प्रवचनसार - गाथा 260 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:54, 23 April 2024
अब, अविपरीत फल का कारण, ऐसा जो 'अविपरीत कारण' है उसे विशेष समझाते हैं :-
यथोक्त लक्षण वाले श्रमण ही-जो कि मोह, द्वेष और अप्रशस्त राग के उच्छेद से अशुभोपयोगरहित वर्तते हुए, समस्त कषायोदय के विच्छेद से कदाचित् शुद्धोपयुक्त (शुद्धोपयोग में युक्त) और प्रशस्त राग के विपाक से कदाचित् शुभोपयुक्त होते हैं वे स्वयं मोक्षायतन (मोक्ष के स्थान) होने से लोक को तार देते हैं; और उनके प्रति भक्तिभाव से जिनके प्रशस्त भाव प्रवर्तता है ऐसे पर जीव पुण्य के भागी (पुण्यशाली) होते हैं ॥२६०॥