,अप्, तेज व वायु काय संबंधी अविरति</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
Line 1,011: | Line 1,013: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 5/1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 5/1</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पाँचों | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">पाँचों स्थावर काय संबंधी अविरति</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">5</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
Line 1,018: | Line 1,020: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 6/1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">का 6/1</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">छहों काय | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">छहों काय संबंधी अविरति</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">6</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">6</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
Line 1,025: | Line 1,027: | ||
<td width="85" valign="top"><p class="HindiText">कषाय</p></td> | <td width="85" valign="top"><p class="HindiText">कषाय</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">अनंत 4/4</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">अनंत 4/4</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">अनंतानु. | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">अनंतानु. आदि चारों संबंधी क्रोध, या मान, या माया, या लोभ</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
Line 1,032: | Line 1,034: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">अप्रा.3/4</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">अप्रा.3/4</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">अप्रत्याख्यान | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">अप्रत्याख्यान आदि तीनों संबंधी क्रोध, या मान, या माया, या लोभ</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
Line 1,039: | Line 1,041: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">प्रत्या.2/4</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">प्रत्या.2/4</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">प्रत्याख्यान | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">प्रत्याख्यान व संज्वलन संबंधी क्रोध, या मान, या माया, या लोभ </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
Line 1,046: | Line 1,048: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">सं. 1/4</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">सं. 1/4</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">संज्वलन | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">संज्वलन क्रोध, या मान, या माया,या लोभ</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">4</p></td> | ||
Line 1,060: | Line 1,062: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">वे. 1/3</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">वे. 1/3</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">तीनों वेदों | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">तीनों वेदों में से किसी एक का उदय</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
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<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">भय 1/2</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">भय 1/2</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">भय व | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">भय व जुगुप्सा में से किसी एक का उदय</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">3</p></td> | ||
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<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">भय 2/1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">भय 2/1</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">भय व | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">भय व जुगुप्सा दोनों का उदय</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">2</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
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<td width="85" valign="top"><p class="HindiText">योग</p></td> | <td width="85" valign="top"><p class="HindiText">योग</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">यो.1/13</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">यो.1/13</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">4 मन, 4 वचन, औदारिक, औदारिक | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">4 मन, 4 वचन, औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियक, वैक्रियक मिश्र व कार्मण - इन तेरह में से किसी एक का उदय </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">13</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">13</p></td> | ||
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<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">यो. 1/2</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">यो. 1/2</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">आहारक व | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">आहारक व आहारक मिश्र में से एक</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
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<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">यो. 1/10</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">यो. 1/10</p></td> | ||
<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">4 मन, 4 वचन औदारिक व | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">4 मन, 4 वचन, औदारिक व वैक्रियक - इन 10 में से किसी एक का उदय</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">10</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">10</p></td> | ||
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<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
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<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">4 मन, 4 वचन, औदारिक इन नौ में से | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">4 मन, 4 वचन, औदारिक इन नौ में से एक</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | <td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | ||
