मैथुन संज्ञा: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
No edit summary |
||
(4 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> <span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/137/350</span><span class="SanskritText">मैथुने-मिथुनकर्मणि सुरतव्यापाररूपे संज्ञा - वांछा मैथुनसंज्ञा |</span>=<span class="HindiText"> मैथुनरूप क्रिया में जो वांछा उसको '''मैथुनसंज्ञा''' कहते हैं। </span></p> | |||
<p> <span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/1/54 </span><span class="PrakritText"> पणिदरसभोयणेण य तस्सुवओगेण कुसीलसेवणाए। वेदस्सुदीरणाए मेहुणसण्णा हवदि एवं।54। </span> =<span class="HindiText"> बहिरंग में गरिष्ठ, स्वादिष्ठ, और रसयुक्त भोजन करने से, पूर्व-भुक्त विषयों का ध्यान करने से, कुशील का सेवन करने से तथा अंतरंग में वेदकर्म की उदीरणा होने पर <strong>मैथुनसंज्ञा</strong> उत्पन्न होती है।54। </span></span></p> | |||
<span class="HindiText"> अधिक जानकारी के लिए देखें [[ संज्ञा ]]।</span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ मैथुन | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ मैथुन | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ मैनासुंदरी | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] |
Latest revision as of 22:24, 29 November 2024
गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/137/350मैथुने-मिथुनकर्मणि सुरतव्यापाररूपे संज्ञा - वांछा मैथुनसंज्ञा |= मैथुनरूप क्रिया में जो वांछा उसको मैथुनसंज्ञा कहते हैं।
पंचसंग्रह / प्राकृत/1/54 पणिदरसभोयणेण य तस्सुवओगेण कुसीलसेवणाए। वेदस्सुदीरणाए मेहुणसण्णा हवदि एवं।54। = बहिरंग में गरिष्ठ, स्वादिष्ठ, और रसयुक्त भोजन करने से, पूर्व-भुक्त विषयों का ध्यान करने से, कुशील का सेवन करने से तथा अंतरंग में वेदकर्म की उदीरणा होने पर मैथुनसंज्ञा उत्पन्न होती है।54।
अधिक जानकारी के लिए देखें संज्ञा ।