श्रीवर्मा: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) जंबूद्वीप के मेरु पर्वत से पश्चिम की ओर विदेहक्षेत्र में विद्यमान गंधिल देश के सिंहपुर नगर के राजा श्रीषेण का छोटा पुत्र। यह जयवर्मा का छोटा भाई था। पिता ने प्रेम वश राज्य इसे ही दिया था। पिता के ऐसा करने से जयवर्मा विरक्त होकर दीक्षित हो गया था। <span class="GRef"> महापुराण 5.203-208 </span></p> | |||
<p id="2" class="HindiText">(2) पुष्करद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचयनगर के राजा श्रीधर और रानी मनोहरा का पुत्र। यह बलभद्र और इसका छोटा भाई | |||
विभीषण नारायण था। पिता ने राज्य इसे ही दिया था। इसकी माता मरकर ललितांग देव हुई थी। विभीषण के मरने से शोक संतप्त होने पर | |||
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और रानी श्रीकांता का पुत्र। यह उल्कापात देखकर भोगों से विरक्त हो गया था तथा इसने श्रीकांत ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देकर श्रीप्रभ मुनि से दीक्षा | |||
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<p id="4" class="HindiText">(4) जंबूद्वीप के ऐरावतक्षेत्र में अयोध्या नगरी का एक राजा। सुसीमा इसकी रानी थी। <span class="GRef"> महापुराण 59. 282-283 </span></p> | |||
<p id="5" class="HindiText">(5) अवंति देश की उज्जयिनी नगरी का राजा। इसी के बलि, आदि मंत्रियों ने हस्तिनापुर के राजा पद्म को प्रसन्न कर उनसे छलपूर्वक सात दिन के लिए राज्य लेकर अकंपन आचार्य के संघ पर उपसर्ग किये थे। <span class="GRef"> पांडवपुराण 7.39-56 </span></p> | |||
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Latest revision as of 16:34, 3 March 2024
सिद्धांतकोष से
महापुराण/54/ श्लोक
- पुष्कर द्वीप के पूर्व मेरु की पश्चिम दिशा में सुगंधि नामक देश के श्रीपुर नगर के राजा श्रीषेण (9/37) का पुत्र था (68)। एक समय विरक्त हो दीक्षा ले ली, तथा संन्यास मरणकर (80-81) स्वर्ग में देव हुआ (82)। यह चंद्रप्रभ भगवान् का पूर्व का पाँचवाँ भव है। - देखें चंद्रप्रभ ।
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप के मेरु पर्वत से पश्चिम की ओर विदेहक्षेत्र में विद्यमान गंधिल देश के सिंहपुर नगर के राजा श्रीषेण का छोटा पुत्र। यह जयवर्मा का छोटा भाई था। पिता ने प्रेम वश राज्य इसे ही दिया था। पिता के ऐसा करने से जयवर्मा विरक्त होकर दीक्षित हो गया था। महापुराण 5.203-208
(2) पुष्करद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचयनगर के राजा श्रीधर और रानी मनोहरा का पुत्र। यह बलभद्र और इसका छोटा भाई विभीषण नारायण था। पिता ने राज्य इसे ही दिया था। इसकी माता मरकर ललितांग देव हुई थी। विभीषण के मरने से शोक संतप्त होने पर ललितांग देव ने इसे समझाया था, जिससे इसने युगंधर मुनि से दीक्षा ले ली थी तथा तप किया था। आयु के अंत में मरकर यह अच्युत स्वर्ग में देव हुआ। महापुराण 7.13-24
(3) तीर्थंकर चंद्रप्रभ के पांचवें पूर्वभव का जीव-पुष्करद्वीप के पूर्वमेरु से पश्चिम की ओर विद्यमान विदेहक्षेत्र के सुगंधि देश में श्रीपुर नगर के राजा श्रीषेण और रानी श्रीकांता का पुत्र। यह उल्कापात देखकर भोगों से विरक्त हो गया था तथा इसने श्रीकांत ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देकर श्रीप्रभ मुनि से दीक्षा ले ली थी। अंत में यह श्रीप्रभ पर्वत पर विधिपूर्वक संन्यासमरण कर के प्रथम स्वर्ग के श्रीप्रभ विमान में श्रीधर देव हुआ। महापुराण 54-8-10, 25,36, 39,68, 80-82
(4) जंबूद्वीप के ऐरावतक्षेत्र में अयोध्या नगरी का एक राजा। सुसीमा इसकी रानी थी। महापुराण 59. 282-283
(5) अवंति देश की उज्जयिनी नगरी का राजा। इसी के बलि, आदि मंत्रियों ने हस्तिनापुर के राजा पद्म को प्रसन्न कर उनसे छलपूर्वक सात दिन के लिए राज्य लेकर अकंपन आचार्य के संघ पर उपसर्ग किये थे। पांडवपुराण 7.39-56