प्रवचनसार - गाथा 191 - अर्थ: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:54, 23 April 2024
‘[अहं परेषां न भवामि] मैं पर का नहीं हूँ [परे मे न सन्ति] पर मेरे नहीं हैं, [ज्ञानम् अहम् एक:] मैं एक ज्ञान हूँ,’ [इति यः ध्यायति] इस प्रकार जो ध्यान करता है, [सः ध्याता] वह ध्याता [ध्याने] ध्यानकाल में [आत्मा भवति] आत्मा होता है ।