<td width="48" valign="top"><p class="HindiText">9</p></td> | <td width="48" valign="top"><p class="HindiText">9</p></td> | ||
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<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
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<td width="360" valign="top"><p class="HindiText">सत्य व अनुभय | <td width="360" valign="top"><p class="HindiText">सत्य व अनुभय मन, सत्य व अनुभय वचन, औदारिक, औदारिक मिश्र व कार्मण इन सात में से एक योग</p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p class="HindiText">1</p></td> | |||
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<ol start="3"> | <ol start="3"> | ||
<li class="HindiText"><strong name="2.4.3" id="2.4.3"> उक्त नियम के अनुसार भंग निकालने का उपाय</strong> <br /> | <li class="HindiText"><strong name="2.4.3" id="2.4.3"> उक्त नियम के अनुसार भंग निकालने का उपाय</strong> <br /> | ||
कुछ प्रत्यय ध्रुव हैं और कुछ अध्रुव । विवक्षित गुणस्थान के सर्व स्थानों में उदय आने योग्य प्रत्यय ध्रुव हैं और स्थान प्रति-स्थान परिवर्तित किये जाने वाले अध्रुव हैं । तहाँ मिथ्यात्व, इंद्रिय, अविरति, वेद, हास्यादि दोनों युगल, अनंतानुबंधी आदि क्रोध, मान, माया, लोभ और योग ये ध्रुव हैं । क्योंकि सर्व | कुछ प्रत्यय ध्रुव हैं और कुछ अध्रुव । विवक्षित गुणस्थान के सर्व स्थानों में उदय आने योग्य प्रत्यय ध्रुव हैं और स्थान प्रति-स्थान परिवर्तित किये जाने वाले अध्रुव हैं । तहाँ मिथ्यात्व, इंद्रिय, अविरति, वेद, हास्यादि दोनों युगल, अनंतानुबंधी आदि क्रोध, मान, माया, लोभ और योग ये ध्रुव हैं । क्योंकि सर्व स्थानों में इनका एक-एक ही विकल्प रहता है । काय अविरति और भय व जुगुप्सा अध्रुव हैं क्योंकि प्रत्येक स्थान में इनके विकल्प घट या बढ़ जाते हैं । कहीं एक काय की हिंसा रूप अविरति है और कहीं दो आदि कायों की । कहीं भय का उदय है और कहीं नहीं, और कहीं भय व जुगुप्सा दोनों का उदय है । विवक्षित गुणस्थान के आगे तहाँ उदय आने योग्य ध्रुव प्रत्ययों का निर्देश कर दिया गया है । उन ध्रुवोदयी प्रत्ययों की गणना में क्रम से निम्न प्रकार ध्रुवोदयी प्रत्ययों को जोड़ने से उस उस स्थान के भंग निकल आते हैं ।<br /> | ||
स्थान | स्थान नं.भंगविवरण <br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li class="HindiText"><strong name="2.4.4" id="2.4.4">गुणस्थान | <li class="HindiText"><strong name="2.4.4" id="2.4.4">गुणस्थान की अपेक्षा स्थान व भंग</strong> <br /> | ||
<strong>प्रमाण :</strong>- | <strong>प्रमाण :</strong>- <span class="GRef"> (पंचसंग्रह / प्राकृत/4/101-203), (गोम्मटसार कर्मकांड व टीका/792-794/957-968)</span> | ||
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</li> | </li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2.5" id="2.5"> किस प्रकृति के अनुभाग बंध में कौन प्रत्यय निमित्त है?</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/4/488-489 </span><span class="PrakritGatha">सायं च उपपच्चइयो मिच्छो सोलहदुपच्चया पणुतीसं । सेसा तिपच्चया खलु तित्थयराहार वज्जा दु ।488। सम्मत्तगुणणिमित्तं तित्थयरं संजमेण आहारं । बज्झंति सेसियाओ मिच्छत्ताई हेअहिं ।489।</span> = <span class="HindiText">साता वेदनीय का अनुभाग बंध चतुर्थ (योग) प्रत्यय से होता है । मिथ्यात्व गुणस्थान में बंध से व्युच्छिन्न होने वाली (देखें [[ प्रकृतिबंध#7.4 | प्रकृतिबंध - 7.4]]) सोलह प्रकृतियाँ मिथ्यात्व प्रत्ययक हैं । दूसरे गुणस्थान में | <span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/4/488-489 </span><span class="PrakritGatha">सायं च उपपच्चइयो मिच्छो सोलहदुपच्चया पणुतीसं । सेसा तिपच्चया खलु तित्थयराहार वज्जा दु ।488। सम्मत्तगुणणिमित्तं तित्थयरं संजमेण आहारं । बज्झंति सेसियाओ मिच्छत्ताई हेअहिं ।489।</span> = <span class="HindiText">साता वेदनीय का अनुभाग बंध चतुर्थ (योग) प्रत्यय से होता है । मिथ्यात्व गुणस्थान में बंध से व्युच्छिन्न होने वाली (देखें [[ प्रकृतिबंध#7.4 | प्रकृतिबंध - 7.4]]) सोलह प्रकृतियाँ मिथ्यात्व प्रत्ययक हैं । दूसरे गुणस्थान में बंध से व्युच्छिन्न होने वाली पच्चीस और चौथे में बंध से व्युच्छिन्न होने वाली दस; (देखें [[ प्रकृति बंध#7.4 | प्रकृति बंध - 7.4]]) ये पैंतीस प्रकृतियाँ द्विप्रत्ययक हैं क्योंकि इनका पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की प्रधानता से, और दूसरे से चौथे तक असंयम की प्रधानता से बंध होता है । तीर्थंकर और आहारकद्विक के बिना शेष सर्व प्रकृतियाँ (देखें [[ प्रकृतिबंध#7.4 | प्रकृतिबंध - 7.4]]) त्रिप्रत्ययक हैं क्योंकि उनका पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की प्रधानता से, और दूसरे से चौथे तक असंयम की प्रधानता से, और आगे कषाय की प्रधानता से बंध होता है ।488। तीर्थंकर प्रकृति का बंध सम्यक्त्व गुण के निमित्त से और आहारक द्विक का संयम के निमित्त से होता है ।489। </span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1">(1) सम्यग्दर्शन की चार पर्यायों (श्रद्धा, रुचि, स्पर्श और प्रत्यय) में चतुर्थ पर्याय । <span class="GRef"> महापुराण 9.123 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) सम्यग्दर्शन की चार पर्यायों (श्रद्धा, रुचि, स्पर्श और प्रत्यय) में चतुर्थ पर्याय । <span class="GRef"> महापुराण 9.123 </span></p> | ||
<p id="2">(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25. 172 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25. 172 </span></p> | ||
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Latest revision as of 00:21, 22 December 2023
सिद्धांतकोष से
वैसे तो प्रत्यय शब्द का अर्थ कारण होता है, पर रूढिवश आगम में यह शब्द प्रधानतः कर्मों के आस्रव व बंध के निमित्तों के लिए प्रयुक्त हुआ है । ऐसे वे मिथ्यात्व, अविरति आदि प्रत्यय हैं, जिनके अनेक उत्तर भेद हो जाते हैं ।
- भेद व लक्षण
- प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ
- सारिणी में प्रयुक्तसंकेतों का अर्थ ।
- प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति (सामान्य व विशेष) ओघ प्ररूपणा ।
- प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति आदेशप्ररूपणा ।
- प्रत्यय स्थान व भंग प्ररूपणा ।
- किस प्रकृति के अनुभाग बंध में कौन प्रत्यय निमित्त हैं ?
