प्रवचनसार - गाथा 89 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:55, 23 April 2024
जो निश्चय से अपने को स्वकीय (अपने) चैतन्यात्मक द्रव्यत्व से संबद्ध (संयुक्त) और पर को परकीय (दूसरे के) १यथोचित द्रव्यत्व से संबद्ध जानता है, वही (जीव), जिसने कि सम्यक्त्व-रूप से स्व-पर के विवेक को प्राप्त किया है, सम्पूर्ण मोह का क्षय करता है । इसलिये मैं स्व-पर के विवेक के लिये प्रयत्नशील हूँ ॥८९॥
१यथोचित = यथायोग्य-चेतन या अचेतन (पुद्गलादि द्रव्य परकीय अचेतन द्रव्यत्व से और अन्य आत्मा परकीय चेतन द्रव्यत्व से संयुक्त हैं) ।