संख्यात: Difference between revisions
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देखें [[ संख्या ]]। | <span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/4/309/179/1 </span><span class="PrakritText">एत्थ उक्कस्ससंखेज्जयजाणणिमित्त जंबूदीववित्थारं सहस्सजोयण उव्बेधपमाणचत्तारिसरावया कादव्वा। सलागा पडिसलागा महासलागा ऐदे तिण्णि वि अवट्ठिदा चउत्थो अणवट्ठिदो। एदे सव्वे पण्णाए ठविदा। एत्थ चउत्थसरावयअब्भंतरे दुवे सरिसवेत्थुदे तं जहण्णं संखेज्जयं जादं। एदं पढमवियप्पं तिण्णि सरिसवेच्छुद्धे अजहण्णमणुक्कस्ससंखेज्जयं। एवं सरावए पुण्णे एदमुव्वरिमज्झिमवियप्पं। ...तदो एगरूवमवणीदे जादमुक्कस्संखज्जाओ। जम्हि-जम्हि संखेज्जयं मग्गिज्जदि तम्हि-तम्हि य जहण्ण मणुक्कस्ससंखेज्जयं गंतूण घेत्तव्वं। तं कस्स विसओ। चोद्दसपुव्विस्स।</span> = <span class="HindiText">यहाँ उत्कृष्ट '''संख्यात''' के जानने के निमित्त जंबूद्वीप के समान विस्तार वाले (एक लाख योजन) और हजार योजन प्रमाण गहरे चार गड्ढे करना चाहिए। इनमें शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका ये तीन गड्‌ढे अवस्थित और चौथा अनवस्थित है। ये सब गड्‌ढे बुद्धि से स्थापित किये गये हैं। इनमें से चौथे कुंड के भीतर दो सरसों के डालने पर वह जघन्य संख्यात होता है। यह संख्यात का प्रथम विकल्प है। तीन सरसों के डालने पर अजघन्यानुत्कृष्ट (मध्यम) संख्यात होता है। इसी प्रकार एक-एक सरसों के डालने पर उस कुंड के पूर्ण होने तक यह तीन से ऊपर सब मध्यम संख्यात के विकल्प होते हैं। <span class="GRef">( राजवार्तिक/3/38/5/206/18 )</span>। | ||
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तिलोयपण्णत्ति/4/309/179/1 एत्थ उक्कस्ससंखेज्जयजाणणिमित्त जंबूदीववित्थारं सहस्सजोयण उव्बेधपमाणचत्तारिसरावया कादव्वा। सलागा पडिसलागा महासलागा ऐदे तिण्णि वि अवट्ठिदा चउत्थो अणवट्ठिदो। एदे सव्वे पण्णाए ठविदा। एत्थ चउत्थसरावयअब्भंतरे दुवे सरिसवेत्थुदे तं जहण्णं संखेज्जयं जादं। एदं पढमवियप्पं तिण्णि सरिसवेच्छुद्धे अजहण्णमणुक्कस्ससंखेज्जयं। एवं सरावए पुण्णे एदमुव्वरिमज्झिमवियप्पं। ...तदो एगरूवमवणीदे जादमुक्कस्संखज्जाओ। जम्हि-जम्हि संखेज्जयं मग्गिज्जदि तम्हि-तम्हि य जहण्ण मणुक्कस्ससंखेज्जयं गंतूण घेत्तव्वं। तं कस्स विसओ। चोद्दसपुव्विस्स। = यहाँ उत्कृष्ट संख्यात के जानने के निमित्त जंबूद्वीप के समान विस्तार वाले (एक लाख योजन) और हजार योजन प्रमाण गहरे चार गड्ढे करना चाहिए। इनमें शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका ये तीन गड्ढे अवस्थित और चौथा अनवस्थित है। ये सब गड्ढे बुद्धि से स्थापित किये गये हैं। इनमें से चौथे कुंड के भीतर दो सरसों के डालने पर वह जघन्य संख्यात होता है। यह संख्यात का प्रथम विकल्प है। तीन सरसों के डालने पर अजघन्यानुत्कृष्ट (मध्यम) संख्यात होता है। इसी प्रकार एक-एक सरसों के डालने पर उस कुंड के पूर्ण होने तक यह तीन से ऊपर सब मध्यम संख्यात के विकल्प होते हैं। ( राजवार्तिक/3/38/5/206/18 )।
देखें गणित - I.1.6।
अधिक जानकारी के लिये देखें देखें संख्या ।