श्रीषेण: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) आगामी पांचवें चक्रवर्ती । <span class="GRef"> महापुराण 76.482, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.563 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) आगामी पांचवें चक्रवर्ती । <span class="GRef"> महापुराण 76.482, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#563|हरिवंशपुराण - 60.563]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) | <p id="2" class="HindiText">(2) जंबूद्वीप के विदेहक्षेत्र संबंधी गंधिल देश के सिंहपुर नगर का राजा । इसकी रानी सुंदरी थी । इन दोनों के जयवर्मा और श्रीधर्मा दो पुत्र थे । इसने अपना राज्य छोटे पुत्र श्रीवर्मा को देकर ज्येष्ठ पुत्र जयवर्मा की उपेक्षा की थी जिससे विरक्त होकर वह दीक्षित हो गया था । <span class="GRef"> महापुराण 5.203-208 </span></p> | ||
<p id="3">(3) पुष्करद्वीप के विदेहक्षेत्र | <p id="3" class="HindiText">(3) पुष्करद्वीप के विदेहक्षेत्र संबंधी सुगंधि देश में श्रीपुर नगर का राजा । इसकी रानी श्रीकांता थी । इस राजा ने श्रीवर्मा नामक पुत्र को राज्य देकर श्रीपद्म मुनि से दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 54.8-10, 36-39, 73-76 </span>देखें [[ श्रीवर्मा#3 | श्रीवर्मा - 3]]</p> | ||
<p id="4">(4) साकेत नगर का राजा । | <p id="4" class="HindiText">(4) साकेत नगर का राजा । श्रीकांता इसकी रानी थी । इन दोनों की दो पुत्रियाँ थी हरिषेण और श्रीषेण । <span class="GRef"> महापुराण 72. 253-254 </span></p> | ||
<p id="5">(5) भरतक्षेत्र के अग देश की राजधानी | <p id="5" class="HindiText">(5) भरतक्षेत्र के अग देश की राजधानी चंपा नगरी का राजा । इसकी रानी धनश्री और कनकलता पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 75.81-93 </span></p> | ||
<p id="6">(6) हरिविक्रम भीलराज के पुत्र वनराज का मित्र । इसने और इसके साथी लोहजंघ ने हेमाभनगर की कन्या | <p id="6" class="HindiText">(6) हरिविक्रम भीलराज के पुत्र वनराज का मित्र । इसने और इसके साथी लोहजंघ ने हेमाभनगर की कन्या श्रीचंद्रा का हरण करके और उसे सुरंग से लाकर वनराज को समर्पित की थी । <span class="GRef"> महापुराण 75.478-493 </span></p> | ||
<p id="7">(7) रत्नपुर नगर का राजा । इसकी दो रानियाँ थी― | <p id="7" class="HindiText">(7) रत्नपुर नगर का राजा । इसकी दो रानियाँ थी― सिंहनंदिता और अनिंदिता । इन दोनों रानियों के इंद्रसेन और उपेंद्रसेन नाम के दो पुत्र थे । यह राजा अपने पुत्रों के बीच उत्पन्न हुए विरोध को शांत न कर सकने से विश्व-पुष्य सूँघकर मरा था । इसकी दोनों रानियाँ भी विष-पुष्प सूँघकर निष्प्राण हो गयी थी । <span class="GRef"> महापुराण 62.340-377, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.203-212 </span></p> | ||
<p id="8">(8) श्रीपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 63. 332-335 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) श्रीपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 63. 332-335 </span></p> | ||
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Latest revision as of 16:36, 3 March 2024
सिद्धांतकोष से
महापुराण 62 श्लोक
मगध देश का राजा था (340)। आदित्यगति नामक मुनि को आहार देकर भोगभूमि का बंध किया (348-350)। एक समय पुत्रों का परस्पर युद्ध होने पर विष खाकर मर गया (352-355)। यह शांतिनाथ भगवान् का पूर्व का 11वाँ भव है। - देखें शांतिनाथ ।
पुराणकोष से
(1) आगामी पांचवें चक्रवर्ती । महापुराण 76.482, हरिवंशपुराण - 60.563
(2) जंबूद्वीप के विदेहक्षेत्र संबंधी गंधिल देश के सिंहपुर नगर का राजा । इसकी रानी सुंदरी थी । इन दोनों के जयवर्मा और श्रीधर्मा दो पुत्र थे । इसने अपना राज्य छोटे पुत्र श्रीवर्मा को देकर ज्येष्ठ पुत्र जयवर्मा की उपेक्षा की थी जिससे विरक्त होकर वह दीक्षित हो गया था । महापुराण 5.203-208
(3) पुष्करद्वीप के विदेहक्षेत्र संबंधी सुगंधि देश में श्रीपुर नगर का राजा । इसकी रानी श्रीकांता थी । इस राजा ने श्रीवर्मा नामक पुत्र को राज्य देकर श्रीपद्म मुनि से दीक्षा ले ली थी । महापुराण 54.8-10, 36-39, 73-76 देखें श्रीवर्मा - 3
(4) साकेत नगर का राजा । श्रीकांता इसकी रानी थी । इन दोनों की दो पुत्रियाँ थी हरिषेण और श्रीषेण । महापुराण 72. 253-254
(5) भरतक्षेत्र के अग देश की राजधानी चंपा नगरी का राजा । इसकी रानी धनश्री और कनकलता पुत्री थी । महापुराण 75.81-93
(6) हरिविक्रम भीलराज के पुत्र वनराज का मित्र । इसने और इसके साथी लोहजंघ ने हेमाभनगर की कन्या श्रीचंद्रा का हरण करके और उसे सुरंग से लाकर वनराज को समर्पित की थी । महापुराण 75.478-493
(7) रत्नपुर नगर का राजा । इसकी दो रानियाँ थी― सिंहनंदिता और अनिंदिता । इन दोनों रानियों के इंद्रसेन और उपेंद्रसेन नाम के दो पुत्र थे । यह राजा अपने पुत्रों के बीच उत्पन्न हुए विरोध को शांत न कर सकने से विश्व-पुष्य सूँघकर मरा था । इसकी दोनों रानियाँ भी विष-पुष्प सूँघकर निष्प्राण हो गयी थी । महापुराण 62.340-377, पांडवपुराण 4.203-212
(8) श्रीपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 63. 332-335