शिक्षागुरु: Difference between revisions
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<span class="GRef"> प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/210/284/15 </span><span class="SanskritText">छेदयोर्ये प्रायश्चित्तं दत्वा संवेगवैराग्यजनकपरमागमवचनै: संवरणं कुर्वंति ते निर्यापका: शिक्षागुरव: श्रुतगुरवश्चेति भण्यते।</span>=<span class="HindiText">देश व सकल इन दोनों प्रकार के संयम के छेद की शुद्धि के अर्थ प्रायश्चित्त देकर संवेग व वैराग्य जनक परमागम के वचनों द्वारा साधु का संवरण करते हैं वे निर्यापक हैं। उन्हें ही शिक्षा गुरु या श्रुत गुरु भी कहते हैं। अधिक जानकारी के लिए देखें [[ गुरु#1 | गुरु - 1]]।< | <span class="GRef"> प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/210/284/15 </span><span class="SanskritText">छेदयोर्ये प्रायश्चित्तं दत्वा संवेगवैराग्यजनकपरमागमवचनै: संवरणं कुर्वंति ते निर्यापका: शिक्षागुरव: श्रुतगुरवश्चेति भण्यते।</span>=<span class="HindiText">देश व सकल इन दोनों प्रकार के संयम के छेद की शुद्धि के अर्थ प्रायश्चित्त देकर संवेग व वैराग्य जनक परमागम के वचनों द्वारा साधु का संवरण करते हैं वे निर्यापक हैं। उन्हें ही शिक्षा गुरु या श्रुत गुरु भी कहते हैं। </span><br> | ||
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Latest revision as of 15:01, 1 March 2024
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/210/284/15 छेदयोर्ये प्रायश्चित्तं दत्वा संवेगवैराग्यजनकपरमागमवचनै: संवरणं कुर्वंति ते निर्यापका: शिक्षागुरव: श्रुतगुरवश्चेति भण्यते।=देश व सकल इन दोनों प्रकार के संयम के छेद की शुद्धि के अर्थ प्रायश्चित्त देकर संवेग व वैराग्य जनक परमागम के वचनों द्वारा साधु का संवरण करते हैं वे निर्यापक हैं। उन्हें ही शिक्षा गुरु या श्रुत गुरु भी कहते हैं।
अधिक जानकारी के लिए देखें गुरु - 1.5।