- कर्मबंध के रूप में प्रत्ययों संबंधी शंकाएँ - देखें बंध - 5 ।
- सारिणी में प्रयुक्तसंकेतों का अर्थ ।
- प्रत्यय के भेद व लक्षण
- प्रत्यय सामान्य का लक्षण
राजवार्तिक/1/21/2/79/8 अयं प्रत्ययशब्दोऽनेकार्थः । क्वचिज्ज्ञाने वर्तते, यथा ‘अर्थाभिधानप्रत्यय:’ इति . क्वचिच्छपथे वर्तते, यथा परद्रव्यहरणादिषु सत्युपालंभे ‘प्रत्ययोऽनेन कृतः’ इति । क्वचिद्धेतौ वर्तते, यथा ‘अविद्याप्रत्ययाः संस्काराः’ इति । = प्रत्यय शब्द के अनेक अर्थ हैं। कहीं पर ज्ञान के अर्थ में वर्तता है जैसे - अर्थ, शब्द, प्रत्यय (ज्ञान) । कहीं पर कसम शब्द के अर्थ में वर्तता है जैसे - पर आदि के चुराये जाने के प्रसंग में दूसरे के द्वारा उलाहना मिलने पर ‘प्रत्ययोऽनेन कृतः’ अर्थात् उसके द्वारा कसम खायी गयी । कहीं पर हेतु के अर्थ में वर्तता है जैसे - अविद्याप्रत्ययाः संस्काराः । अर्थात् अविद्या के हेतु संस्कार हैं ।
धवला 1/1,1,11/166/7 दृष्टिः श्रद्धा रुचिः प्रत्यय इति यावत् । = दृष्टि, श्रद्धा, रुचि और प्रत्यय ये पर्यायवाची नाम हैं ।
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/82/212/3 प्रत्ययशब्दोऽनेकार्थः । क्वचिज्ज्ञाने वर्तते यथा घटस्य प्रत्ययो घटज्ञानं इति यावत् । तथा कारणवचनोऽपि ‘मिथ्यात्वप्रत्ययोऽनंतः संसार’ इति गदिते मिथ्यात्वहेतुक इति प्रतीयते । तथा श्रद्धावचनोऽपि ‘अयं अत्रास्य प्रत्ययः’ श्रद्धेति गम्यते । = प्रत्यय शब्द के अनेक अर्थ हैं जैसे ‘घटस्य प्रत्ययः’ घट का ज्ञान - यहां प्रत्यय शब्द का ज्ञान ऐसा अर्थ है । प्रत्यय शब्द कारण वाचक भी है । जैसे - ‘मिथ्यात्वप्रत्यय अनंतसंसारः’ अर्थात् इस अनंत संसार का मिथ्यात्व कारण है । प्रत्यय शब्द का श्रद्धा ऐसा भी अर्थ होता है जैसे ‘अयं अत्रास्य प्रत्ययः’ इस मनुष्य की इसके ऊपर श्रद्धा है ।
- प्रत्यय के भेद-प्रभेद
- बाह्य व अभ्यंतर रूप दो भेद
कषायपाहुड़ 1/1,13-14/284/1 तत्थ अव्भंतरों कोधादिदव्वकम्मक्खंधा... बाहिरो कोधादिभावकसायसमुप्पत्तिकारण जीवाजीवप्पयं बज्झदव्वं । = क्रोधादिरूप द्रव्यकर्मों के स्कंध को अभ्यंतर प्रत्यय कहते हैं । तथा क्रोधादिरूप भाव कषाय की उत्पत्ति का कारणभूत जो जीव और अजीवरूप बाह्य द्रव्य है वह बाह्य प्रत्यय है ।
- मोह, राग, द्वेष तीन प्रत्यय
नयचक्र बृहद्/301 पच्चयवतो रागा दोसामोहे य आसवा तेसि ।...।301। = राग, द्वेष और मोह ये तीन प्रत्यय हैं, इनसे कर्मों का आस्रव होता है ।301।
- मिथ्यात्वादि चार प्रत्यय
समयसार 109-110 सामण्णपच्चया खलु चउरो भण्णंति बंधकत्तारो । मिच्छत्तं अविरमणं कसाय जोगाय बोद्धव्वा ।109। तेसिं पुणो वि य इमो भणिदो भेदो दु तेरस वियप्पो । मिच्छादिट्ठीआदी जाव सजोगिस्स चरमंतं ।110। = चार सामान्य प्रत्यय निश्चय से बंध के कर्ता कहे जाते हैं, वे मिथ्यात्व, अविरमण, कषाय और योग जानना ।109। (पंचसंग्रह / प्राकृत/4/77), (धवला 7/2,1,7,गाथा/2/9), (धवला 8/3/6/19/12), (नयचक्र बृहद्/302), (योगसार/3/2), (पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/149)
और फिर उनका यह तेरह प्रकार का भेद कहा गया है जो कि - मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगकेवली (गुणस्थान) पर्यंत है ।110।
- मिथ्यात्वादि पाँच प्रत्यय
तत्त्वार्थसूत्र/8/1 मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बंधहेतवः ।1। = मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये बंध के हेतु हैं ।1। (मूलाचार आराधना/1219)
- प्राणातिपात आदि 28 प्रत्यय
