सत्यवचनयोग: Difference between revisions
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< | <span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/1/91-92 </span><span class="PrakritText">दसविहसच्चे वयणे जो जोगो सो दु सच्चवचिजोगो। तव्विवरीओ मोसो जाणुभयं सच्चमोस त्ति।91। जो णेव सच्चमोसो तं जाण असुच्चमोसवचिजोगो। अमणाणं जा भासा सण्णीणामंतणीयादी।92।</span> = <span class="HindiText">दस प्रकार के सत्य वचन में (देखें [[ सत्य ]]) वचनवर्गणा के निमित्त से जो योग होता है, उसे '''सत्य वचनयोग''' कहते हैं। इससे विपरीत योग को मृषा वचनयोग कहते हैं। सत्य और मृषा वचनरूप योग को उभयवचनयोग कहते हैं। जो वचनयोग न तो सत्य रूप हो और न मृषा रूप ही हो, उसे असत्यमृषावचनयोग कहते हैं। असंज्ञी जीवों की जो अनक्षररूप भाषा है और संज्ञी जीवों की जो आमंत्रणी आदि भाषाएँ हैं (देखें [[ भाषा ]]) उन्हें अनुभय भाषा जानना चाहिए। </span><br /> | ||
[[ | <span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ वचन#2.3 | वचन 2.3 ]]।</span> | ||
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पंचसंग्रह / प्राकृत/1/91-92 दसविहसच्चे वयणे जो जोगो सो दु सच्चवचिजोगो। तव्विवरीओ मोसो जाणुभयं सच्चमोस त्ति।91। जो णेव सच्चमोसो तं जाण असुच्चमोसवचिजोगो। अमणाणं जा भासा सण्णीणामंतणीयादी।92। = दस प्रकार के सत्य वचन में (देखें सत्य ) वचनवर्गणा के निमित्त से जो योग होता है, उसे सत्य वचनयोग कहते हैं। इससे विपरीत योग को मृषा वचनयोग कहते हैं। सत्य और मृषा वचनरूप योग को उभयवचनयोग कहते हैं। जो वचनयोग न तो सत्य रूप हो और न मृषा रूप ही हो, उसे असत्यमृषावचनयोग कहते हैं। असंज्ञी जीवों की जो अनक्षररूप भाषा है और संज्ञी जीवों की जो आमंत्रणी आदि भाषाएँ हैं (देखें भाषा ) उन्हें अनुभय भाषा जानना चाहिए।
अधिक जानकारी के लिये देखें वचन 2.3 ।