प्रवचनसार - गाथा 226 - अर्थ: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Latest revision as of 13:54, 23 April 2024
[श्रमण:] श्रमण [रहितकषाय:] कषायरहित वर्तता हुआ [इहलोक निरापेक्षः] इस लोक में निरपेक्ष और [परस्मिन् लोके] परलोक में [अप्रतिबद्ध:] अप्रतिबद्ध होने से [युक्ताहारविहार: भवेत्] युक्ताहार-विहारी होता है ।