षट्खंडागम/12/4,2,8/सू.2-11/275 णेगम-ववहार-संगहाणं णाणावरणीयवेयणा पाणादिवादपच्चए ।2। मुसावादपच्चए ।3। अदत्तादाणपच्चए ।4। मेहुणपच्चए ।5। परिग्गहपच्चए ।6। रादिभोयणपच्चए ।7। एवं कोह-माण-माया-लोह-राग-दोस-मोह-पेम्मपच्चए ।8। णिदाणपच्चए ।9। अब्भक्खाण-कलह-पेसुण्ण-रइ-अरइ-उवहि-णियदि-माण-माय-मोस-मिच्छाणाण-मिच्छदंसण-पओअपच्चए ।10। एवं सत्तण्णं कम्माणं ।11। = नैगम, व्यवहार और संग्रह नय की अपेक्षा ज्ञानावरणीय वेदना— प्राणातिपात प्रत्यय से; मृषावाद प्रत्यय से; अदत्तादान प्रत्यय से; मैथुन प्रत्यय से; परिग्रह प्रत्यय से; रात्रि भोजन प्रत्यय से, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, मोह और प्रेम प्रत्ययों से; निदान प्रत्यय से; अभ्याख्यान, कलह, पैशुन्य, रति, अरति, उपधि, निकृति, मान, माया, मोष, मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन, और प्रयोग इन प्रत्ययों से होती है ।2-10। इसी प्रकार शेष सात कर्मों के प्रत्ययों की प्ररूपणा करनी चाहिए ।11।
- चार प्रत्ययों के कुल 57 भेद
पंचसंग्रह / प्राकृत/4/77 मिच्छासंजम हुंति हु कसाय जोगा य बंधहेऊ ते । पंच दुवालस भेया कमेण पणुवीस पण्णस्सं ।77। = मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग ये चार कर्मबंध के मूल कारण हैं । इनके उत्तर भेद क्रम से पाँच, बारह, पच्चीस और पंद्रह हैं । इस प्रकार सब मिलकर कर्म बंध के सत्तावन उत्तर प्रत्यय होते हैं ।77। (धवला 8/3,6/21/1), (गोम्मटसार कर्मकांड/786/950)
- बाह्य व अभ्यंतर रूप दो भेद
- प्रमाद का कषाय में अंतर्भाव करके पाँच प्रत्यय ही चार बन जाते हैं
धवला/7/2,1,7/11/11 चदुण्हं बंधकारणाणं मज्झे कत्थ पमादस्संतब्भावो । कसायेसु, कसायवदिरित्तपमादावणुवलभादो । = प्रश्न- पूर्वोक्त (मिथ्यात्व, प्रमाद, कषाय, और योग) चार बंध के कारणों में प्रमाद का कहाँ अंतर्भाव होता है ?
उत्तर- कषायों में प्रमाद का अंतर्भाव होता है, क्योंकि कषायों से पृथक् प्रमाद पाया नहीं जाता । धवला 12/4,2,8,10/286/10 )।
- प्राणातिपात आदि अन्य प्रत्ययों का परस्पर में अंतर्भाव नहीं किया जा सकता
धवला 12/4,2,8-9/पृष्ठ/पं. ण च पाणदिवाद-मुसावाद-अदत्तादाणाणमंत-रंगाणं कोधादिपच्चएसु अंतब्भावो, कंधचि तत्तो तेसि भेदुवलंभादो (282/8) । ण च मेहुणं अंतरंगरागे णिपददि, तत्तो कधंचि एदस्स भेदुवलंभादो ।282/7) मोहपच्चयो कोहादिसु पविसदि त्ति किण्णावणिज्जदे । ण, अवयवावयवीणं वदिरेगण्णयसरूवाणमणेगेगसंखाणं कारणकज्जाणं एगाणेगसहावावाणमेगत्तविरोहादो (285/10) पेम्मपच्चयो लोह-राग-पच्चएसु पविसदि त्ति पुणरुत्तो किण्ण जायदे । ण, तेहितो एदस्स कधंचि भेदुवलंभादो । तं जहा बज्झत्थेसु ममेदं भावो लोभो । ण सो पेम्मं, ममेदं बुद्धीए अपडिग्गहिदे वि दक्खाहले परदारे वा पेम्मुवलंभादो । ण रागो पेम्मं, माया-लोभ-हस्स-रदि-पेम्म-समूहस्स रागस्स अवयविणो अवयवसरूवपेम्मत्त-विरोहादो (284/3)। ... ण च एसो पच्चओ मिच्छत्तपच्चए पविसदि, मिच्छत्तसहचारिस्स मिच्छत्तेण एयत्तविरोहादो । ण पेम्मपच्चए पविसदि, संपयासंपयविसयम्मि पेम्मम्मि संपयविसयम्मि णिदाणस्स पवेसविरोहादो । =- प्राणातिपात, मृषावाद और अदत्तादान इन अंतरंग प्रत्ययों का क्रोधादिक प्रत्ययों में अंतर्भाव नहीं हो सकता, क्योंकि, उनसे इनका कथंचित् भेद पाया जाता है ।
- मैथुन अंतरंग राग में गर्भित नहीं होता, क्योंकि, उससे इसमें कथंचित् भेद पाया जाता है । (282/7) ।
- प्रश्न- मोह प्रत्यय चूँकि क्रोधादिक में प्रविष्ट है अतएव उसे कम क्यों नहीं किया जाता है ?
उत्तर- नहीं, क्योंकि क्रमशः व्यतिरेक व अन्वय स्वरूप, अनेक व एक संख्या वाले, कारण व कार्य रूप तथा एक व अनेक स्वभाव से संयुक्त अवयव अवयवी के एक होने का विरोध है (283/10) । - प्रश्न- चूँकि प्रेम प्रत्यय लोभ व राग प्रत्ययों में प्रविष्ट है अतः वह पुनरुक्त क्यों न होगा ?
