प्रवचनसार - गाथा 119 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:54, 23 April 2024
[जायदि णेव ण णस्सदि] द्रव्यार्थिकनय से न उत्पन्न होता है न नष्ट होता है । कहाँ उत्पन्न और नष्ट नही होता है ? [खणभंगसमुब्भवे जणे कोई] पर्यायार्थिकनय से प्रतिसमय उत्पाद और व्यय जिसमें संभव हैं - हो रहे हैं, वह क्षणभंग समुद्भव है, उस प्रतिसमय नश्वर उत्पाद- व्यय वाले इस लोक मे कोई भी उसकारण से ही न उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है - इसप्रकार हेतु कहते है । [जो हि भवो सो विलओ] जिसकारण द्रव्यार्थिकनय से उत्पाद का ही नाश होता है ।
वह इसप्रकार- मुक्तात्मा के जो ही परिपूर्ण, निर्मल केवलज्ञानादिरूप मोक्षपर्याय से उत्पाद है, वही निश्चयरत्नत्रयस्वरूप निश्चयमोक्षमार्गपर्याय से विनाश है और वे दोनों मोक्षपर्याय और मोक्षमार्गपर्याय कार्य-कारण रूप से पृथक-पृथक् है, तथापि मिट्टी के पिण्ड और घड़े के आधारभूत मिट्टी द्रव्य के समान और मनुष्यपर्याय वा देवपर्याय के आधारभूत संसारी जीव के समान, उन दोनों का आधारभूत जो परमात्मद्रव्य है, वह वही है । प्रतिसमय के उत्पाद और विनाश में हेतु कहते हैं - [संभवविलय त्ति ते णाणा] जिसकारण उत्पाद और विनाश दोनों भिन्न हैं इसलिये पर्यायार्थिकनय से उत्पाद और विनाश हैं ।
वह इसप्रकार - जो ही पूर्वोक्त मोक्षपर्याय का उत्पाद और मोक्षमार्गपर्याय का विनाश है - वे दोनों भिन्न ही हैं परन्तु उन दोनों का आधारभूत परमात्मद्रव्य भिन्न नहीं है । इससे ज्ञात होता है कि द्रव्यार्थिकनय से नित्य होने पर भी पर्यायरूप से विनाशशील है ॥१२९॥