स्तंभावष्टंभ: Difference between revisions
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कायोत्सर्ग का एक अतिचार-देखें [[ व्युत्सर्ग#1 | व्युत्सर्ग - 1]]। | <span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/116/279/8 </span><span class="SanskritText"> कायोत्सर्गं प्रपन्नः स्थानदोषान् परिहरेत्। के ते इति चेदुच्यते। </span> | ||
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<li class="SanskritText"> शिरश्चालनं कुर्वन्, </li> | |||
<li class="SanskritText"> मूक इव हुंकारं संपाद्यावस्थानं, </li> | |||
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<li class="SanskritText"> अंगुलिस्फोटनं, </li> | |||
<li class="SanskritText"> भ्रूनर्तनं वा कृत्वा, </li> | |||
<li class="SanskritText"> शबरवधूरिव स्वकौपीनदेशाच्छादनपुरोगं, </li> | |||
<li class="SanskritText"> शृंखलाबद्धपाद इवावस्थानं, </li> | |||
<li><span class="SanskritText"> पीतमदिर इव परवशगतशरीरो वा भूत्वावस्थानं इत्यमी दोषाः।</span> = </li> | |||
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<li class="HindiText"> खंबे के आश्रय '''स्तंभावष्टंभ'''। </li> | |||
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<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये कायोत्सर्ग का एक अतिचार-देखें [[ व्युत्सर्ग#1.10 | व्युत्सर्ग - 1.10]]।</p> | |||
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Latest revision as of 17:21, 26 February 2024
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/116/279/8 कायोत्सर्गं प्रपन्नः स्थानदोषान् परिहरेत्। के ते इति चेदुच्यते।
- तुरग इव कुंटीकृतपादेन अवस्थानम्,
- लतेवेतस्ततश्चलतोऽवस्थानं,
- स्तंभवत्स्तब्धशरीरं कृत्वा स्थानं,
- स्तंभोपाश्रयेण वा कुड्याश्रयेण वा मालावलग्नशिरसा वावस्थानम्,
- लंबिताधरतया, स्तनगतदृष्ट्या वायस इव इतस्ततो नयनोद्वर्तनं कृत्वावस्थानम्,
- खलीनावपीडितमुखहय इव मुखचालनं संपादयतोऽवस्थानं,
- युगावष्टब्धबलीवर्द्द इव शिरोऽधः पातयता,
- कपित्थफलग्राहीव विकाशिकरतलं, संकुचितांगुलिपंचकं वा कृत्वा,
- शिरश्चालनं कुर्वन्,
- मूक इव हुंकारं संपाद्यावस्थानं,
- मूक इव नासिकया वस्तूपदर्शयता वा,
- अंगुलिस्फोटनं,
- भ्रूनर्तनं वा कृत्वा,
- शबरवधूरिव स्वकौपीनदेशाच्छादनपुरोगं,
- शृंखलाबद्धपाद इवावस्थानं,
- पीतमदिर इव परवशगतशरीरो वा भूत्वावस्थानं इत्यमी दोषाः। =
- मुनियों को उत्थित कायोत्सर्ग के दोषों का त्याग करना चाहिए। उन दोषों का स्वरूप इस प्रकार है–
- .....।
- खंबे के आश्रय स्तंभावष्टंभ।
- ......।
अधिक जानकारी के लिये कायोत्सर्ग का एक अतिचार-देखें व्युत्सर्ग - 1.10।