उत्तर- नहीं, क्योंकि उनसे इसका कथंचित् भेद पाया जाता है । वह इस प्रकार से - बाह्य पदार्थों में ‘यह मेरा है’ इस प्रकार के भाव को लोभ कहा जाता है । वह प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि, ‘यह मेरा है’ ऐसी बुद्धि के अविषयभूत भी द्राक्षाफल अथवा परस्त्री के विषय में प्रेम पाया जाता है । राग भी प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि, माया, लोभ, हास्य, रति और प्रेम के समूह रूप अवयवी कहलाने वाले राग के अवयव स्वरूप प्रेम रूप होने का विरोध है । (284/3) । - यह (निदान) प्रत्यय मिथ्यात्व प्रत्यय में प्रविष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि वह मिथ्यात्व का सहचारी है, अतः मिथ्यात्व के साथ उसकी एकता का विरोध है । वह प्रेम प्रत्यय में भी प्रविष्ट नहीं होता, क्योंकि, प्रेम संपत्ति एवं असंपत्ति दोनों को विषय करने वाला है, परंतु निदान केवल संपत्ति को ही विषय करता है, अतएव उसका प्रेम में प्रविष्ट होना विरुद्ध है ।
- अविरति व प्रमाद में अंतर
राजवार्तिक/8/1/32/565/4 अविरते प्रमादस्य चाविशेष इति चेत्; न; विरतस्यापि प्रमाददर्शनात् ।32। ... विरतस्यापि पंचदश प्रमादाः संभवंति- विकथाकषायेंद्रियनिद्राप्रणयलक्षणा- । = प्रश्न - अविरति और प्रमाद में कोई भेद नहीं है ?
उत्तर - नहीं, क्योंकि विरत के भी विकथा, कषाय, इंद्रिय, निद्रा और प्रणय ये पंद्रह प्रमाद स्थान देखे जाते हैं, अतः प्रमाद और अविरति पृथक्-पृथक् हैं ।
- कषाय व अविरति में अंतर
राजवार्तिक/8/1/33/565/7 स्यादेतत्-कषायाविरत्योर्नास्ति भेदः उभयोरपि हिंसादिपरिणामरूपत्वादिति; तन्नः किं कारणम् । कार्यकारण भेदोपपत्तेः । कारणभूता हि कषायाः कार्यात्मिकाया हिंसाद्यविरतेरर्थांतरभूता इति । =प्रश्न -हिंसा परिणाम रूप होने के कारण कषाय और अविरति में कोई भेद नहीं है ?
उत्तर- ऐसा नहीं है, क्योंकि इनमें कार्य कारण की दृष्टि से भेद है । कषाय कारण हैं और हिंसादि अविरति कार्य ।
धवला 7/2,1,7/13/7 असंजमो जदि कसाएसु चेव पददि तो पुध तदुवदेसो किमट्ठं कीरदे । ण एस दोसो, ववहारणयं पडुच्च तदुवदेसादो । =प्रश्न- यदि असंयम कषायों में ही अंतर्भूत होता है तो फिर उसका पृथक् उपदेश किस लिए किया जाता है ।
उत्तर- यह कोई दोष नहीं, क्योंकि व्यवहार नय की अपेक्षा से उसका पृथक् उपदेश किया गया है ।
देखें प्रत्यय - 4 (प्राणातिपातादि अंतरंग प्रत्ययों का क्रोधादि प्रत्ययों से कथंचित् भेद है)।
- प्रत्यय सामान्य का लक्षण
- प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ
- सारिणी में प्रयुक्त संकेतों का अर्थ
अनं. चतु.अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ
अनु. मन. वच.
अनुभय मन व अनुभय वचन
वच.
उभय वचन
अवि.
अविरति
आ. द्वि.
आहारक व आहारक मिश्र
आ. मि.
आहारक मिश्र
औ. द्वि.
औदारिक व औदारिक मिश्र
उ. मन. वच.
उभय मन व वचन
नपुं.
नपुंसक वेद
पु.
पुरुष वेद
प्रत्या. चतु.
प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ
मन. 4
सत्य,असत्य, उभय व अनुभव मनोयोग
मि. पंचक
पाँचों प्रकार का मिथ्यात्व
वचन. 4
चार प्रकार का वचन योग
वै. द्वि.
वैक्रियक व वैक्रियक मिश्र
सं. क्रोध
संज्वलन क्रोध
हास्यादि 6
हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा
- प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति ओघ प्ररूपणा
- सामान्य 4 वा 5 प्रत्ययों की अपेक्षा
कुल बंध योग्य प्रत्ययः- 1 सर्वार्थसिद्धि/8/1/376/5 मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग = 5 ; 2. पंचसंग्रह / प्राकृत/4/78-79 मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग = 4, (धवला 8/3, 6/गाथा. 20-21/24);(पं. सं./सं./4/18-21) (गोम्मटसार कर्मकांड /787-788)
- सामान्य 4 वा 5 प्रत्ययों की अपेक्षा
गुणस्थानपाँच प्रत्ययों की अपेक्षा
(सर्वार्थसिद्धि)चार प्रत्ययों की अपेक्षा
(पं.सं.)व्युच्छित्ति प्र.
कुल बंध
व्यु.
शेष
व्युच्छित्ति
प्र.कुल बंध
व्यु.
