स्वदारसंतोषव्रत: Difference between revisions
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<span class="GRef"> [[ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 59 | रत्नकरण्ड श्रावकाचार/59]] </span><span class="SanskritGatha"> न तु परदारान् गच्छति न परान् गमयति च पापभीतेर्यत् । सा परदारनिवृतिः स्वदारसंतोषानामपि ।59।</span> =<span class="HindiText">जो पाप के भय से न तो पर स्त्री के प्रतिगमन करै और न दूसरों को गमन करावै, वह परस्त्री-त्याग तथा '''स्वदार-संतोष''' नाम का अणुव्रत है ।59। <span class="GRef">( सागार धर्मामृत/4/52 )</span> ।</span><br /> | |||
<span class="GRef"> चारित्तपाहुड़/21/43/21 </span><span class="SanskritText">ब्रह्मचर्य '''स्वदारसंतोषः''' परदारनिवृत्तिः कस्यचित्तसर्वस्त्री निवृत्तिः । </span>= <span class="HindiText">'''स्व स्त्री संतोष''', अथवा परस्त्री से निवृत्ति वा किसी के सर्वथा स्त्री के त्याग का नाम ब्रह्मचर्य व्रत है ।</span><br /> | |||
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सिद्धांतकोष से
रत्नकरण्ड श्रावकाचार/59 न तु परदारान् गच्छति न परान् गमयति च पापभीतेर्यत् । सा परदारनिवृतिः स्वदारसंतोषानामपि ।59। =जो पाप के भय से न तो पर स्त्री के प्रतिगमन करै और न दूसरों को गमन करावै, वह परस्त्री-त्याग तथा स्वदार-संतोष नाम का अणुव्रत है ।59। ( सागार धर्मामृत/4/52 ) ।
चारित्तपाहुड़/21/43/21 ब्रह्मचर्य स्वदारसंतोषः परदारनिवृत्तिः कस्यचित्तसर्वस्त्री निवृत्तिः । = स्व स्त्री संतोष, अथवा परस्त्री से निवृत्ति वा किसी के सर्वथा स्त्री के त्याग का नाम ब्रह्मचर्य व्रत है ।
अधिक जानकारी के लिये देखें ब्रह्मचर्य - 1.3।
पुराणकोष से
ब्रह्मचर्य का अपर नाम । हरिवंशपुराण - 58.175 देखें ब्रह्मचर्य