स्वरूपाभाव: Difference between revisions
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<span class="HindiText">देखें [[ अभाव ]]।</span> | <p class="HindiText"> स्वरूपाभाव या अतद्भाव</p> | ||
<span class="GRef">प्रवचनसार / मूल या टीका गाथा 106,108</span> <p class="PrakritText">पविभत्तपदेसत्त पुधुत्तमिदि सासणं हि वीरस्स। अण्णत्तमतव्भावो ण तब्भयं होदि कधमेगं। जं दव्वं तण्ण गुणो जो वि गुणो सो ण तच्चमत्थादो ॥106॥ एसो हि अतब्भावो णेव अभावो त्ति णिद्दिट्ठो ॥108॥ </p> | |||
<p class="HindiText">= विभक्त प्रदेशत्व पृथक्त्व है-ऐसा वीर का उपदेश है। अतद्भाव अन्यत्व है। जो उस रूप न हो वह एक कैसे हो सकता है ॥106॥ स्वरूपपेशासे जो द्रव्य है वह गुण नहीं है और जो गुण है वह द्रव्य नहीं है। यह अतद्भाव है। सर्वथा अभाव अतद्भाव नहीं। ऐसा निर्दिष्ट किया गया है।</p> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ अभाव ]]।</span> | |||
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Latest revision as of 16:14, 29 February 2024
स्वरूपाभाव या अतद्भाव
प्रवचनसार / मूल या टीका गाथा 106,108
पविभत्तपदेसत्त पुधुत्तमिदि सासणं हि वीरस्स। अण्णत्तमतव्भावो ण तब्भयं होदि कधमेगं। जं दव्वं तण्ण गुणो जो वि गुणो सो ण तच्चमत्थादो ॥106॥ एसो हि अतब्भावो णेव अभावो त्ति णिद्दिट्ठो ॥108॥
= विभक्त प्रदेशत्व पृथक्त्व है-ऐसा वीर का उपदेश है। अतद्भाव अन्यत्व है। जो उस रूप न हो वह एक कैसे हो सकता है ॥106॥ स्वरूपपेशासे जो द्रव्य है वह गुण नहीं है और जो गुण है वह द्रव्य नहीं है। यह अतद्भाव है। सर्वथा अभाव अतद्भाव नहीं। ऐसा निर्दिष्ट किया गया है।
अधिक जानकारी के लिये देखें अभाव ।