शेष
1
मिथ्यात्व
5
1
4
मिथ्यात्व
4
1
3
2-4
त्रसअविरति
4
×
4
त्रस अविरति
3
×
3
5
अविरति
4
1
3
अविरति
3
1
2
6
प्रमाद
3
1
2
×
2
2
7-10
कषाय
2
1
1
कषाय
2
1
1
11-13
योग
1
1
×
योग
1
1
×
14
×
×
×
×
×
×
×
×
- विशेष 57 प्रत्ययों की अपेक्षा
प्रमाण - (पंचसंग्रह / प्राकृत/80-83); (धवला 8/3, 6/22-24/1); (गोम्मटसार कर्मकांड/789-790/952)
कुल बंध योग्य प्रत्यय - मिथ्यात्व 5; अविरति 12; कषाय 25; योग 15=57 ।
गुणस्थानव्युच्छित्ति
अनुदय
पुनः उदय
कुल उदय योग्य
अनुदय
पुनः उदय
उदय
व्युच्छित्ति
शेष उदय योग्य
1
मि.पंचक
आ. द्वि.
57
2
55
5
50
2
अनंता. चतु.
50
50
4
46
3
औ.वै.मि. व कार्मण
46
3
43
43
4
अप्रत्या. चतु. त्रसहिंसा, वै. द्वि. = 7
औ.वै. मिश्र व कार्मण
43
3
46
7
39
5
प्रत्या. चतु.शेष 11 अविरति = 15
औ.मि. कार्मण
39
2
37
15
22
6
आ.द्वि.
आ.द्वि
22
2
24
2
22
7
22
22
22
8
हास्यादि 6
22
22
6
16
9/i
नपुं.
16
16
1
15
9/ii
स्त्री वेद
15
15
1
14
9/iii
पुरुष वेद
14
14
1
13
9/iv
सं. क्रोध
13
13
1
12
9/v
सं. मान
12
12
1
11
9/vi
सं.माया
11
11
1
10
9/vii
बादर लोभ
10
10
10
10
सूक्ष्म लोभ
10
10
1
9
11
9
9
9
12
असत्य व उ. मन व वचन
9
9
4
5
13
सत्य. अनु. मन-वचन, औ.द्वि. व कार्मण
औ.मि. व कार्मण
5
2
7
7
14
- प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति आदेश प्ररूपणा
पंचसंग्रह / प्राकृत/4/84 -100 कुल उदय योग्य प्रत्यय = 57
नोट - यहाँ प्रत्येक मार्गणा में केवल उदय योग्य प्रत्ययों के निर्देशरूप सामान्य प्ररूपणा की गयी है । गुणस्थानों की अपेक्षा उनकी प्ररूपणा तथा यथायोग्य ओघ प्ररूपणा के आधार पर जानी जा सकती है ।
नं.मार्गणा
गुणस्थान
उदय के अयोग्य प्रत्ययों के नाम
उदय योग्य
1.
गति-—
1 नरक
4
औ.द्वि, आ.द्विक, स्त्री, पुरुष वेद = 6
51
2 तिर्यंच
5
वै.द्वि,आ.द्वि. = 4
53
3 मनुष्य
14
वै.द्विक = 2
55
4 देव
4
औ.द्विक, आ.द्वि.नपुं. = 5
52
2
इंद्रिय —
1 एकेंद्रिय
2
वै.द्वि, आ.द्विक., वच. 4, मन.4,स्पर्श से अतिरिक्त 5 अविरति, स्त्री, पुरुषवेद = 19
38
2 द्ववींद्रिय
2
उपरोक्त 19-रसनेंद्रिय+अनुभय वचन = 17
40
3 त्रींद्रिय
2
उपरोक्त 17-घ्राणेंद्रिय = 16
41
5 पंचेंद्रिय
14
×
57
3
काय —
1 स्थावर
1
वै.द्वि., आ.द्वि, मन 4, वच.4, स्पर्श रहित 5, अविरति, स्त्री, पुरुष = 19
38
2. त्रस
14
×
57
4
योग—
1 आहारक द्विक के बिना शेष 13 योग—
1-13
स्व-स्व के उदय योग्य के बिना शेष 14=14 (विशेष देखें उदय )
43
5
वेद—
1. पुरुष
9
स्त्री, व नपुं. वेद = 2
55
2. स्त्री
9
आहारक द्विक, स्त्री व नपुं. वेद = 4
53
3. नपुंसक
9
आहारक द्विक, स्त्री व नपुं. वेद = 4
53
6
कषाय —
कुल कषाय 16
9
अनंतानु. क्रोधादि कषायों में अपने-अपने चार के बिना शेष 12 = 12
45
7
ज्ञान —
1. कुमति व कुश्रुत
2
आ.द्वि. = 2
55
2. विभंग
औ. मि., वै.मि., कार्मण, आ.द्वि. = 5
52
3. मति, श्रुत व अवधि
4-12
मिथ्यात्व पंचक, अनंतानु. चतु. = 9
48
4. मन: पर्यय
6-12
मि. पंचक, अविरति 12, संज्व.चतु के बिना 12 कषाय, स्त्री व नपुं. वेद, औ. मिश्र, आ.द्वि., वै.द्वि. कार्मण (5+12+12+2+6) = 37
20
5. केवलज्ञानी
13,14
मि.पंचक, 12 अविरति, 25 कषाय, वै.द्विक, आ.द्विक, असत्य व अनु. मन व वचन (45+12+25+4+4) = 50
7
8
संयम
1 सामायिक व छेदोपस्थापना
6-9
मि. पंचक, 12 अविरति, सं.चतु. के बिना 12 कषाय, औ. मि., वै.द्वि., कार्मण (5+12+12+1+2+1) = 33
24
2 परिहार विशुद्धि
6-7
उपरोक्त 33, स्त्री व नपुं., आ.द्विक. = 37
20
3 सूक्ष्म सांपराय
10 वाँ
मि.पंचक, 12 अविरति, कषाय 25 सूक्ष्म लोभ 24, औ. मि., वै.द्वि., आ.द्विक., कार्मण (5+12524+1+2+2+1) = 47
10
4 यथाख्यात
11-14
मि.पंचक, अविरति, 25कषाय, वै.द्वि., आ.द्वि. = 46
11
5 असंयमी
1-4
आ.द्वि. = 2
55
6 देशसंयमी
5
अनंता.व अप्रत्या.चतु., मि.पंचक, वै.द्वि., औ.मि., आ.द्वि., कार्मण (8+5+2+1+2+1) = 20
37
9
दर्शन—
1 चक्षु व अचक्षु
12
×
57
2 अवधि द.
