सार: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="GRef"> नियमसार/3 </span><span class="PrakritText">विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणं।</span> = <span class="HindiText">(नियम शब्द का अर्थ नियम से करने योग्य रत्नत्रय है) तहाँ विपरीत का परिहार करने के लिए 'सार' ऐसा वचन कहा है।</span> | |||
विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणं।</span> = <span class="HindiText">(नियम शब्द का अर्थ नियम से करने योग्य रत्नत्रय है) तहाँ विपरीत का परिहार करने के लिए 'सार' ऐसा वचन कहा है।</span> | <p><span class="GRef"> समयसार / तात्पर्यवृत्ति/1/5/15 </span><span class="SanskritText">सार: शुद्धावस्था।</span> = <span class="HindiText">सार अर्थात् शुद्ध अवस्था।</span></p> | ||
<p | |||
सार: शुद्धावस्था।</span> = <span class="HindiText">सार अर्थात् शुद्ध अवस्था।</span></p> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 16: | Line 14: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1">(1) राम का पक्षधर अश्वरथी एक योद्धा । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_58#14|पद्मपुराण - 58.14]] </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) राम का पक्षधर अश्वरथी एक योद्धा । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_58#14|पद्मपुराण - 58.14]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) समवसरण के तीसरे कोट में पश्चिमी द्वार का तीसरा नाम । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.59 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) समवसरण के तीसरे कोट में पश्चिमी द्वार का तीसरा नाम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_57#59|हरिवंशपुराण - 57.59]] </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 15:02, 22 February 2024
सिद्धांतकोष से
नियमसार/3 विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणं। = (नियम शब्द का अर्थ नियम से करने योग्य रत्नत्रय है) तहाँ विपरीत का परिहार करने के लिए 'सार' ऐसा वचन कहा है।
समयसार / तात्पर्यवृत्ति/1/5/15 सार: शुद्धावस्था। = सार अर्थात् शुद्ध अवस्था।
पुराणकोष से
(1) राम का पक्षधर अश्वरथी एक योद्धा । पद्मपुराण - 58.14
(2) समवसरण के तीसरे कोट में पश्चिमी द्वार का तीसरा नाम । हरिवंशपुराण - 57.59