प्रवचनसार - गाथा 46 - अर्थ: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Latest revision as of 13:55, 23 April 2024
[यदि] यदि (ऐसा माना जाये कि) [सः आत्मा] आत्मा [स्वयं] स्वयं [स्वभावेन] स्वभाव से (अपने भाव से) [शुभ: वा अशुभ:] शुभ या अशुभ [न भवति] नहीं होता (शुभाशुभ भाव में परिणमित ही नहीं होता) [सर्वेषां जीवकायाना] तो समस्त जीव-निकायों के [संसार: अपि] संसार भी [न विद्यते] विद्यमान नहीं है ऐसा सिद्ध होगा ॥४६॥