4-12
मिथ्यात्व पंचक, अनंतानु.चतु. = 9
48
3 केवलदर्शन
13-14
मि.पंचक, 12 अविरति, 25 कषाय, वै.द्वि., आ.द्वि. असत्य व अनु. मन वच. 4 = 50
10
लेश्या —
1 कृष्णादि 3
1-4
आ.द्वि. = 2
55
2 पीतादि 3
1-7
×
57
11
भव्य —
1 भव्य
14
×
57
2 अभव्य
1
आ.द्वि. = 2
55
12
सम्यक्त्व—
1 उपशम
4-7
अनंतानु.चतु., मिथ्यात्व पंचक, आ.द्वि. = 11
46
2 वेदक, क्षायिक
मिथ्या.पंचक, अनंतानु.चतु. = 9
48
3 सासादन
2 रा
मिथ्या.पंचक, आ.द्वि. = 7
50
4 मिथ्यादर्शन
1
आ.द्वि. = 2
55
5 मिश्र
3 रा
मिथ्या.पंचक, अनंतानु., चतु., आ.द्वि., औ.मि., वै.मि., कार्मण = 14
43
13
संज्ञी —
1 असंज्ञी
2
मन संबंधी अविरति, 4 मन., अनुभय के बिना 3 वचन., वै.द्वि., आ.द्वि. (1+4+3+2+2) = 12
57
2 संज्ञी
12
×
57
14
आहारक —
1 आहारक
13
कार्मण = 1
56
2 अनाहारक
कुल योग (15) – कार्मण = 14
43
- प्रत्यय स्थान व भंग प्ररूपणा
- एक समय में उदय आने योग्य प्रत्ययों संबंधी सामान्य नियम
- पाँच मिथ्यात्वों में से एक काल अन्यतम एक ही मिथ्यात्व का उदय संभव है ।
- छः इंद्रियों की अविरति में से एक काल कोई एक ही इंद्रिय का उदय संभव है । छः काय की अविरति में से एक काल में एक का, दो का, तीन का, चार का, पाँच का या छहों का युगपत् उदय संभव है ।
- कषायों में क्रोध, मान माया, व लोभ में से एक काल किसी एक कषाय का ही उदय संभव है । अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन - इन चारों में गुणस्थानों के अनुसार एक काल में अनन्तानुबन्धी आदि चारों का, अथवा अप्रत्याख्यानावरण आदि तीन का, अथवा प्रत्याख्यानावरण व संज्जवलन दो का अथवा केवल संज्वलन एक का उदय संभव है । हास्य-रति अथवा शोक-अरति इन दोनों युगलों में से एक काल एक युगल का ही उदय संभव है । भय व जुगुप्सा में एक काल दोनों का अथवा किसी एक का अथवा दोनों का ही नहीं, ऐसे तीन प्रकार उदय संभव है ।
- पंद्रह योगों में गुणस्थानानुसार किसी एक का ही उदय संभव है ।
- उक्त नियम के अनुसार प्रत्ययों के सामान्य भंग
नोट -बटा में दर्शाया गया ऊपर का अंक एक काल उदय आने योग्य प्रत्ययों की गणना और नीचे वाला अंक उस विकल्प संबंधी भंगों की गणना सूचित करता है ।
मूल प्रत्ययसंकेत
विवरण
एककालिक प्रत्यय
भंग
मिथ्या.
