सर्वज्ञ: Difference between revisions
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<span class="GRef"> आप्तमीमांसा/ मूल/6,7</span><span class="SanskritGatha"> स त्वमेवासि निर्दोषो युक्तिशास्त्राविरोधिवाक् । अविरोधो यदिष्टं ते प्रसिद्धेन न बाध्यते।6। त्वन्मतामृतबाह्यानां सर्वथैकांतवादिनाम् । आप्ताभिमानदग्धानां स्वेष्टादृष्टेन बाध्यते।7।</span>=<span class="HindiText">हे अर्हन् ! वह '''सर्वज्ञ''' आप ही हैं, क्योंकि आप निर्दोष हैं। निर्दोष इसलिए हैं कि युक्ति और आगम से आपके वचन अविरूद्ध हैं–और वचनों में विरोध इस कारण नहीं है कि आपका इष्ट (मुक्ति आदि तत्त्व) प्रमाण से बाधित नहीं है। किंतु तुम्हारे अनेकांत मत रूप अमृत का ज्ञान नहीं करने वाले तथा सर्वथा एकांत तत्त्व का कथन करने वाले और अपने को आप्त समझने के अभिमान से दग्ध हुए एकांतवादियों का इष्ट (अभिमत तत्त्व) प्रत्यक्ष से बाधित है। </span><br /> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ केवलज्ञान ]]।</span> | |||
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Latest revision as of 16:28, 20 February 2024
आप्तमीमांसा/ मूल/6,7 स त्वमेवासि निर्दोषो युक्तिशास्त्राविरोधिवाक् । अविरोधो यदिष्टं ते प्रसिद्धेन न बाध्यते।6। त्वन्मतामृतबाह्यानां सर्वथैकांतवादिनाम् । आप्ताभिमानदग्धानां स्वेष्टादृष्टेन बाध्यते।7।=हे अर्हन् ! वह सर्वज्ञ आप ही हैं, क्योंकि आप निर्दोष हैं। निर्दोष इसलिए हैं कि युक्ति और आगम से आपके वचन अविरूद्ध हैं–और वचनों में विरोध इस कारण नहीं है कि आपका इष्ट (मुक्ति आदि तत्त्व) प्रमाण से बाधित नहीं है। किंतु तुम्हारे अनेकांत मत रूप अमृत का ज्ञान नहीं करने वाले तथा सर्वथा एकांत तत्त्व का कथन करने वाले और अपने को आप्त समझने के अभिमान से दग्ध हुए एकांतवादियों का इष्ट (अभिमत तत्त्व) प्रत्यक्ष से बाधित है।
अधिक जानकारी के लिये देखें केवलज्ञान ।