मि.1/5
पाँचों मिथ्यात्वों में से अन्यतम एक का उदय
1
5
इं. 1/6
छहों इंद्रियों की अविरति में से अन्यतम एक का उदय
1
6
का 1/1
पृथ्वीकाय संबंधी अविरति
1
1
का 2/1
पृथ्वी व अप्काय संबंधी अविरति
2
1
का 3/1
पृथ्वी, अप् व तेज काय संबंधी अविरति
3
1
का 4/1
पृथ्वी,अप्, तेज व वायु काय संबंधी अविरति
4
1
का 5/1
पाँचों स्थावर काय संबंधी अविरति
5
1
का 6/1
छहों काय संबंधी अविरति
6
1
कषाय
अनंत 4/4
अनंतानु. आदि चारों संबंधी क्रोध, या मान, या माया, या लोभ
4
4
अप्रा.3/4
अप्रत्याख्यान आदि तीनों संबंधी क्रोध, या मान, या माया, या लोभ
3
4
प्रत्या.2/4
प्रत्याख्यान व संज्वलन संबंधी क्रोध, या मान, या माया, या लोभ
2
4
सं. 1/4
संज्वलन क्रोध, या मान, या माया,या लोभ
1
4
यु. 2/2
हास्य-रति, या शोक-अरति, इन दोनों युगलों में से किसी एक युगल का उदय
2
2
वे. 1/3
तीनों वेदों में से किसी एक का उदय
1
3
भय 1/2
भय व जुगुप्सा में से किसी एक का उदय
1
3
भय 2/1
भय व जुगुप्सा दोनों का उदय
2
1
योग
यो.1/13
4 मन, 4 वचन, औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियक, वैक्रियक मिश्र व कार्मण - इन तेरह में से किसी एक का उदय
1
13
यो. 1/2
आहारक व आहारक मिश्र में से एक
1
11
यो. 1/10
4 मन, 4 वचन, औदारिक व वैक्रियक - इन 10 में से किसी एक का उदय
1
10
यो. 1/9
4 मन, 4 वचन, औदारिक इन नौ में से एक
1
9
यो. 1/7
सत्य व अनुभय मन, सत्य व अनुभय वचन, औदारिक, औदारिक मिश्र व कार्मण इन सात में से एक योग
1
7
- उक्त नियम के अनुसार भंग निकालने का उपाय
कुछ प्रत्यय ध्रुव हैं और कुछ अध्रुव । विवक्षित गुणस्थान के सर्व स्थानों में उदय आने योग्य प्रत्यय ध्रुव हैं और स्थान प्रति-स्थान परिवर्तित किये जाने वाले अध्रुव हैं । तहाँ मिथ्यात्व, इंद्रिय, अविरति, वेद, हास्यादि दोनों युगल, अनंतानुबंधी आदि क्रोध, मान, माया, लोभ और योग ये ध्रुव हैं । क्योंकि सर्व स्थानों में इनका एक-एक ही विकल्प रहता है । काय अविरति और भय व जुगुप्सा अध्रुव हैं क्योंकि प्रत्येक स्थान में इनके विकल्प घट या बढ़ जाते हैं । कहीं एक काय की हिंसा रूप अविरति है और कहीं दो आदि कायों की । कहीं भय का उदय है और कहीं नहीं, और कहीं भय व जुगुप्सा दोनों का उदय है । विवक्षित गुणस्थान के आगे तहाँ उदय आने योग्य ध्रुव प्रत्ययों का निर्देश कर दिया गया है । उन ध्रुवोदयी प्रत्ययों की गणना में क्रम से निम्न प्रकार ध्रुवोदयी प्रत्ययों को जोड़ने से उस उस स्थान के भंग निकल आते हैं ।
स्थान नं.भंगविवरण
- गुणस्थान की अपेक्षा स्थान व भंग
प्रमाण :- (पंचसंग्रह / प्राकृत/4/101-203), (गोम्मटसार कर्मकांड व टीका/792-794/957-968)
गुणस्थानप्रत्यय स्थान
कुल भंग
विवरण
गुण स्थानप्रत्यय स्थानकुल भंगविवरण
- एक समय में उदय आने योग्य प्रत्ययों संबंधी सामान्य नियम
- किस प्रकृति के अनुभाग बंध में कौन प्रत्यय निमित्त है?
पंचसंग्रह / प्राकृत/4/488-489 सायं च उपपच्चइयो मिच्छो सोलहदुपच्चया पणुतीसं । सेसा तिपच्चया खलु तित्थयराहार वज्जा दु ।488। सम्मत्तगुणणिमित्तं तित्थयरं संजमेण आहारं । बज्झंति सेसियाओ मिच्छत्ताई हेअहिं ।489। = साता वेदनीय का अनुभाग बंध चतुर्थ (योग) प्रत्यय से होता है । मिथ्यात्व गुणस्थान में बंध से व्युच्छिन्न होने वाली (देखें प्रकृतिबंध - 7.4) सोलह प्रकृतियाँ मिथ्यात्व प्रत्ययक हैं । दूसरे गुणस्थान में बंध से व्युच्छिन्न होने वाली पच्चीस और चौथे में बंध से व्युच्छिन्न होने वाली दस; (देखें प्रकृति बंध - 7.4) ये पैंतीस प्रकृतियाँ द्विप्रत्ययक हैं क्योंकि इनका पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की प्रधानता से, और दूसरे से चौथे तक असंयम की प्रधानता से बंध होता है । तीर्थंकर और आहारकद्विक के बिना शेष सर्व प्रकृतियाँ (देखें प्रकृतिबंध - 7.4) त्रिप्रत्ययक हैं क्योंकि उनका पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की प्रधानता से, और दूसरे से चौथे तक असंयम की प्रधानता से, और आगे कषाय की प्रधानता से बंध होता है ।488। तीर्थंकर प्रकृति का बंध सम्यक्त्व गुण के निमित्त से और आहारक द्विक का संयम के निमित्त से होता है ।489।
पुराणकोष से
(1) सम्यग्दर्शन की चार पर्यायों (श्रद्धा, रुचि, स्पर्श और प्रत्यय) में चतुर्थ पर्याय । महापुराण 9.123
(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 172